नयी दिल्ली, 31 अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) द्वारा कई उपचारात्मक कदम उठाए जाने के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण बरकरार रहने पर विचार करते हुए मंगलवार को दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान सरकारों से इस पर काबू पाने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया है।
न्यायालय ने कहा कि कुछ दशकों पहले यह दिल्ली में सबसे अच्छा वक्त होता था। उसने कहा कि शहर अब बिगड़ती वायु गुणवत्ता से संकट में है और घर से बाहर निकलना तक मुश्किल हो गया है।
न्यायमूर्ति एस के कौल की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने पांच राज्यों से एक सप्ताह के भीतर हलफनामे दाखिल करने को कहा।
पीठ में न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति पी के मिश्रा भी शामिल हैं। पीठ ने कहा, ‘‘संबंधित राज्य यह बताते हुए एक हलफनामा दाखिल करें कि उन्होंने इस स्थिति को कम करने के लिए क्या कदम उठाए हैं। हम दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान को एक सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हैं।’’
न्यायालय ने मामले पर अगली सुनवाई के लिए सात नवंबर की तारीख तय कर दी।
शीर्ष न्यायालय ने सीएक्यूएम को समस्या शुरू होने की प्रासंगिक अवधि और वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) जैसे मापदंडों और पराली जलाने की घटनाओं की संख्या सहित वर्तमान जमीनी स्थिति का परिणाम एक सारणीबद्ध रूप में प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया।
पीठ ने कहा कि दिल्ली में वायु प्रदूषण की मुख्य वजहों में से एक पराली जलाना है।
उच्चतम न्यायालय ने पहले दिल्ली तथा उसके आसपास वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए उठाए जा रहे कदमों पर वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) से एक रिपोर्ट मांगी थी।
सीएक्यूएम ने दिल्ली में वायु गुणवत्ता बिगड़ने पर छह अक्टूबर को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सरकारी प्राधिकारियों से होटलों तथा रेस्त्रां में कोयले के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने और प्रदूषण फैला रहे उद्योगों तथा ताप विद्युत संयंत्रों के खिलाफ दंडात्मक कदम उठाने का निर्देश दिया था।
सीएक्यूएम एक स्वायत्त निकाय है जिसे दिल्ली तथा आसपास के इलाकों में वायु गुणवत्ता में सुधार करने का काम दिया गया है।
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