नयी दिल्ली, 23 मार्च उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को केंद्र सरकार से कहा कि दो राज्यों के बीच जल विवाद होने पर उसे मुख्य मध्यस्थ होने के नाते ‘और सक्रिय’ भूमिका निभानी चाहिए, बजाय ‘मूकदर्शक’ बने रहने के। शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही पंजाब और हरियाणा सरकारों को सतलुज-युमना संपर्क (एसवाईएल) नहर विवाद को सुलझाने के वास्ते चर्चा करने को कहा।
पंजाब सरकार ने सुनवाई के दौरान कहा कि उनके यहां पानी की भारी कमी है और नदियों का जल-स्तर नीचे जा रहा है, ऐसे में ‘‘नहर में पानी का बहाव नहीं होगा तो उसे ताजमहल (एक स्मारक) जैसा बनाने का कोई तुक नहीं है।’’
वहीं, दूसरी ओर हरियाणा सरकार ने शीर्ष अदालत में कहा कि उसके लोगों को पंजाब से आने वाले पानी की जरूरत है।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कहा, ‘‘हम उम्मीद करते हैं कि राज्य सरकारें समाधान के लिए साथ बैठकर प्रयास करेंगी। हम राज्यों से बैठक करने को आह्वान करते हैं, ताकि कम से कम चर्चा में कुछ प्रगति हो। हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र सरकार भी खाई को पाटने के लिए सक्रिय प्रयास करेगी।’’
सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि से न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा, ‘‘माननीय अटॉर्नी, दो या इससे अधिक राज्यों के बीच जल विवाद में केंद्र प्रमुख मध्यस्थ होता है। केंद्र मूक दर्शक बने रहने के बजाय मुद्दे को सुलझाने के लिए और सक्रिय भूमिका क्यों नहीं निभा सकता है?’’
वेंकटरमणि ने कहा कि केंद्र ने अदालत के निर्देश पर सभी तरह के गंभीर प्रयास किए और दोनों राज्यों- पंजाब व हरियाणा ने बैठक की, लेकिन नहर के निर्माण पर दोनों पक्षों के बीच सहमति नहीं बनी।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा विचार है कि भविष्य में व्यावहारिक समाधान के लिए दोनों राज्यों के बीच कुछ और बैठकों की जरूरत है। जल शक्ति मंत्रालय दोनों राज्यों को स्वीकार्य समाधान के लिए सभी तरह का प्रयास कर रहा है।’’
एसवाईएल नहर की परिकल्पना रावी और व्यास नदियों का पानी हरियाणा पहुंचाने के लिए की गई थी। इसके तहत 214 किलोमीटर लंबी नहर बनानी थी, जिसमें से 122 किलोमीटर हिस्सा पंजाब में पड़ता है, जबकि 92 किलोमीटर हिस्सा हरियाणा में आता है।
हरियाणा ने अपने हिस्से की नहर का निर्माण कर लिया है, जबकि पंजाब ने वर्ष 1982 में काम शुरू किया, लेकिन बाद में बंद कर दिया।
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