नयी दिल्ली, आठ मई दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को उस युवक का बयान दर्ज करने का निर्देश दिया जिसने दावा किया था कि वह वर्ष 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे के दौरान 23 वर्षीय युवक को राष्ट्र गान गाने के लिए कथित तौर पर मजबूर करने और उसकी पीट-पीट कर हत्या करने का चश्मदीद गवाह है।
न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने अदालत की निगरानी में हत्या की जांच कराने के लिए दायर अर्जी पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि संबंधित मजिस्ट्रेट एक सप्ताह के भीतर ‘गवाह’ मोहम्मद वसीम का बयान दर्ज करें।
वसीम के वकील अधिवक्ता महमूद प्राचार ने मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध करते हुए दावा किया कि वह (वसीम) नाबालिग था जिसे पुलिसकर्मियों ने उक्त व्यक्ति (जिसकी मौत हो गई) के साथ पीटा था और इस तरह वह घटना के साथ-साथ पुलिस थाने में हुई घटनाओं का चश्मदीद गवाह है।
वहीं, दिल्ली पुलिस का पक्ष रख रहे अधिवक्ता अमित प्रसाद ने कहा कि वसीम ने बयान दर्ज कराने में सहयोग नहीं किया जबकि उससे ऐसा करने के लिए कहा गया।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘आवेदकर्ता को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-164 के तहत बयान दर्ज करने के लिए संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होने दें। उसका बयान एक सप्ताह में दर्ज कराया जाए और उसे अदालत के रिकॉर्ड पर दर्ज किया जाए।’’
उच्च न्यायालय कथित पिटाई से मारे गए फैजान की मां किस्मातुन की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिन्होंने अदालत की निगरानी में विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित करने का अनुरोध किया था। घटना के बाद सोशल मीडिया पर प्रसारित वीडियो में फैजान के साथ चार अन्य मुस्लिम युवक दिखे थे। वीडियो में कथित तौर पर दिख रहा है कि पुलिस कर्मी फैजान की पिटाई कर रहे हैं और उसे राष्ट्रगान गाने और ‘वंदे मातरम्’ कहने के लिए मजबूर कर रहे हैं।
महिला ने दावा किया है कि पुलिस ने उसके बेटे को अवैध तरीके से हिरासत में रखा और घायल होने पर इलाज नहीं कराया जिसकी वजह से 26 फरवरी 2020 को उसकी मौत हो गई।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुईं अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने अदालत में उक्त वीडियो दिखाया और कहा कि मृतक के खिलाफ ‘लक्षित घृणा अपराध’ किया गया और ‘‘खाकी की साठगांठ’ को उजागर करने और अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के लिए अदालत की निगरानी में जांच की जरूरत है।
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