नयी दिल्ली, नौ दिसंबर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर के तौर पर छह साल के अपने कार्यकाल में शक्तिकान्त दास ने कोविड महामारी के चुनौतीपूर्ण समय में देश की मौद्रिक नीति का कुशल मार्गदर्शन करने के साथ आर्थिक वृद्धि एवं मुद्रास्फीति के बीच समुचित संतुलन साधने की भी कोशिश की।
मंगलवार को आरबीआई गवर्नर का अपना कार्यकाल पूरा करने जा रहे दास ने इसके पहले नोटबंदी अभियान और माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के क्रियान्वयन की योजना और इन्हें लागू करने में भी प्रमुख भूमिका निभाई थी।
उनके कार्यकाल का मंगलवार अंतिम दिन है। उनके स्थान पर राजस्व सचिव संजय मल्होत्रा को नया गवर्नर नियुक्त किया गया है।
दास को आरबीआई गवर्नर उस समय बनाया गया था जब उर्जित पटेल ने सरकार के साथ मतभेद गहराने के बाद दिसंबर, 2018 में उन्होंने अचानक पद से इस्तीफा दे दिया था।
भारतीय़ प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के 1980 बैच के तमिलनाडु कैडर के अधिकारी दास नवंबर, 2016 में नोटबंदी की घोषणा के समय आर्थिक मामलों के सचिव थे। दास ने नोटबंदी के दौरान आम लोगों को पेश आने वाली समस्याओं को दूर करने में अहम भूमिका निभाई थी।
उन्होंने जुलाई, 2017 में देशभर में एकसमान अप्रत्यक्ष कर प्रणाली जीएसटी को लागू किए जाने के दौरान भी कई कदम उठाए थे। उन्होंने राज्यों के साथ मिलकर जीएसटी के सफल क्रियान्वयन की बुनियाद तैयार की थी।
रिजर्व बैंक का गवर्नर बनने के बाद दास ने गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र में नकदी की कमी दूर करने और बैंकों एवं गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिए नियामकीय ढांचे को मजबूत करने के लिए कदम उठाए।
हालांकि, कोविड-19 महामारी के आर्थिक प्रभाव से निपटने के लिए उठाए गए कदम उनके कार्यकाल के मुख्य आकर्षण रहे। उस समय आरबीआई ने अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए कई तरह की रियायतें दी थीं।
उनके कार्यकाल में केंद्रीय बैंक ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए लगभग दो वर्षों तक मानक ब्याज दरों को स्थिर रखा। उन्होंने पिछले हफ्ते अपने कार्यकाल की अंतिम मौद्रिक नीति पेश करने के बाद कहा था कि पिछले कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था ने निरंतर उथल-पुथल और झटकों का सफलतापूर्वक सामना किया है।
दास को आरबीआई मुख्यालय में अपना कार्यभार संभालने के साथ ही अधिशेष हस्तांतरण के मुद्दे पर पैदा हुए विवाद को निपटाना पड़ा था। उन्होंने न केवल बाजार की चिंताओं को दूर किया बल्कि सरकार को अधिशेष हस्तांतरण से संबंधित मुद्दों को चतुराई से हल भी किया।
उसके एक साल बाद ही भारत समेत पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी के चंगुल में फंस गई थी। एक प्रमुख आर्थिक नीति-निर्माता के रूप में दास को लॉकडाउन से उपजे व्यवधानों के प्रबंधन की चुनौती का भी सामना करना पड़ा। उस समय दास ने रेपो दर को चार प्रतिशत के ऐतिहासिक निचले स्तर पर लाने का विकल्प चुना।
हालांकि, महामारी से उबरने के बाद दास की अगुवाई वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आर्थिक वृद्धि को तेज करने के लिए ब्याज दरें बढ़ाने की तेजी दिखाई। उनके कुशल प्रबंधन को देखते हुए सरकार ने 2021 में उन्हें एक बार फिर आरबीआई का गवर्नर नियुक्त किया।
दास ने यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि उनके कार्यकाल के अंतिम चार वर्षों में आर्थिक वृद्धि सात प्रतिशत से अधिक रहे।
आरबीआई गवर्नर के तौर पर दास का नरेंद्र मोदी सरकार के साथ तालमेल अच्छा रहा। उनके गवर्नर बनने के बाद से एक बार भी आरबीआई की स्वायत्तता का मुद्दा नहीं उठा। वह सहयोगियों और मीडिया के लिए स्पष्टवादी और सुलभ रहे। उन्होंने आम सहमति का रास्ता अपनाते हुए सरकार के साथ संवाद बनाए रखा।
इस दौरान आरबीआई ने 2024 की शुरुआत में 2.11 लाख करोड़ रुपये का अबतक का सबसे अधिक लाभांश भी सरकार को दिया।
आरबीआई की कमान संभालने के पहले दास ने राजस्व विभाग और आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव के रूप में कार्य किया था। सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें 15वें वित्त आयोग का सदस्य और जी20 समूह में भारत का शेरपा भी नियुक्त किया गया था।
दास को पिछले 38 वर्षों में शासन के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक अनुभव है। उन्होंने वित्त, कराधान, उद्योग और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में केंद्र और राज्य सरकारों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है। वह दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से स्नातकोत्तर हैं।
प्रेम
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)