प्रयागराज (उप्र), नौ जनवरी इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मेडिकल कॉलेज और सरकारी अस्पतालों में कार्यरत चिकित्सकों द्वारा मरीजों का इलाज नहीं करने पर चिंता व्यक्त करते हुए राज्य सरकार को बुधवार को निर्देश दिया कि वह चिकित्सकों की निजी ‘प्रैक्टिस’ पर रोक लगाने के लिए एक नीति लाए।
प्रयागराज स्थित मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष डॉ. अरविंद गुप्ता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा, ‘‘यह एक समस्या हो गई है कि मरीजों को इलाज के लिए निजी नर्सिंग होम और अस्पतालों के लिए रेफर किया जाता है।’’
अदालत ने कहा, ‘‘राज्य सरकार द्वारा नियुक्त चिकित्सक मेडिकल कालेज और सरकारी अस्पतालों में मरीजों का इलाज नहीं कर रहे और केवल पैसों के लिए मरीजों को निजी नर्सिंग होम और अस्पतालों के लिए रेफर किया जा रहा है।’’
मौजूदा मामले में रुपेश चंद्र श्रीवास्तव नाम के व्यक्ति ने याचिकाकर्ता चिकित्सक द्वारा एक निजी नर्सिंग होम में गलत इलाज किए जाने की शिकायत उपभोक्ता फोरम में की थी और फोरम के निर्णय के खिलाफ यह याचिका दायर की गई।
इससे पूर्व, दो जनवरी को इस मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने राज्य के मेडिकल कालेज के एक प्रोफेसर की एक निजी अस्पताल में संलिप्तता को गंभीरता से लिया था।
राज्य सरकार के वकील ने दो जनवरी के आदेश के अनुपालन में बताया कि प्रमुख सचिव (चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं शिक्षा) द्वारा छह जनवरी, 2025 को सभी जिला मजिस्ट्रेट को एक पत्र जारी किया गया और उन्हें 30 अगस्त, 1983 को बनाए गए नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने को कहा गया है।
सरकार के 30 अगस्त, 1983 के आदेश के मुताबिक, सरकारी चिकित्सक निजी ‘प्रैक्टिस’ करने के लिए अधिकृत नहीं होंगे और निजी ‘प्रैक्टिस’ नहीं करने के एवज में उन्हें भत्ता दिया जाएगा।
अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई की 10 फरवरी निर्धारित की।
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