नयी दिल्ली, चार जुलाई कोविड के कारण गंभीर जटिलताओं से जूझ रहे 38 वर्षीय मरीज को अंतत: 50 दिनों के इलाज के बाद एक निजी अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। अधिकारियों ने रविवार को इस आशय की जानकारी दी।
बहु-राष्ट्रीय कंपनी में वरिष्ठ पद पर तैनात यह मरीज मधुमेह से पीड़ित हैं और उन्हें सात मई को मूलचंद अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
अस्पताल में क्रिटिकल केयर की निदेशक डॉक्टर सुरभि अवस्थी ने बताया कि मरीज को गंभीर बाईलेट्रल न्यूमोनिया (जिससे फेंफड़े में सूजन और निशान हो जाता है) और एक्यूट रेस्पीरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) (श्वसन संबंधी गंभीर समस्या, जिसमें सांस लेने में बहुत तकलीफ होती है) हो गया था।
अस्पताल के अधिकारियों के अनुसार, मरीज के रिश्तेदार उसे एक्स्ट्राकॉरपोरेल मेंब्रेन ऑक्सीजेनेशन (एकमो) के लिए ले जाने और फेंफड़ा प्रतिरोपण कराने की सोच रहे थे, लेकिन हमने उन्हें समझाया और अस्पताल में ही इलाज जारी रखने के लिए मनाया। एकमो वह तरीका है जिसकी मदद से डॉक्टर ऐसे मरीजों की मदद करते हैं जिनमें फेंफड़े, हृदय या श्वन संबंधी परेशानी जानलेवा स्तर की हो जाती है।
अवस्थी ने बताया, ‘‘वह 50 दिनों तक आईसीयू में थे और करीब 30 से 40 दिनों तक वेंटीलेटर पर थे। उनके फेंफड़े स्वस्थ्य होने के बाद मांसपेशियों की कमजोरी के कारण उनके हाथ-पांव (चारों) ढीले पड़ गए थे और वह उन्हें हिला भी नहीं पा रहे थे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमने न्यूरोलॉजिस्ट की मदद से इसका इलाज किया। उसके बाद मरीज को न्यूमोथोरेक्स हो गया, जिसमें मरीज के फेंफड़े में हवा भर जाती है, लेकिन उसने इन सभी बीमारियों को हरा दिया।’’
डॉक्टर ने बताया कि हर तीन-चार दिनों में मरीज के बच्चे उनके लिए ड्राइंग बनाकर भेजते थे ताकि वह खुश रहे।
डॉक्टर ने बताया, ‘‘उनका दो साल का एक बेटा और एक बच्चा पांच साल का है। वे घर पर अपने पिता का इंतजार कर रहे थे। मरीज ने भी हिम्मत दिखायी।’’
डॉक्टर ने बताया कि फिलहाल मरीज के हाथों में मूवमेंट आ गयी है, लेकिन वह अपने पैरों का अभी भी पूरा उपयोग नहीं कर पा रहे हैं, वह सिर्फ कुछ सेंकेड के लिए ही पैरों पर खड़े हो पाते हैं।
डॉक्टर ने कहा, ‘‘उन्हें स्वस्थ्य होने में बहुत समय लगा और अभी भी पैरों पर खड़ा होना बाकी है।’’
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