नयी दिल्ली, 31 दिसंबर इस साल जनवरी में उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर के भव्य उद्घाटन समारोह का अघोषित लक्ष्य सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा चुनावों में अभूतपूर्व लाभ दिलाना था, लेकिन आम चुनाव में पार्टी ने अपना बहुमत खो दिया, और बहुत लोगों को ऐसा लगा कि यह भाजपा के लिए उलटफेर की शुरुआत है।
इस साल पार्टी के लिए रास्ता उसकी उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। फिर भी पार्टी ने, हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के विधानसभा चुनावों में उल्लेखनीय जीत हासिल कर एक बार फिर देश के राजनीतिक मानचित्र पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई।
इस साल भाजपा की कमज़ोरियां और ताकत पूरी तरह से सामने आईं, लेकिन जो बात सबसे अलग रही, वह अपने संदेश और तरीकों को ज़मीन से उठने वाली आवाज़ों के हिसाब से ढालने की इसकी क्षमता थी, जो इसके अभियान की व्यापक रूपरेखा बताती है जिसमें विभिन्न घटक अपनी चुनावी ज़रूरतों के हिसाब से कम-ज्यादा होते रहते हैं।
आम चुनावों के दौरान जहां राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पूरी तरह सक्रिय नहीं दिखा, वहीं उसके सहयोगी और समर्थक बाद में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा के अभियान में पूरी ताकत से मदद कर रहे थे।
भाजपा केंद्रीय मंत्री जे पी नड्डा की जगह नए अध्यक्ष का चुनाव करने जा रही है। ऐसे में माना जा रहा है कि पार्टी के वैचारिक मार्गदर्शक माने जाने वाले हिंदुत्व संगठन की इस चुनाव में महती भूमिका होगी।
सत्तारूढ़ पार्टी ने 2019 में जीती गई 303 सीटों से भी अधिक जनादेश के साथ लोकसभा चुनावों के बाद सत्ता में वापसी के उद्देश्य से ‘अबकी बार, 400 पार’’ का नारा दिया था।
आम चुनाव के नतीजे प्रतिकूल आये। एक तरफ पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों का एक वर्ग बदल गया और मतदाताओं का एक वर्ग भी चिंतित था। भाजपा के ‘अहंकार’ के विरोध में विपक्ष ने ‘संविधान खतरे में’ का नारा दिया, और इसका प्रभाव भी मतदाताओं पर दिखा। बिखरते ‘इंडिया’ गठबंधन की वजह से भारतीय जनता पार्टी ने इस साल खुद को देर से ही सही, संभाल लिया।
भाजपा ने आम चुनाव में अपना बहुमत खो दिया, लेकिन पार्टी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने 543 सदस्यीय सदन में 294 सीट हासिल की, जिससे गठबंधन को बहुमत की सरकार बनाने में कोई कठिनाई नहीं हुयी ।
दूसरी ओर, कांग्रेस को अकेले 99 सीटें मिली, जो पार्टी की उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन था। पिछले एक दशक में आम चुनावों में उसका यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है ।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि ‘धूमिल’ हो जाने का दावा किया, वहीं विपक्षी दल ने लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में उनके 100 दिन के कार्यकाल के बाद उन्हें ‘लोगों की सच्ची आवाज’ करार दिया ।
नया साल आ रहा है, मोदी ही निर्विवाद नेता बने हुए हैं, और उनकी सरकार ने गठबंधन शासन में कोई भी कमजोरी नहीं दिखाई है। वर्षांत आते-आते विपक्षी ‘इंडिया’ गुट में बिखराव के संकेत दिखने लगे और सहयोगी दल कांग्रेस से खुद को दूर कर रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी की ओर से अपने गठबंधन पर लिए गए कुछ महत्वपूर्ण निर्णय पार्टी के लिये दूरदर्शी साबित हुए। इसमें पार्टी का आंध्र प्रदेश में विपक्षी तेलुगु देशम पार्टी के साथ हाथ मिलाना और ओड़िशा में बीजू जनता दल के साथ गठजोड़ समाप्त करना शामिल है।
भाजपा के यह दोनों ही कदम निर्णायक साबित हुए, क्योंकि तेदेपा नेता एन चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में गठबंधन ने आंध्र प्रदेश में सत्ता हासिल की और ओडिशा में पहली बार भाजपा अपने दम पर सत्ता में आई। दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनावों के साथ ही हुए थे।
दोनों राज्यों में राजग ने लोकसभा की 41 सीटें जीतीं, जिससे मोदी के नेतृत्व में केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन की लगातार तीसरी बार सरकार बनने की संभावना बढ़ गई।
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों में भाजपा की बड़ी हार और हरियाणा में 10 लोकसभा सीटों से गिरकर पांच सीटों पर सिमट जाने से इन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिये भाजपा की संभावनाओं के बारे में खराब पूर्वानुमान लगाए गए। दोनों ही राज्य पिछले एक दशक से भाजपा के गढ़ थे।
हालांकि, भाजपा ने अपने विशाल संगठनात्मक तंत्र और संसाधनों के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह सहित शीर्ष नेताओं की जबरदस्त राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर एक ऐसी प्रक्रिया शुरू की, जिसका उद्देश्य आम चुनावों में विपक्ष के अभियान की सफलता को रोकना और विशिष्ट बूथों, जातियों और क्षेत्रों को कवर करते हुए सूक्ष्म प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना था।
पार्टी ने कुछ विशेष वर्ग को ध्यान में रखते हुये कई उपायों की घोषणा की जिसमें महाराष्ट्र में ‘लाड़की बहिन योजना’ भी शामिल है। इसके तहत महिलाओं को नकद सहायता देने का ऐलान किया गया था ।
लोकसभा चुनावों के केवल पांच महीने बाद हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाले तीन दलों के गठबंधन ने विपक्षी महा विकास आघाड़ी को हाशिये पर समेट दिया ओर जबरदस्त बहुमत हासिल किया। पार्टी ने हरियाणा में भी जीत दर्ज की।
भाजपा को हार झारखंड में मिली, जहां महाराष्ट्र के साथ ही विधानसभा चुनाव हुए थे।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले ‘इंडिया’ गठबंधन ने झारखंड में भाजपा को करारी शिकस्त दी और दूसरे कार्यकाल के लिए सत्ता बरकरार रखी। इस गठबंधन में कांग्रेस जूनियर पार्टनर के रूप में शामिल है।
भाजपा ने स्थानीय नेताओं की कमी को देखते हुए, अपने चुनाव प्रभारियों केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा को वहां भेजा था। झारखंड चुनाव में बांग्लादेशियों की कथित घुसपैठ भाजपा के अभियान का मुख्य मुद्दा था। हालांकि, सोरेन के आगे सभी फीके पड़ गये।
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