देश की खबरें | दवा कंपनियों की अनैतिक प्रथाओं पर अंकुश लगाने के अनुरोध वाली अर्जी पर केंद्र से सुविचारित जवाब दाखिल करने का निर्देश

नयी दिल्ली, 25 अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने दवा कंपनियों की अनैतिक प्रथाओं पर अंकुश लगाने और एक प्रभावी निगरानी तंत्र, पारदर्शिता, जवाबदेही के साथ-साथ उल्लंघनों के परिणाम सुनिश्चित करने के लिए दवा विपणन प्रथाओं का एक समान संहिता तैयार करने के अनुरोध वाली एक याचिका पर केंद्र से एक सुविचारित जवाब दाखिल करने सोमवार को निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) के एम नटराज से कहा कि उन्हें एक ऐसा व्यापक जवाब दाखिल करना चाहिए जो उचित विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया हो।

पीठ ने एएसजी के अनुरोध पर मामले की अगली सुनवायी आठ सप्ताह के बाद करना तय करते हुए कहा, ‘‘आपका जवाब सुविचारित होना चाहिए न कि एक सामान्य उत्तर। हमें इसके बजाय कुछ की तलाश नहीं। उचित विचार-विमर्श करने के बाद जवाब दाखिल करें।’’

शुरुआत में, वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख और अधिवक्ता अपर्णा भट ने शीर्ष अदालत से कहा कि केंद्र को एक जवाब दाखिल करना चाहिए क्योंकि यह मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है और उन्हें अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए कि वे इसे स्वैच्छिक चाहते हैं या वैधानिक।

शीर्ष अदालत ने 11 मार्च को याचिका पर विचार करने पर सहमति जतायी थी और केंद्र से जवाब मांगा था कि वह जानना चाहती है कि इस मुद्दे पर सरकार का क्या कहना है।

याचिकाकर्ता 'फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव एसोसिएशन ऑफ इंडिया' की ओर से पेश हुए पारिख ने कहा था कि यह जनहित का एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और इस अदालत ने हाल ही में एक फैसला सुनाया है जिसमें कहा गया था कि रिश्वत देने वाले और रिश्वत लेने वाले दोनों निषिद्ध हैं।

उन्होंने कहा था कि दवा कंपनियां कह रही हैं कि वे जिम्मेदार नहीं हैं क्योंकि रिश्वत लेने वाले डॉक्टर हैं और विदेशों में इन अनैतिक विपणन प्रथाओं को रोकने के लिए कानून है। पारिख ने कहा था कि सरकार को इस पर गौर करना चाहिए और संहिता को वैधानिक बनाया जाना चाहिए क्योंकि ‘‘हम सभी जानते हैं कि रेमडेसिविर इंजेक्शन और उन संयोजनों की अन्य दवाओं के साथ क्या हुआ।’’

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा था कि वे पहले ही सरकार को एक अभ्यावेदन दे चुके हैं और 2009 से इसे आगे बढ़ा रहे हैं और सरकार जब तक इस एक संहिता नहीं लेकर आती, तब तक के लिए अदालत कुछ दिशानिर्देश निर्धारित कर सकती है।

अधिवक्ता अपर्णा भट के माध्यम से दायर याचिका में यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि जब तक अनुरोध के अनुसार एक प्रभावी कानून लागू नहीं किया जाता, तब तक यह न्यायालय दवा कंपनियों द्वारा अनैतिक विपणन प्रथाओं को नियंत्रित और विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश निर्धारित कर सकता है या वैकल्पिक रूप से मौजूदा संहिता को उचित संशोधनों/ परिवर्धन के साथ बाध्यकारी बना सकता है जिसका संविधान के अनुच्छेद 32, 141, 142 और 144 के तहत सभी प्राधिकरणों या अदालतों द्वारा पालन किया जाना चाहिए।

याचिका में कहा गया है कि मारतीय आयुर्विज्ञान परिषद् (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार एवं नैतिकता) विनियमावली, 2002 चिकित्सकों के लिए फार्मास्युटिकल और संबद्ध स्वास्थ्य क्षेत्र उद्योग के साथ उनके संबंधों के लिए एक आचार संहिता निर्धारित करता है तथा औषधि कंपनियों से उपहार और मनोरंजन, यात्रा सुविधाओं, आतिथ्य, नकद या मौद्रिक अनुदान की स्वीकृति पर रोक लगाता है।

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