ताजा खबरें | प्लास्टिक के कचरे के निपटान के लिए रास में उठी जवाबदेही तय करने की मांग

नयी दिल्ली, 14 मार्च राज्यसभा में सोमवार को कांग्रेस की एक सदस्य ने प्लास्टिक के कचरे की वजह से फैलने वाले प्रदूषण का मुद्दा उठाया और सरकार से अनुरोध किया कि इस संबंध में कानून का कड़ाई से पालन करने के साथ ही जवाबदेही भी तय की जानी चाहिए।

कांग्रेस की डॉ अमी याग्निक ने राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रबंधन का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि सड़कों के किनारे पड़ा हुआ प्लास्टिक का कचरा न केवल प्रदूषण फैलाता है बल्कि लोगों के लिए बीमारियों का कारण भी बनता है।

उन्होंने कहा कि सड़कों पर पैदल चलने वाले बच्चे, बुजुर्ग, युवाओं के स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, लिहाजा पर्यावरण मंत्रालय को इस संबंध में नीति की गहन समीक्षा करनी चाहिए।

याग्निक ने कहा कि प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए कानून कई हैं लेकिन उनका पालन कड़ाई से किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि केवल सामूहिक जागरूकता फैलाना ही जरूरी नहीं है बल्कि जवाबदेही भी तय की जानी चाहिए।

शून्यकाल में ही वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के प्रभाकर रेड्डी वेमीरेड्डी ने दुर्लभ बीमारियों के इलाज का मुद्दा उठाया।

उन्होंने कहा कि दुर्लभ बीमारियों के इलाज में बहुत अधिक खर्च आता है और आम लोगों के लिए इतना अधिक खर्च वहन करना मुश्किल होता है।

उन्होंने मांग की कि इसके लिए बजटीय प्रावधान किये जाएं।

मनोनीत सदस्य डॉ सोनल मानसिंह ने दिल्ली सरकार की नयी आबकारी नीति का मुद्दा उठाया और केंद्र से इस पर हस्तक्षेप की मांग की।

उन्होंने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने जब मामले को संज्ञान में लिए तो राजधानी की सरकार ने इसका ठीकरा शराब कंपनियों पर फोड़ दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘जनता को पीड़ा देने वाली नीतियों पर लगाम कसी जानी चाहिए।’’

उपसभापति एम वेंकैया नायडू ने इस पर कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई राज्यों के लिए यह नीति राजस्व का बहुत बड़ा स्रोत बन गया है।

मनोनीत सदस्य डॉ नरेंद्र जाधव ने हिरासत में मौत का मुद्दा शून्यकाल में उठाया।

उन्होंने कहा कि आंकड़े बताते हैं कि 2018 में 4.66 लाख कैदी विचाराधीन थे। इनमें 33.5 प्रतिशत ओबीसी, 18.8 प्रतिशत मुस्लिम, 20.7 प्रतिशत अनुसूचित जाति के और 11.6 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के कैदी थे।

जाधव ने कहा कि देश भर में पिछले 20 साल में कुल 1,888 लोगों की हिरासत में मौत हुई। इस अवधि में मात्र 26 पुलिस कर्मियों को दोषी ठहराया गया।

उन्होंने कहा कि विचाराधीन कैदियों की संख्या अधिक है जिनमें ज्यादातर लोग अनुसूचित, जाति जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग हैं जो या तो जमानत का प्रबंध नहीं कर पाते या उन्हें अपने कानूनी अधिकारों की जानकारी नहीं है या अपने लिए अर्थसंकट के चलते वकील की व्यवस्था नहीं कर पाते।

उन्होंने सरकार से मांग की कि इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए और आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए।

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