नयी दिल्ली, 10 नवंबर बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन अपने सहयोगी जनता दल (युनाईटेड) के मुकाबले शानदार रहा है और उसकी अपेक्षा वह कम से कम 30 सीटें अधिक जीतने की ओर बढ़ रही है।
दोनों दल पिछले दो दशकों से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में सहयोगी रहे हैं और यह पहला मौका है जब भाजपा इस गठबंधन में वरिष्ठ सहयोगी के रूप में उभरी है।
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निर्वाचन आयोग के रात लगभग आठ बजे के आंकड़ों के मुताबिक भाजपा 74 सीटों पर जीत की ओर बढ़ रही है। 18 सीटों पर उसके उम्मीदवार जीत दर्ज कर चुके हैं और 56 सीटों पर उन्हें बढ़त हासिल है।
भले ही राज्य में राजग की सरकार बन जाए और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन जाएं लेकिन यह परिवर्तन बिहार के सत्ताधारी गठबंधन में सत्ता के समीकरण को बदलने की क्षमता रखता है।
निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक राजग और महागठबंधन के बीच कांटे का मुकाबला जारी है। राजग 122 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है वहीं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेतृत्व वाला महागठबंधन भी 113 सीटों पर आगे है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 2005 के बाद दूसरी बार सत्ता में आने के बाद अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में मुखर रहेगी।
सबकी नजरें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर रहेंगी कि ऐसी स्थिति में उनका क्या रुख रहेगा। मालूम हो कि कुमार भाजपा के हिन्दुत्व के मुद्दे पर अलग राय रखते रहे हैं। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में जद(यू) को 71 सीटें मिली थी। उस चुनाव में जद(यू) का राजद के साथ गठबंधन था।
भाजपा ने 2013 के लोकसभा चुनाव में जब नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया था तब नीतीश कुमार की पार्टी इसका विरोध करते हुए 17 साल पुराने गठबंधन से अलग हो गई थी। बाद में मोदी के नेतृत्व में जब राजग को लोकसभा चुनावों में भारी जीत मिली तो उधर नीतीश का राजद से मतभेद होने शुरु हो गए। बाद में राजद से अलग होकर उन्होंने भाजपा का दामन थामा और फिर बिहार के मुख्यमंत्री बनें।
साल 2010 के विधानसभा चुनाव में जद(यू) को जहां 115 सीटें मिली थी वहीं भाजपा को 91 सीटें मिली थी। साल 2005 के विधानसभा चुनाव में जद(यू) की जीत का आंकड़ा 88 था तो भाजपा को 55 सीटें मिली थी। साल 2000 के चुनाव में भाजपा को 67 सीटें मिली थी जबकि नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी समता पार्टी को 34 सीटों से संतोष करना पड़ा था। उस समय झारखंड बिहार का हिस्सा था। बाद में समता पार्टी का जनता दल यूनाईटेड में विलय हो गया था।
इस बार के विधानसभा चुनाव के अब तक आए परिणाम और रूझान साफ संकेत दे रहे हैं कि सत्तारूढ़ जद(यू) को जो नुकसान हो रहा है और उसका कारण बन रही है चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) जो इस बार अकेले दम चुनाव मैदान में थी।
हालांकि इसके लिए लोजपा को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। लोजपा का खाता खुलता नहीं दिख रहा है लेकिन उसे अब तक 5.6 फीसदी वोट जरूर मिले हैं।
आंकड़ों पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि लोजपा ने कम से कम 30 सीटों पर जद(यू) को नुकसान पहुंचाया है ।
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