नयी दिल्ली, 20 जुलाई दिल्ली पुलिस ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में कांग्रेस की पूर्व निगम पार्षद इशरत जहां की एक याचिका का विरोध किया। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फरवरी में सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े एक मामले में आतंक रोधी कानून यूएपीए के तहत मुकदमे का सामना कर रहीं जहां ने जांच के लिए 60 और दिन देने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी है ।
जांच पूरी करने के लिए 90 दिन से अधिक का समय प्रदान करने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर न्यायमूर्ति सुरेश कैत ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सुनवाई की।
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जहां को 26 फरवरी को गिरफ्तार किया गया था ।
जहां की ओर से पेश वकील ललित वालेचा ने निचली अदालत के फैसले को रद्द किए जाने का अनुरोध करते हुए कहा कि यह फैसला कानून के मुताबिक नहीं है और तथ्यों पर आधारित नहीं है। साथ ही यह संविधान द्वारा प्रदत्त लोकतांत्रिक और मौलिक अधिकारों के भी खिलाफ है ।
दिल्ली पुलिस के वकील ने दलील दी कि अतिरिक्त सत्र न्यायालय द्वारा जांच का समय बढ़ाने के आदेश पर उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि इसमें कोई खामी नहीं है ।
जहां के वकील ने तर्क दिया कि अभियोजन ने निचली अदालत में अर्जी दाखिल करते समय समझदारी नहीं दिखायी।
बहरहाल, दिल्ली सरकार के स्थायी वकील राहुल मेहरा ने कहा कि वह राज्य और दिल्ली पुलिस की ओर से पेश होने के लिए अधिकृत हैं, वहीं वकील अमित प्रसाद ने दावा किया कि दंगा मामले में पुलिस की तरफ से पेश होने के लिए उपराज्यपाल ने उन्हें विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया है ।
उच्च न्यायालय ने दोनों वकीलों को जिरह करने तथा अपनी-अपनी संबंधित स्थिति रिपोर्ट पेश करने की अनुमति दे दी क्योंकि अदालत ने पिछली सुनवाई में स्पष्ट कर दिया था कि वह इस विवाद में नहीं पड़ना चाहती कि कौन से वकील पुलिस का प्रतिनिधित्व करेंगे ।
स्कूल के प्रधानाचार्य फैसल फारूक से जुड़े दंगा के एक अन्य मामले में पुलिस की तरफ से पेश होने वाले अधिकृत वकील के मुद्दे पर उच्च न्यायालय अपना आदेश सुरक्षित रख चुका है ।
केंद्र सरकार के स्थायी वकील अमित महाजन ने कहा कि जेएनयू के पूर्व छात्र शरजील इमाम के मामले में उच्च न्यायालय के एक दूसरे न्यायाधीश द्वारा दिए गए आदेश को वह रिकॉर्ड पर रखेंगे ।
उच्च न्यायालय ने 24 जून को पुलिस को जहां की याचिका पर जवाब देने को कहा था, जिसमें उन्होंने अपने और कार्यकर्ता खालिद सैफी के खिलाफ जांच पूरी करने के लिए पुलिस को 60 दिन का समय और देने के निचली अदालत के 15 जून के फैसले को चुनौती दी थी।
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