जरुरी जानकारी | द्विपक्षीय निवेश संधि और एफटीए दो अलग-अलग समझौते, इन्हें ऐसे ही बने रहना चाहिए: सूत्र

नयी दिल्ली, 22 दिसंबर एफटीए के तहत ‘निवेश संरक्षण’ तत्वों पर बातचीत करने के लिए कुछ विकसित देशों की भारत से मांग अनुचित है, क्योंकि व्यापार समझौते के तहत एक अलग अध्याय के हिस्से के रूप में इस मामले पर बातचीत करने से बड़े और हानिकारक परिणाम हो सकते हैं। सूत्रों ने यह आशंका जताई है।

उन्होंने कहा कि कानूनी तौर पर कहा जाए तो निवेश संरक्षण तत्व ऐसे विदेशी निवेशकों को व्यापक दायित्व और प्रतिबद्धताएं प्रदान करता है, जो व्यापक प्रकृति के होते हैं।

एक सूत्र ने कहा, “हाल ही में, ऐसे देशों के बारे में बहुत कुछ सुनने को मिला है जो चाहते हैं कि भारत मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के हिस्से के रूप में निवेश अध्याय के साथ-साथ ‘निवेश संरक्षण’ तत्वों पर बातचीत करे। हालांकि, यह गलत है।”

उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ (ईयू) भारत के साथ एक अलग निवेश संरक्षण समझौते या संधि पर बातचीत कर रहा है, न कि भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौते के हिस्से के रूप में।

सूत्र ने कहा, “मुक्त व्यापार समझौते के एक अध्याय के रूप में ‘निवेश संरक्षण’ का व्यापार समझौतों की संरचना पर भी व्यापक और हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है, खासकर तब जब मुक्त व्यापार समझौते में विशेष विवाद निपटान तंत्र हैं, जो देशों को असंबंधित क्षेत्रों में भी, यहां तक ​​कि निवेश विवादों के लिए भी, जवाबी कदम उठाने की अनुमति देते हैं।”

हालांकि, ऐसी चिंता तब पैदा नहीं होगी जब निवेश संरक्षण समझौतों पर स्वतंत्र रूप से और एफटीए से मुक्त होकर बातचीत की जाएगी।

भारत ने 2016 के अपने मॉडल बीआईटी (द्विपक्षीय निवेश संधि) से पहले जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर जैसे देशों के साथ एफटीए में निवेश अध्यायों पर बातचीत की है, लेकिन सावधानी बरतने की आवश्यकता है क्योंकि ऐसे प्रावधानों में विवादों के व्यापार क्षेत्र से बाहर फैलने का खतरा बना रहता है, जब मामले विवाद समाधान के देश-दर-देश स्तर तक बढ़ जाते हैं।

उन्होंने कहा कि चिंता का एक अन्य विषय यह है कि विकसित देशों ने संधि में निवेशक-राज्य विवादों के लिए विवाद समाधान तंत्र के रूप में मध्यस्थता की मांग की है। उन्होंने कहा कि दिलचस्प बात यह है कि विकसित देश स्वयं अपनी राष्ट्रीय नीतियों के कारण विवाद समाधान तंत्र के रूप में निवेशक-राज्य मध्यस्थता से बाहर निकलते देखे गए हैं।

यह उनकी हाल ही में हुई संधियों से स्पष्ट है, उदाहरण के लिए, ब्रिटेन-न्यूजीलैंड, ब्रिटेन-ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका-मेक्सिको-कनाडा समझौते (यूएसएमसीए) के तहत अमेरिका-कनाडा में विवाद निपटान प्रक्रिया के रूप में निवेशक-राज्य मध्यस्थता की व्यवस्था नहीं है।

हाल ही में, कई यूरोपीय देशों के साथ-साथ ब्रिटेन ने भी ऊर्जा चार्टर संधि से खुले तौर पर खुद को अलग कर लिया है, जिसमें निवेशक-राज्य विवाद निपटान के लिए मध्यस्थता तंत्र का प्रावधान था।

मध्यस्थता के साथ एक और बड़ा मुद्दा भारी लागतों का शामिल होना है, जो अंततः राज्य के प्रतिवादी होने की स्थिति में करदाताओं द्वारा वहन किया जाता है।

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