बाढ़ और सूखा झेल रहे हैं सबसे ज्यादा आबादी वाले शहर
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले 100 शहरों में बाढ़ और सूखे का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. एक नई रिसर्च के नतीजे में पता चला है कि सबकी समस्याएं अलग हैं.समाजसेवी संगठन वाटरऐड ने चेतावनी दी है कि जलवायु से जुड़ी आपदाओं में 90 फीसदी का संबंध पानी की अधिकता या फिर कमी से है. बीते 50 वर्षों में मौसम से जुड़ी आपदाएं 400 फीसदी तक बढ़ गई हैं. इग्लैंड की ब्रिस्टल और कार्डिफ यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों की एक नई स्टडी में हरेक शहर के सामाजिक और पानी से जुड़ी बुनियादी ढांचे की कमजोरियों की तुलना की गई है. गरीबी और कचरे का निपटारा जैसे मुद्दों के साथ ही 40 साल से ज्यादा समय के से जुड़ी समस्याओं के नए आंकड़ो को भी तुलना के लिए सामने रखा गया.

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भीषण चुनौतियों के सामने शहर कमजोर

इन सब के जरिए रिसर्चरों ने उन शहरों और समुदायों की पहचान की है जो भीषण मौसम की चुनौतियों के आगे सबसे कमजोर होंगे. इन शहरों के पास उन स्थितियों का सामना करने के लिए सबसे कम संसाधन होंगे. बुधवार को जारी इस विश्लेषण के मुताबिक जिन शहरों पर रिसर्च किया गया उनमें 17 फीसदी के सामने बाढ़ और सूखा दोनों का खतरा बढ़ता जा रहा है. इसी तरह 20 फीसदी शहर ऐसे हैं जहां मामला उलट गया. इसका मतलब है कि जहां बाढ़ का खतरा था वहां सूखा और जहां सूखे का खतरा था वहां बाढ़ का जोखिम बढ़ गया है.

दक्षिण एशिया के शहर अब भीषण मौसम के खतरों की तरफ जा रहे हैं और वहां बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है. दूसरी तरफ यूरोपीय शहर अकसर सूखे की चपेट में आ रहे हैं. लंदन से लेकर मैड्रिड और पेरिस तक उनमें शामिल हैं जो सूखे की समस्या से जूझ रहे हैं. रिसर्च के मुताबिक यह कहानी पिछले चार दशक से चली आ रही है. रिसर्चरों ने चेतावनी दी है कि इसके नतीजे में यह इलाके लंबे समय बार बार और लंबे समय के लिए सूखे का सामना करने पर विवश हो सकते हैं.

इस बीच श्रीलंका में कोलंबो, पाकिस्तान में लाहौर और फैसलाबाद जैसे शहर सूखे की चपेट में आते थे अब उनके सामने बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है.

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अफ्रीका और एशिया के सामने ज्यादा बड़ी समस्या

कुल मिलाकर रिपोर्ट कहती है कि अफ्रीका और एशिया के शहरों के आगे जलवायु के बड़े बदलावों का जोखिम ज्यादा है. वैश्विक गर्मी बढ़ने के दौर में इसका शहरी समुदायों के लिए साफ पानी मुहैया कराने की कोशिशों पर बड़ा विध्वंसकारी असर होगा. हालांकि वाटरऐड का कहना है कि बाढ़ और सूखे की चपेट में आने की घटनाएं का बढ़ना पानी तक समुदायों की पहुंच और सफाई तंत्र पर दबाव बढ़ाएगा. ऐसे में समुदायों और अर्थव्यवस्थाओं के लिए इसकी तैयारी, इससे उबरना और जलवायु परिवर्तन के हिसाब से खुद को बदलना बेहद कठिन होगा.

समाजसेवी संगठन ने ब्रिटेन की सरकार से अनुरोध किया है कि वह विदेशी सहायता के अपने वचन और मौजूदा अंतरराष्ट्रीय जलवायु निवेश की प्रतिबद्धताओं को पूरा करे. इसके साथ ही अनुकूलन के लिए बने कोष का एक तिहाई हिस्सा पानी पर खर्च करे. संगठन ने ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय से यह भी मांग की है कि वह अंतरराष्ट्रीय जल सुरक्षा की रणनीति और जल संकट पर कार्रवाई विदेश नीति के हर क्षेत्र में शामिल करे.

हर जगह की समस्या अलग

वाटरऐड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी टिम वेनराइट का कहना है, "यह रिसर्च अहम समय पर आई है, हम वैश्विक स्तर पर सहायता में कटौती दे रहे हैं, इसके बाद बुनियादी मानवाधिकार अधर में लटक जाएगा." वेनराइट का यह भी कहना है, "बाढ़ और सूखा लोगों के अस्तित्व की बुनियाद पानी को छीन रहे हैं." वेनराइट ने यहा कि यह स्थिति बदली जा सकती है, "साफ पानी की भरोसेमंद सप्लाई से समुदाय आपदाओं से बच सकते हैं, स्वस्थ रह सकते हैं और भविष्य में जो कुछ भी हो उसके लिए तैयार हो सकते हैं. इन सबकी शुरुआत साफ पानी से होगी."

यह संगठन अपने साझीदारों के साथ दुनिया के स्तर पर जलवायु परिवर्तन के पानी पर असर से जूझ रहा है. यह बारिश के पानी को जमा करने, पानी के स्तर पर नजर रखने और बाढ़ में भी कारगर होने वाले शौचालय बनवा कर दुनिया की मदद कर रहा है.

ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर कातरीना मिषाएलिडेस का कहा है, "हमारी रिसर्च के नतीजे यह दिखाते हैं कि कैसे अलग अलग और नाटकीय तरीके से जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया में सामने आ रहा है और कोई भी रूप ऐसा नहीं है जो सब जगह फिट हो जाए." उन्होंने यह भी कहा कि स्थानीय जलवायु की समस्याओं की समझ प्रमुख शहरों के लिए समाधान में ज्यादा सहायक होगी."

एनआर/एसके (डीपीए)