नयी दिल्ली, 24 अगस्त सीबीआई पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामले में क्षेत्रवार जांच करेगी और हर जोन में तफ्तीश संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी संभाल रहे हैं ताकि कथित जघन्य अपराध के मामलों में पूरी तरह जांच हो सके। अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने राज्य में चार दलों को तैनात किया है, जिसे चार जोन में बांटा गया है ताकि दो मई को राज्य में विधानसभा चुनाव के परिणामों की घोषणा के बाद घटे कथित दुष्कर्म और हत्या के मामलों में जांच हो सके।
अधिकारियों ने कहा कि केंद्रीय एजेंसी ने चार संयुक्त निदेशकों की अगुवाई में एक दल को भेजने की अभूतपूर्व कार्रवाई की है जिसमें इतने ही उप महानिरीक्षक और 16 पुलिस अधीक्षक शामिल होंगे। अधिकारी पूरे देश से बुलाये गये हैं और चारों जोन में तैनात रहेंगे।
उन्होंने कहा कि सीबीआई के दलों ने अपने-अपने क्षेत्रों में बुनियादी कामकाज शुरू कर दिया है। एजेंसी ने पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेशक से चुनाव के बाद सामने आए कथित दुष्कर्म और हत्या के सभी मामलों का ब्योरा मांगा है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की एक समिति की 13 जुलाई को आई रिपोर्ट के बाद कलकत्ता उच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने आरोपों के मामले में सीबीआई जांच का आदेश दिया था।
चुनाव के बाद कथित हिंसा की घटनाओं के मामले में स्वतंत्र जांच के अनुरोध वाली जनहित याचिकाओं पर सर्वसम्मति से फैसला पारित करते हुए पीठ ने अन्य सभी मामलों की जांच के लिए राज्य के पुलिस अधिकारियों के एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन का आदेश दिया था।
एसआईटी में पश्चिम बंगाल कैडर के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी (आईपीएस) सुमन बाला साहू, सोमेन मित्रा और रणवीर कुमार शामिल होंगे।
पीठ सीबीआई तथा एसआईटी दोनों की जांच पर निगरानी रखेगी। उसने दोनों एजेंसियों से छह सप्ताह के अंदर स्थिति रिपोर्ट अदालत में दाखिल करने को कहा है।
अदालत ने कहा कि इस तरह के आरोप हैं कि फरियादियों को मामले वापस लेने के लिए धमकाया जा रहा है और हत्या के अनेक वाकयों को प्राकृतिक मृत्यु का मामला बताया जा रहा है जिनमें प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा रही और जांच नहीं की जा रही।
पीठ ने कहा कि पश्चिम बंगाल पुलिस ने कार्रवाई नहीं करने के आरोपों पर उचित जवाब नहीं दिया और उन्हें तवज्जो ही नहीं दी। उसने कहा, ‘‘इसमें स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच निश्चित रूप से जरूरी है।’’
पीठ ने कहा कि अदालत को मामला अपने हाथ में लिये हुए तीन महीने गुजर गये हैं, लेकिन राज्य ने हलफनामे दाखिल करने और हजारों कागज रिकॉर्ड में रखने के अलावा कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जिससे भरोसा पैदा हो सके।
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