
नयी दिल्ली, सात फरवरी उच्चतम न्यायालय ने घरेलू हिंसा के मामलों से अत्यंत संवेदनशीलता के साथ निपटने की जरूरत पर जोर देते हुए शुक्रवार को कहा कि किसी आरोपी के परिवार के सदस्यों को आपराधिक मामले में विशिष्ट आरोप के बिना व्यापक रूप से नहीं घसीटा जा सकता।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि वैवाहिक विवादों में भावनाएं बहुत अधिक होती हैं और परिवार के उन अन्य सदस्यों को फंसाने की प्रवृत्ति हो सकती है, जो शिकायतकर्ता को बचाने के लिए आगे नहीं आते या उत्पीड़न की किसी कथित घटना के दौरान मूकदर्शक बने रहते हैं।
न्यायालय ने कहा, ‘‘घरेलू हिंसा से संबंधित आपराधिक मामलों में, जहां तक संभव हो, परिवार के प्रत्येक सदस्य के खिलाफ शिकायतें और आरोप विशिष्ट होने चाहिए, जो ऐसे अपराधों के आरोपी हैं और जिनके खिलाफ मुकदमा चलाया जाना चाहिए। अन्यथा, परिवार के सभी सदस्यों को मनमाने तरीके से मामले में घसीटे जाने से कठोर आपराधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग हो सकता है।’’
शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी उस फैसले में की, जिसमें एक परिवार के सदस्यों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी गई। संबंधित मामले में एक महिला ने अपने सास-ससुर के अलावा परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ भी घरेलू हिंसा का मुकदमा दायर किया था।
तेलंगाना उच्च न्यायालय ने मुख्य आरोपी के दो करीबी रिश्तेदारों के खिलाफ कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया था।
पीठ ने कहा कि जब रिश्ते खराब हो जाते हैं, तो आरोपों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की प्रवृत्ति भी होती है, जिसका यह मतलब नहीं है कि ऐसे घरेलू विवादों को अपराध का रंग दे दिया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘ऐसी स्थितियां हो सकती हैं, जहां परिवार के कुछ सदस्य या रिश्तेदार पीड़ित के साथ की गई हिंसा या उत्पीड़न को नजरअंदाज कर सकते हैं और पीड़िता की मदद नहीं कर सकते हैं, जिसका यह मतलब नहीं है कि वे भी घरेलू हिंसा में शामिल रहे हैं, जब तक कि परिस्थितियां स्पष्ट रूप से उनकी संलिप्तता और उकसावे का संकेत न दें।’’
इसने कहा कि बिना कोई विशिष्ट आरोप लगाए ऐसे सभी रिश्तेदारों को फंसाना और उन पर अपराध का आरोप लगाना तथा प्रथम दृष्टया साक्ष्य के बिना उनके खिलाफ कार्यवाही करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
न्यायालय ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया लागू करना एक गंभीर मामला है, जिसके दंडात्मक परिणाम में बलपूर्वक कार्रवाई शामिल है, जिसकी अनुमति केवल तभी दी जा सकती है जब कोई विशिष्ट कृत्य हुआ हो।
पीठ ने कहा कि बिना किसी विशिष्ट आरोप और उसके समर्थन में विश्वसनीय सामग्री के घरेलू विवादों को अपराध घोषित करने से परिवार नाम की संस्था के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं, जो प्रेम, स्नेह, सौहार्द और आपसी विश्वास के आधार पर बनी होती है।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘परिवार, मानव समाज का मूल है। घरेलू रिश्ते, जैसे कि परिवार के सदस्यों के बीच के रिश्ते, गहराई से निहित सामाजिक मूल्यों और सांस्कृतिक अपेक्षाओं द्वारा निर्देशित होते हैं। इन रिश्तों को अकसर पवित्र माना जाता है, जो अन्य सामाजिक या पेशेवर संबंधों की तुलना में उच्च स्तर के सम्मान, प्रतिबद्धता और भावनात्मक जुड़ाव की मांग करते हैं।’’
न्यायालय ने कहा कि कानून का उद्देश्य घरेलू हिंसा पीड़ितों की रक्षा करना है और यह सुनिश्चित करते हुए संतुलन कायम किया जाना चाहिए कि अपराधियों को सजा तो मिले, लेकिन परिवार के सभी सदस्यों या रिश्तेदारों को व्यापक रूप से आपराधिक दायरे में न लाया जाए।
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