मुंबई, 11 अप्रैल बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमावली में संशोधन को चुनौती देने वाली एक याचिका पर केंद्र से हलफनामा दायर करने को कहा है। सूचना प्रौद्योगिकी के नियमों में इस संशोधन से केंद्र को, सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ फर्जी खबरों की पहचान करने का अधिकार मिल जाता है।
सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमावली में संशोधन को चुनौती देने वाली यह याचिका ‘स्टैंड अप कॉमेडियन’ कुणाल कामरा की ने दाखिल की है।
न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने कहा कि सरकार अपने हलफनामे में यह बताए कि यह संशोधन क्यों जरूरी है।
अदालत ने केंद्र को 19 अप्रैल तक अपना हलफनाम दायर करने का निर्देश दिया और कहा, ‘‘क्या कोई तथ्यात्मक पृष्ठभूमि या कारण था जिसके कारण यह संशोधन करना आवश्यक था? याचिकाकर्ता (कामरा) का अनुमान है कि किसी प्रभाव के चलते यह संशोधन किया गया। ’’
पीठ अब मामले में 21 अप्रैल को सुनवाई करेगी।
याचिका में कामरा ने खुद को एक राजनीतिक व्यंग्यकार बताया है जो अपनी सामग्री साझा करने के लिए सोशल मीडिया के मंचों पर निर्भर हैं।
उनके मुताबिक, संभावना है कि संशोधित नियम उनकी सामग्री को मनमाने ढंग से अवरुद्ध कर सकते हैं या उनके सोशल मीडिया अकाउंट को निलंबित या निष्क्रिय किया जा सकता है, जिससे उन्हें पेशेवर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है।
कामरा ने याचिका में अदालत से संशोधित नियमों को असंवैधानिक घोषित करने और सरकार को इन संशोधित नियमों के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने से रोकने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।
छह अप्रैल को केंद्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियमावली, 2021 में कुछ संशोधन किए थे।
इन संशोधनों के तहत सरकार ने खुद से संबंधित फर्जी या गलत अथवा भ्रामक ऑनलाइन सूचनाओं की पहचान के लिए एक ‘फैक्ट चेक’ इकाई का प्रावधान जोड़ा था।
यह इकाई तथ्यों की जांच करेगी और गलत पाए जाने पर सोशल मीडिया कंपनियों पर आईटी अधिनियम की धारा 79 के तहत मिली ‘‘सुरक्षा’’ खोने का जोखिम होगा। इस धारा के तहत मिली सुरक्षा के अनुसार, सोशल मीडिया कंपनी अपनी वेबसाइट पर तीसरे पक्ष की ओर से पोस्ट की गई सामग्री के लिए जिम्मेदार नहीं होती।
कामरा ने एक याचिका दाखिल कर इस संशोधन को चुनौती दी है और इसे देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करार दिया है।
कामरा के वकील नवरोज सीरवई ने अदालत में दलील दी कि नयी व्यवस्था का इस देश के नागरिकों की बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गहरा असर होगा, खास कर उन पर जो लोग राजनीतिक घटनाक्रम पर, बतौर पेशा, कोई टिप्पणी या वीडियो पोस्ट करते हैं।
सीरवई ने दावा किया ‘‘यह संशोधन जनता के हित में नहीं बल्कि सरकार, मंत्रियों और उन लोगों के हित में है जो सत्ता में हैं। संशोधन में सुनवाई या अपील के लिए कोई प्रावधान नहीं है। यह स्वाभाविक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।’’
सीरवई ने जहां याचिका पर तत्काल सुनवाई की मांग की वहीं केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल अनिल सिंह ने इस आधार पर हलफनामा दाखिल करने के लिए समय मांगा कि याचिका में नियम की वैधता को चुनौती दी गई है।
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