देश की खबरें | विकासशील देशों को 2030 तक प्रति वर्ष एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता: रिपोर्ट

नयी दिल्ली, 14 नवंबर आजरबैजान में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में शामिल वार्ताकारों को दुनिया में बढ़ते तापमान से निपटने और पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने में विकासशील देशों की मदद के लिए 2030 तक प्रति वर्ष एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर जुटाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। बृहस्पतिवार को ‘इंडिपेंडेंट हाई-लेवल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन क्लाइमेट फाइनेंस’ (आईएचएलईजी) की नयी रिपोर्ट में यह बात कही गई है।

अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त विशेषज्ञों के समूह के अनुसार, इस धन की आवश्यकता सार्वजनिक और निजी दोनों स्रोतों से है।

यह रिपोर्ट जर्मनी, कनाडा, फ्रांस और नीदरलैंड समेत कई अमीर देशों द्वारा यह स्वीकार किए जाने के एक दिन बाद आई है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए खरबों डॉलर की तत्काल आवश्यकता है और अमीर देशों को जलवायु वित्त प्रदान करने में आगे रहना चाहिए।

सम्मेलन में शामिल देश 2025 के बाद विकासशील देशों की मदद के लिए एक नए जलवायु वित्त पैकेज पर बातचीत कर रहे हैं, ऐसे में रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 2030 से पहले निवेश में किसी भी तरह की कमी होने से आने वाले वर्षों पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा, जिससे जलवायु स्थिरता के लिए राह कठिन हो जाएगी और वित्तीय बोझ भी बढ़ जाएगा।

रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि अब पर्याप्त निवेश नहीं किए जाने का मतलब है कि महत्वपूर्ण लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कम समय सीमा में और भी बड़ी रकम जुटाने की आवश्यकता होगी।

जलवायु कार्यकर्ता और जीवाश्म ईंधन अप्रसार संधि पहल के वैश्विक कार्यक्रम निदेशक हरजीत सिंह ने कहा, "बार-बार यह चेतावनी दी गई है कि निष्क्रियता से खर्च बढ़ेगा और जलवायु स्थिरता का मार्ग कठिन होगा, इसके बावजूद अमीर देश अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए विकासशील देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करने में देरी करते रहते हैं।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक जलवायु कार्रवाई के लिए 2030 तक सालाना 6.3 - 6.7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है जबकि उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों के लिए 2.4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष की जरूरत है।

रिपोर्ट के अनुसार, इस लिहाज से देखा जाए तो दुनिया में बढ़ते तापमान से निपटने और पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने में विकासशील देशों की मदद के लिए 2030 तक प्रति वर्ष एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर जुटाने की जरूरत है।

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