नयी दिल्ली, 23 मार्च दिल्ली उच्च न्यायालय ने कानून के तहत छह महीने की अनिवार्य अवधि को हटाते हुए आपसी सहमति से अलग रह रहे दंपति को तलाक की अनुमति दे दी।
अदालत ने कहा, ‘‘हालांकि, उन्हें एक कानूनी बंधन से बांधे रखने का मतलब केवल उनसे एक पूर्ण जीवन जीने का अवसर छीनने जैसा होगा।’’
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा की पीठ ने कहा कि इस मामले में पुरुष और महिला दोनों अच्छी तरह से शिक्षित और स्वतंत्र व्यक्ति हैं जिन्होंने पारस्परिक रूप से इस संबंध को लेकर फैसला किया है और वे एक ऐसी उम्र में हैं जहां मौका दिए जाने पर वे एक नया जीवन शुरू कर सकते हैं।
अदालत की यह टिप्पणी एक पारिवारिक अदालत के उस आदेश को रद्द करते हुए आई, जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पक्षकारों द्वारा संयुक्त रूप से पेश की गई दूसरी याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि पहला प्रस्ताव पेश किए जाने की तारीख से छह महीने की वैधानिक अवधि और अलगाव की तारीख से 18 महीने की अवधि समाप्त नहीं हुई है।
पुरुष और महिला ने नवंबर 2016 में शादी कर ली थी और उनके बीच विवादों के कारण, उन्होंने अलग होने का फैसला किया और वे अक्टूबर 2020 से पति-पत्नी के रूप में साथ नहीं रह रहे थे।
पक्षकारों ने कहा था कि उनके परिवार के सदस्यों और शुभचिंतकों द्वारा सुलह और मतभेदों के समाधान के सभी प्रयास कई मंचों पर विफल रहे थे।
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