नयी दिल्ली, 12 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और उसके निदेशक धन शोधन मामले के तथ्यों से संबंधित निर्देश दे सकते हैं, लेकिन वे अपने अभियोजकों को यह निर्देश नहीं दे सकते कि उन्हें अदालत में कैसा आचरण करना चाहिए।
शीर्ष अदालत का फैसला अदालत के अधिकारियों के रूप में सरकारी अभियोजकों की स्वतंत्रता को रेखांकित करने के साथ ही न्यायिक कार्यवाही में जांच एजेंसियों के प्रभाव को सीमित करता है।
न्यायमूर्ति अभय ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने बुधवार को जीशान हैदर और दाउद नासिर को जमानत देते हुए ये टिप्पणियां कीं। इन्हें दिल्ली वक्फ बोर्ड धन शोधन मामले में गिरफ्तार किया गया था।
पीठ ने उनके लंबे समय तक कारावास में रहने का संज्ञान लिया तथा माना कि निकट भविष्य में मुकदमा शुरू नहीं होगा।
पीठ ने निचली अदालत के निर्देश पर संज्ञान लेते हुए सरकारी अभियोजकों पर ईडी के अधिकार की सीमाओं को स्पष्ट किया। निचली अदालत ने अपने निर्देश में धन शोधन निरोधक जांच एजेंसी के निदेशक को अभियोजकों को यह निर्देश जारी करने को कहा था कि वे उन मामलों में जमानत आवेदनों का विरोध नहीं करें, जिनमें एजेंसी के कारण सुनवाई में देरी हुई हो।
पीठ ने कहा, ‘‘हम यहां यह भी कहना चाहेंगे कि प्रवर्तन निदेशालय और उसके निदेशक मामले के तथ्यों पर सरकारी अभियोजकों को निर्देश दे सकते हैं। हालांकि, प्रवर्तन निदेशालय या उसके निदेशक सरकारी अभियोजक को इस बारे में कोई निर्देश नहीं दे सकते कि अदालत के अधिकारी के तौर पर उन्हें अदालत के समक्ष क्या करना चाहिए।’’
पीठ ने कहा कि निचली अदालत के आदेश से सरकारी अभियोजकों को उन स्थितियों में जमानत का विरोध करने से नहीं रोका जाना चाहिए जहां मुकदमे में देरी ईडी की गलती से नहीं हुई है।
इससे पहले निचली अदालत ने इसी मामले में एक अन्य आरोपी कौसर इमाम सिद्दीकी को जमानत देते हुए मुकदमे में देरी के लिए ईडी की आलोचना की थी।
न्यायमूर्ति ओका ने प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक को दिए गए निचली अदालत के पूर्व के निर्देश को ‘‘अव्यवहारिक’’ बताया, लेकिन यह भी स्वीकार किया कि सरकारी अभियोजकों को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम करना चाहिए।
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