नयी दिल्ली, 12 अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र की उन दलीलों पर संज्ञान लिया जिनमें दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं को नियंत्रित करने वाले विवादास्पद मुद्दे पर संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई का आग्रह किया गया है।
शीर्ष अदालत ने केंद्र से यह भी पूछा कि क्या अधिकार विवाद पर 2018 के फैसले में कहा गया था कि विधानसभा "अनावश्यक" है और उपराज्यपाल के पास विधायी कार्यों का अधिकार हो सकता है।
अदालत ने सेवाओं के नियंत्रण पर एक विभाजित फैसले से उत्पन्न विवादास्पद मुद्दे पर सुनवाई शुरू करते हुए यह सवाल उठाया। आप सरकार ने आरोप लगाया कि केंद्र स्थानांतरण और पदस्थापना की उसकी शक्ति को छीनकर संघवाद को "नकार" रहा है।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन से पूछा कि क्या वह "यह कह रहे हैं कि न्यायाधीशों (जिन्होंने दिल्ली-केंद्र शक्ति विवाद पर निर्णय लिखा है) ने कहीं भी कहा है कि राज्यपाल विधानसभा की विधायी शक्तियां अपने पास रख सकते हैं।”
इसने पूछा, "क्या आप कह रहे हैं, कोई विधानसभा नहीं हैं और विधानसभा अनावश्यक है।"
केंद्र सरकार ने सेवाओं पर नियंत्रण और संशोधित जीएनसीटीडी अधिनियम, 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की दो अलग-अलग याचिकाओं पर संयुक्त सुनवाई का भी आग्रह किया।
पीठ ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा कि क्या उसे सेवाओं पर नियंत्रण से संबंधित मामले में "खाली आदेश" पारित करना चाहिए, जब एक अन्य मामले में संशोधित अधिनियम की वैधता का मुद्दा उसके समक्ष लंबित है।
न्यायालय ने 27 अप्रैल को दोनों याचिकाओं को एक साथ सूचीबद्ध करने का फैसला किया और केंद्र सरकार से संशोधित जीएनसीटीडी के खिलाफ याचिका पर 10 दिन के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा।
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