Assembly Elections 2023: नयी दिल्ली, तीन दिसंबर रविवार को आए विधानसभा चुनाव नतीजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील और शासन के मुद्दे पर केंद्रित भारतीय जनता पार्टी की रणनीति का स्पष्ट समर्थन करते नजर आए, जिससे हिंदी पट्टी में फिर से पैठ बनाने की कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिर गया है. ऐसे में इस धारणा को भी बल मिला है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में लगातार तीसरी बार सत्ताधारी दल जनता की पहली पसंद बन सकता है. भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के लिये किसी चेहरे को आगे न करने की रणनीति अपनाई थी और मोदी सरकार के काम को मुख्य रूप से केंद्र में रखते हुए अभियान चलाया। इसे लेकर हालांकि कुछ हलकों में आशंका भी थी, क्योंकि पांच राज्यों के यह चुनाव कर्नाटक विधानसभा चुनाव के कुछ महीनों बाद हो रहे थे, जहां भाजपा की यह रणनीति कारगर नहीं साबित हुई थी. यह भी पढ़ें: मध्य प्रदेश में बीजेपी लहर के वावजूद नरोत्तम मिश्रा समेत शिवराज सिंह चौहान सरकार के 12 मंत्री हारे
कर्नाटक में बड़ी जीत ने कांग्रेस की उम्मीदों को हवा दे दी थी कि आखिरकार उसे स्थानीय नेतृत्व और कल्याणकारी योजनाओं के जरिये भाजपा की चुनावी सफलता की काट मिल गई है, लेकिन रविवार के फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि ‘मोदी का जादू’ अब भी कायम है.
भाजपा के घोषणा-पत्र से लेकर प्रचार अभियान तक सबकुछ मोदी के इर्द-गिर्द घूमता नजर आया. घोषणा-पत्र में जहां ‘मोदी की गारंटी’ का जिक्र था, तो वहीं कल्याण और विकास के वादों को पूरा करने के लिए जनता का समर्थन हासिल करने के लिये मिजोरम को छोड़कर शेष चुनावी राज्यों में प्रधानमंत्री मोदी ने घूम-धूम कर प्रचार किया.
चुनाव की घोषणा के बाद उन्होंने राजस्थान और मध्य प्रदेश में 14-14 और छत्तीसगढ़ में पांच रैलियों को संबोधित किया. उन्होंने राजस्थान में दो और मध्य प्रदेश में एक बड़ा रोड शो किया, इसके साथ ही कई रैली स्थलों पर पहुंचने के लिए वह समर्थकों की भीड़ के बीच से होते हुए पहुंचे.
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में पार्टी की जीत ने उसके कुछ नेताओं को भी चौंका दिया, क्योंकि ज्यादातर एग्जिट पोल ने पूर्व में कांग्रेस को बढ़त दी थी और बाद में उनके पूर्वानुमान मिले-जुले थे.
पार्टी नेताओं ने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह के साथ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हुए केंद्रीय नेतृत्व द्वारा तैयार किया गया प्रचार अभियान भी कारगर रहा.
भाजपा ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार के साथ मतदाताओं के कुछ वर्गों में कथित उदासीनता का मुकाबला गहन जमीनी काम और केंद्रीय मंत्रियों सहित कई क्षेत्रीय क्षत्रपों और सांसदों को चुनाव मैदान में उतारकर किया.
चौहान हालांकि अपनी सरकार की योजनाओं, विशेषकर ‘लाडली बहना’ योजना के इर्द-गिर्द अपना अभियान चलाकर और मतदाताओं के साथ भावनात्मक जुड़ाव बनाकर विरोधियों पर बढ़त बनाने में सफल रहे.
उन्होंने खुद को लोगों के ‘मामा’ के रूप में पेश किया और अधिकांश का मानना है कि रणनीति काम कर गई, खासकर एक मिलनसार और आम आदमी की उनकी छवि कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के चेहरे कमलनाथ के विपरीत थी, जिन्हें आलोचकों ने अहंकारी और टीम को साथ लेकर नहीं चलने वाला माना. तीन हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस की हार से भाजपा को विशेष रूप से खुशी होगी, क्योंकि विपक्षी दल, खासकर उसके नेता राहुल गांधी द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं तक पहुंचने के लिए जातिगत जनगणना के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था.
कभी लोकलुभावन वादे करने को लेकर विपक्षी दलों पर निशाना साधने वाली भाजपा हालांकि बाद में इस रणनीति पर कांग्रेस को टक्कर देती दिखी और बड़े वादे करने में पीछे नहीं रही.
जीत के साथ, भाजपा अब उत्तर और पश्चिम भारत के अधिकांश हिस्सों में सत्ता में है. यह दो क्षेत्र हैं, जिन्होंने 2014 और 2019 में लगातार लोकसभा में उसे बड़ा बहुमत प्रदान किया था.
पार्टी ने 2018 में विधानसभा चुनावों में हारने के बाद भी 2019 के लोकसभा चुनाव में तीन हिंदी भाषी राज्यों में जीत हासिल की थी और इसलिए, अब जीत से संकेत मिलता है कि उसके वैचारिक और शासन के मुद्दों ने तब से गहरी जड़ें जमा ली हैं.
तेलंगाना में हालांकि पार्टी को अन्य तीन राज्यों जैसी सफलता नहीं मिली. वहां कांग्रेस ने अच्छी जीत हासिल की और भारत राष्ट्र समिति के हाथ से सत्ता हथिया ली. भाजपा यहां तीसरे स्थान पर रही.
कर्नाटक में पहले से ही भाजपा सत्ता से बाहर। कर्नाटक एकमात्र दक्षिणी राज्य था, जहां उसने कभी सरकार चलाई है. भाजपा नेतृत्व को पांच राज्यों के उन क्षेत्रों में अपनी रणनीति पर विचार करना होगा, जहां वह देश के शेष हिस्सों में मिली सफलता को दोहरा नहीं पाई.
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