नयी दिल्ली, 10 अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने गंभीर अपराधों में जिन लोगों के खिलाफ आरोप तय हो चुके हैं, उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का अनुरोध करने वाली याचिका पर केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए सोमवार को चार हफ्ते का वक्त दिया।
न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना की पीठ ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार को पहले यह पता लगाने की जरूरत है कि गंभीर अपराध के क्या हैं।
पीठ ने इस संबंध में केंद्र के जवाब दाखिल नहीं करने पर गौर करते हुए अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल संजय जैन से जरूरी कार्य करने को कहा।
पीठ ने कहा, ‘‘सबसे पहले, यह पता करने की जरूरत है कि गंभीर अपराध क्या हैं। इसे परिभाषित करना होगा। हम इस पर जुलाई में सुनवाई करेंगे।’’
उल्लेखनीय है कि शीर्ष न्यायालय ने मुद्दे पर अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर पिछले साल 28 सितंबर को कानून मंत्रालय, गृह मंत्रालय और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किये थे।
जिन लोगों के खिलाफ आपराधिक मामलों में आरोप तय किये गये हैं, उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगाने के अलावा अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के मार्फत दायर याचिका में, गंभीर अपराधों के लिए मुकदमे का सामना कर रहे उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने के लिए केंद्र और चुनाव आयोग को कदम उठाने के वास्ते निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है।
जनहित याचिका में दावा किया गया है कि विधि आयोग की सिफारिशों और अदालत के पूर्व के निर्देशों के बावजूद केंद्र तथा चुनाव आयोग ने इस सिलसिले में कदम नहीं उठाये हैं।
याचिका में कहा गया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने वाले 539 उम्मीदवारों में करीब 233 (43 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले होने की चुनावी हलफनामे में घोषणा की थी।
गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट से प्राप्त आंकड़ों को रेखांकित करते हुए याचिका में कहा गया है कि घोषित गंभीर आपराधिक मामलों की संख्या में 2009 से 109 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसमें कहा गया है कि एक सांसद ने अपने खिलाफ 204 गंभीर आपराधिक मामले होने की घोषणा की, जिनमें गैर इरादतन हत्या, मकान में जबरन घुसना, लूट, आपराधिक भयादोहन आदि शामिल हैं।
याचिका में कहा गया है, ‘‘आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का प्रतिशत और चुनाव जीतने की उनकी संभावना इन वर्षों में तेजी से बढ़ी है, जो खतरे की घंटी है।’’
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