जरुरी जानकारी | कपास की महंगाई, ऊंचा आयात शुल्क सूती वस्त्र उद्योग लिए बड़ी चिंता: सिमा

कोयंबटूर, 26 जुलाई दक्षिणी भारत मिल्स एसोसिएशन (सिमा) ने भारतीय कपास निगम (सीसीआई) द्वारा 15 दिनों के भीतर कपास की दर प्रति कैंडी (355 किग्रा) और कपास पर 10 प्रतिशत आयात शुल्क से सूती कपड़ा उद्योग भारी दबाव में आ गया है।

सिमा के अध्यक्ष अश्विन चंद्रन ने यहां एक विज्ञप्ति में कहा कि जनवरी 2021 से कपास की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं और इस महीने आसमान छू गई हैं। यहां तक ​​कि सीसीआई ने जुलाई की शुरुआत से, कीमत 51,000 रुपये से बढ़ाकर 54,800 रुपये प्रति कैंडी कर दी है, जिससे बाजार में तेजी आई है।

अश्विन ने कहा कि गुजरात स्थित शंकर -6 कपास का बाजार मूल्य पिछले जनवरी में 43,300 रुपये था, जो अब बढ़कर 56,600 रुपये हो गया है, जो 30 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि है।

उन्होंने बताया कि कपास की कीमतों में भारी वृद्धि न केवल उद्योग प्रभावित होगा और उसका मार्जिन कम होगा बल्कि घरेलू उपभोक्ताओं के लिए परिधान और कपड़ा वस्तुओं की कीमतों में भी वृद्धि होगी, जो पहले से ही कोविड ​​​​-19 महामारी के दुष्प्रभावों से बोझिल हैं।

उन्होंने कहा कि वर्तमान बिक्री मूल्य असामान्य रूप से अधिक है। भले ही वहन लागत और उचित लाभ मार्जिन को ध्यान में रखा जाए, लेकिन स्थिरता बनाए रखने के लिए सीसीआई कीमतों को लगभग 48,000 रुपये प्रति कैंडी के उचित स्तर पर बनाए रख सकता था।

उन्होंने कहा, ‘‘कपास पर 10 प्रतिशत आयात शुल्क का लाभ उठाते हुए, व्यापार जगत ने कीमतों की अटकलबाजी को बढ़ावा दिया है और कुछ किस्मों जैसे ईएलएस (एक्स्ट्रा लॉन्ग स्टेपल) कपास की घरेलू कीमतें पहले ही अंतरराष्ट्रीय मूल्य से अधिक हो गई हैं, जिससे हमारा उद्योग अप्रतिस्पर्धी हो गया है।’’

इस मुद्दे पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए, उन्होंने सरकार से बाजार की धारणा को बदलने और सूती कपड़ा मूल्य श्रृंखला को और नुकसान से बचने के लिए तुरंत 10 प्रतिशत आयात शुल्क वापस लेने का आग्रह किया।

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