दिल्ली-केंद्र प्रशासनिक सेवा विवाद: न्यायालय मामले की सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय पीठ के गठन को तैयार

उच्चतम न्यायालय, केन्द्र और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सरकार के बीच दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण के विवाद से जुड़े मामले पर सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ का गठन करने के लिए मंगलवार को सहमत हो गया.

सुप्रीम कोर्ट (Photo Credit : Twitter)

नयी दिल्ली, 12 जुलाई : उच्चतम न्यायालय, केन्द्र और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सरकार के बीच दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण के विवाद से जुड़े मामले पर सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ का गठन करने के लिए मंगलवार को सहमत हो गया. केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच इस बात को लेकर विवाद है कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाएं किसके नियंत्रण में रहेंगी. प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमण, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की एक पीठ आम आदमी पार्टी (आप) की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एम. सिंघवी के, मामले पर तत्काल सुनवाई के अनुरोध पर भी सहमत हुई.

सिंघवी ने कहा, ‘‘ यह बेहद महत्वपूर्ण मामला है. कृपया इसे सूचीबद्ध करें.’’ इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ हम करेंगे.’’ उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र और दिल्ली के बीच राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण के विवाद से जुड़ा मामला छह मई को ‘‘आधिकारिक फैसले’’ के लिए पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ को स्थानांतरित कर दिया था. इससे पहले, शीर्ष अदालत ने मामले को पांच सदस्यीय पीठ के पास भेजने के संबंध में 28 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. यह भी पढ़ें : राजग की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू कोलकाता में स्वामी विवेकानंद के पैतृक घर पहुंचीं

यह याचिका 14 फरवरी 2019 के उस विभाजित फैसले को ध्यान में रखते हुए दायर की गयी है, जिसमें न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की दो सदस्यीय पीठ ने भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश को उनके विभाजित फैसले के मद्देनजर राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे पर अंतिम फैसला लेने के लिए तीन सदस्यीय पीठ का गठन करने की सिफारिश की थी. दोनों न्यायाधीश अब सेवानिवृत्त हो गए हैं. न्यायमूर्ति भूषण ने तब कहा था कि दिल्ली सरकार के पास प्रशासनिक सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं हैं. हालांकि, न्यायमूर्ति सीकरी की राय उनसे अलग थी.

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