देश की खबरें | अरुणाचल: न्यायालय ने खांडू के परिजनों को ठेका दिए जाने की जांच संबंधी जनहित याचिका पर सुनवाई टाली

नयी दिल्ली, 14 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू के परिजनों के स्वामित्व वाली कंपनियों को सरकारी ठेके दिए जाने की केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) या विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच कराने संबंधी जनहित याचिका की सुनवाई फरवरी के दूसरे सप्ताह तक बृहस्पतिवार को टाल दी।

दो याचिकाकर्ताओं- गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘सेव मोन रीजन फेडरेशन’ और ‘वॉलंटरी अरुणाचल सेना’ की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ के समक्ष दलील दी कि राज्य में सभी सरकारी ठेके मुख्यमंत्री के करीबी परिजनों को दिए जा रहे हैं।

न्यायमूर्ति खन्ना ने शुरू में कहा कि उन्होंने प्रतिवादियों- राज्य सरकार और केंद्र सरकार की ओर से दाखिल जवाब नहीं पढ़ा है।

उन्होंने कहा, ‘‘हम इसे दो फरवरी, 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करेंगे।’’

इसपर भूषण ने कहा, ‘‘कृपया इसे जल्दी (सूचीबद्ध) करें। राज्य सरकार को एक निजी लिमिटेड कंपनी की तरह चलाया जा रहा है।’’

उन्होंने यह भी कहा कि अदालत ने मौजूदा मुख्यमंत्री के पिता से जुड़े एक पुराने मामले में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) से रिपोर्ट मांगी थी।

पीठ ने कहा, ‘‘हम देखेंगे कि इस पर कब बहस होगी।’’

पूर्व प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तत्कालीन पीठ ने 29 जनवरी को जनहित याचिका पर केंद्र, राज्य सरकार, सीबीआई, खांडू और अन्य को नोटिस जारी किये थे और तब से पिछली तीन तारीखों पर कोई ठोस सुनवाई नहीं हुई।

इस मामले में पेमा खांडू के पिता दोरजी खांडू की दूसरी पत्नी रिनचिन ड्रेमा और उनके भतीजे त्सेरिंग ताशी को पक्षकार बनाया गया है।

दोरजी खांडू की 2011 में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उस वक्त वह राज्य के मुख्यमंत्री थे।

याचिका में दावा किया गया कि रिनचिन ड्रेमा की फर्म, ब्रांड ईगल्स को स्पष्ट हितों के टकराव के बावजूद बड़ी संख्या में सरकारी ठेके दिए गए हैं।

भूषण के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ताओं द्वारा यहां संलग्न पारिवारिक कंपनियों के पक्ष में तय किए गए अनुबंध कार्यों की सूची के अवलोकन से पता चलता है कि यह सब मनमाने तरीके से किया गया था, जिसमें चुनिंदा तरीके से पारिवारिक कंपनियों के पक्ष में निविदा मंजूर करायी गयी थी, क्योंकि निविदा में शामिल अन्य कंपनियां पारिवारिक कंपनियों के फायदे के लिए थीं। ऐसी कंपनियों ने केवल अपना नाम पारिवारिक फर्म को दिया और इसके लिए अपना कमीशन प्राप्त किया।’’

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