नयी दिल्ली, 26 अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें एक वकील पर अदालत का ‘‘कीमती समय’’ बर्बाद करने और स्वयं याचिकाकर्ता होने के बावजूद वकील की पोशाक एवं बैंड पहनकर मामले पर बहस करने के लिए एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने इस बारे में सीमित नोटिस जारी किया कि क्या अधिवक्ता महमूद प्राचा के खिलाफ उच्च न्यायालय द्वारा की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने की आवश्यकता है।
पीठ ने कहा, ‘‘इस सीमित उद्देश्य के लिए नोटिस जारी करें कि याचिकाकर्ता के खिलाफ उच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणियों को क्यों न हटाया जाए और जुर्माना लगाने वाले आदेश को क्यों न रद्द किया जाए। इस नोटिस का जवाब नौ दिसंबर, 2024 को दिया जाए।’’
उसने निर्देश दिया कि इस बीच जुर्माना लगाने के 10 सितंबर, 2024 के आदेश पर रोक रहेगी।
प्राचा ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया है, जिसमें उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष पहले से दायर एक याचिका दायर करने के लिए ‘‘कीमती समय’’ बर्बाद करने का दोषी पाया गया था।
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि प्राचा इस मामले में कोट और बैंड पहनकर उपस्थित हुए तथा उन्होंने अदालत को यह बताए बिना मामले पर बहस की कि वह स्वयं याचिकाकर्ता हैं।
अदालत ने प्राचा पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।
प्राचा ने उत्तर प्रदेश के रामपुर लोकसभा क्षेत्र में चुनाव के संचालन संबंधी संपूर्ण वीडियोग्राफी और सीसीटीवी फुटेज की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था।
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