दिल्ली में बेकाबू हुआ कोरोना, प्रवासी कामगारों को लॉकडाउन और रोजगार छिनने का डर
दिल्ली और आसपास के शहरों में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले बढ़ने से प्रवासी कामगार और दिहाड़ी मजदूर एक बार फिर से लॉकडाउन लगने और जीविका छिनने को लेकर डरने लगे हैं.
नयी दिल्ली, सात जनवरी: दिल्ली और आसपास के शहरों में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले बढ़ने से प्रवासी कामगार और दिहाड़ी मजदूर एक बार फिर से लॉकडाउन लगने और जीविका छिनने को लेकर डरने लगे हैं. इनको लगता है कि एक और लॉकडाउन उन्हें आर्थिक बदहाली के संकट में झोंक देगा जिससे वे कभी नहीं निकल सकेंगे. Delhi COVID Guidelines: कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच अब दुकानों, मॉल्स, साप्ताहिक बाजारों के लिए नई गाइडलाइंस जारी.
दिल्ली में भीड़ को कम करने के लिए अन्य उपायों के साथ सप्ताहांत और रात के कर्फ्यू का ऐलान पहले से ही किया जा चुका है. दिल्ली में दूसरी लहर के महीनों बाद कोरोना वायरस संक्रमण के रिकॉर्ड मामले दर्ज किए गए हैं. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में बृहस्पतिवार को कोरोना वायरस संक्रमण के रिकॉर्ड 15,097 नए मामले दर्ज किए गए. इस साल आठ मई के बाद से किसी एक दिन में दर्ज किए गए नए संक्रमण की यह सर्वाधिक संख्या हैं.
इस आंकड़े के मुताबिक दिल्ली में बृहस्पतिवार को पांच और कोविड मरीजों की मौत हो गई, जबकि संक्रमित होने की दर बढ़कर 15.34 प्रतिशत हो गई. करावल नगर में रह रहीं प्रवासी श्रमिक मीना देवी कहती हैं, ‘मेरा परिवार वायरस के संपर्क में आने से नहीं डरता. गरीब कभी इससे संक्रमित नहीं होता.
हमें सबसे अधिक चिंता यह है कि यदि एक और लॉकडाउन लगा तो आर्थिक संकट के कारण हम अपना अस्तित्व नहीं बचा पाएंगे.’ दिल्ली के अलावा इसके पड़ोसी राज्य हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी पाबंदियां लगाई गई हैं. हालांकि अभी किसी तरह का लॉकडाउन नहीं लगाया गया है और प्रवासी कामगारों से जुड़े कारोबार और अन्य गतिविधियों का संचालन कोविड प्रोटोकॉल के अनुरूप किया जा रहा है.
लाजपत नगर में घरेलू सहायक के रूप में कार्यरत 60 साल की पोकयाल कहती है, ‘पहली और दूसरी लहर में हम वित्तीय रूप से कंगाल हो चुके हैं, ऐसे में एक और पूर्ण लॉकडाउन की केवल बात भर से रीढ़ की हड्डी तक कांप जाती है.’ पोकयाल आगे कहती हैं, ‘मेरे पति जीवनयापन के लिए कार धोने का काम करते हैं, हमने एक किलोग्राम चीनी और एक किलोग्राम चावल के रूप में दिल्ली सरकार से कुछ मदद पाई है.’
पोकयाल की पत्रवधू ने कहा कि वर्ष 2020 के लॉकडाउन के बाद से कई परिवार दोबारा लौटकर दिल्ली नहीं आए. उसने कहा, ‘लॉकडाउन ने हमें बहुत बुरी तरह प्रभावित किया, हमारा काम आधा रह गया. यदि एक बार फिर लॉकडाउन लगाया जाता है, तो मैं पक्के तौर पर यह नहीं कह सकती कि इस दौरान नियोक्ता हमें वेतन देंगे.
मैंने कुछ पैसा फरवरी में अपनी बेटी की शादी के लिए बचाकर रखा है, जो हमारी कुल जमापूंजी है.’ पिछले साल अप्रैल-मई में डेल्टा स्वरूप के कारण देश को दूसरी लहर का सामना करना पड़ा था. विशेषज्ञों के मुताबिक तीसरी लहर का कारण कोरोना वायरस का नया रूप आमीक्रोन बनेगा, जो बहुत अधिक संक्रामक है.
पूर्वी कैलाश में घरेलू सहायिका के रूप में कार्यरत लक्ष्मी देवी कहती हैं, ‘पिछली बार मेरे नियोक्ता ने वेतन नहीं काटा था, इसलिए मैंने अपने हालात संभाल लिए, लेकिन कॉलोनी में मेरे साथ रह रहीं अन्य घरेलू सहायिकाओं को भोजन से लेकर अन्य जरूरी चीजों के लिए बहुत अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ा.’ बिहार में भागलपुर की मूल निवासी लक्ष्मी कहती हैं कि वह 20 साल पहले ही दिल्ली आ गई थीं, लेकिन उनके पति बिहार में ही पेंटर का काम करते हैं. लक्ष्मी अपने 17 साल के बेटे और 15 साल की बेटी के साथ दिल्ली में रहती हैं.
निर्माण स्थल पर काम करने वाले कमलेश कहते हैं, ‘अभी निर्माण कार्यों पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है लेकिन निर्माण स्थलों पर कामगारों की संख्या घटने लगी है. संभावित लॉकडाउन और कड़ी पाबंदी के डर के कारण ऐसा है.’
प्रगति मैदान सुरंग परियोजना में काम कर रहे रामनाथ जाटव कहते हैं, ‘महामारी एक बार फिर बढ़ रही है. प्रतिदिन हजारों मामले मिल रहे हैं, यह मुझे दूसरी लहर का दौर और बदहाली याद दिलाता है, मैं यात्रा पर पाबंदी लगने से पहले घर वापस जाना चाहता हूं.’ यूपी स्थित अयोध्या से दिल्ली आए राज कुमार कहते हैं, ‘दूसरी कोविड लहर के दौरान मैं घर वापस चला गया था और पिछले साल सितंबर में फिर दिल्ली आ गया. यदि यहां कोई काम और पैसा नहीं होगा तो मैं बैठा नहीं रह सकता.’
बिहार के मोतीहारी से आकर दिल्ली में ऑटो चालक का काम कर रहे अशोक कुमार कहते हैं,‘एक अनिश्चितता और डर का माहौल है, क्योंकि पाबंदी लगने का मतलब होगा कि कम लोग बाहर निकलेंगे जिसका हम पर सीधा असर पड़ेगा. मैं यह भी महसूस करता हूं कि यदि केस का बढ़ना जारी रहता है, तो सरकार लॉकडाउन लगा सकती है. पिछली बार मुझे पत्नी और बच्चों के साथ ऑटो से ही मोतिहारी जाना पड़ा था’
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