जयपुर, 21 मार्च राजस्थान में ‘स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक’ के विरोध में प्रदर्शन कर रहे निजी चिकित्सकों को पुलिस ने मंगलवार को यहां ‘स्टेच्यू सर्किल’ पर उस समय रोक दिया जब वो विधानसभा की ओर कूच कर रहे थे।
पुलिस ने उन्हें आगे बढ़ने से रोकने के लिये हल्का बल और पानी की बौछारों का प्रयोग किया और प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर कर दिया।
विधेयक का विरोध कर रहे निजी चिकित्सकों ने ‘स्टेच्यू सर्किल’ से विधानसभा भवन की ओर बढ़ने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने अवरोधक लगाकर उन्हें रोक दिया। उन्होंने अवरोधक को पार करने की कोशिश की, जिसके बाद पुलिस ने पानी की बौछारों (वाटर कैनन) का प्रयोग कर उन्हें रोका।
निजी चिकित्सकों ने राज्य सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और विधेयक वापस लेने की मांग उठाई।
राजस्थान विधानसभा में मंगलवार को स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक चर्चा और पारित होने के लिए सदन की कार्यवाही में सूचीबद्ध है। निजी चिकित्सकों का कहना है कि इस विधेयक से निजी चिकित्सकों पर नौकरशाही का नियंत्रण बढ़ेगा।
विधेयक में राज्य के निवासियों को अस्पतालों और क्लीनिक से मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाने का अधिकार देने का प्रावधान है। इसमें निजी प्रतिष्ठान भी शामिल होंगे।
‘स्टेच्यू सर्किल’ पर प्रदर्शन के बाद पांच डॉक्टरों का एक प्रतिनिधिमंडल विधानसभा में सोमवार को स्वास्थ्य मंत्री से मिला और विधेयक को वापस लेने की मांग की।
निजी चिकित्सक मंगलवार को सरकार के जवाब का इंतजार कर रहे थे, लेकिन कोई प्रगति नहीं होने पर निजी चिकित्सकों ने विधानसभा की ओर बढ़ना शुरू कर दिया लेकिन उन्हें ‘स्टेच्यू सर्किल’ पर रोक दिया गया।
‘स्टेच्यू सर्किल’ पर अत्यधिक संख्या में पुलिस बल सहित घुड़सवार पुलिस बल भी तैनात है।
निजी चिकित्सकों यह आंदोलन ‘‘संयुक्त संघर्ष समिति’’ द्वारा चलाया जा रहा है जिसमें राजस्थान के निजी अस्पताल एवं नर्सिंग होम सोसायटी तथा संयुक्त निजी क्लिनिक एवं अस्पताल के सदस्य भाग ले रहे हैं। ये वे चिकित्सक हैं जो अपना निजी अस्पताल और नर्सिंग होम चलाते हैं।
इस बीच, मंगलवार को समाचार पत्रों में ‘‘50,000 चिकित्सकों और लाखों अन्य चिकित्सा कर्मियों’’ की ओर से एक विज्ञापन दिया गया, जिसमें बताया गया है कि स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक रोगियों के लिए फायदेमंद नहीं है।
विज्ञापन में कहा गया है कि विधेयक से निजी चिकित्सा संस्थानों पर अनावश्यक नौकरशाही का नियंत्रण बढ़ेगा और इससे निजी अस्पतालों की हालत सरकारी अस्पतालों जैसी हो जाएगी तथा निजी अस्पतालों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
विज्ञापन में कहा गया है कि इससे चिकित्सक और मरीज के रिश्ते प्रभावित होंगे, जिला और राज्य स्तर की समितियां निजी चिकित्सकों को परेशान करेंगी, निजी अस्पतालों में इलाज की गुणवत्ता प्रभावित होगी और निजी अस्पतालों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ेगा और इसलिए स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास रुक जाएगा।
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