नयी दिल्ली, 12 अगस्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यालय के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की चेतावनी देते हुए उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उन अधिकारियों के नाम जानना चाहा जिन्होंने आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण दोषी कैदियों की सजा में छूट संबंधी याचिकाओं की फाइल स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।
छूट का मतलब है किसी कैदी की जेल की सजा के एक हिस्से को रद्द करना या कम करना। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 432 के तहत, राज्य सरकारें कैदी के आचरण, पुनर्वास, स्वास्थ्य और जेल में बिताए गए समय जैसे कारकों के आधार पर किसी दोषी को दी गई सज़ा का पूरा या आंशिक हिस्सा माफ कर सकती हैं।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने उसके आदेश के बावजूद राज्य सरकार द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर सजा में छूट संबंधी याचिकाओं से संबंधित फाइल पर कार्रवाई नहीं करने पर अप्रसन्नता जताई।
पीठ ने उत्तर प्रदेश कारागार प्रशासन विभाग के प्रधान सचिव राजेश कुमार सिंह को एक हलफनामे पर ब्योरा देने और इसे स्वीकार करने से इनकार करने वाले अधिकारियों के नाम बताने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा, "हम राजेश कुमार सिंह को हलफनामा दाखिल कर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री सचिवालय के कार्यालय के उन अधिकारियों के नाम बताने का निर्देश देते हैं जिन्होंने फाइल स्वीकार करने से इनकार कर दिया। वह यह भी रिकॉर्ड में रखेंगे कि क्या उन्होंने मुख्यमंत्री सचिवालय में संबंधित अधिकारियों के समक्ष यह बात संज्ञान में लाने का कोई प्रयास किया कि सरकार इस अदालत के 13 मई, 2024 के आदेश से बंधी है।"
शीर्ष अदालत मामले में अगली सुनवाई 20 अगस्त को करेगी। उच्चतम न्यायालय राज्य की लागू नीति के अनुसार एक दोषी कुलदीप की सजा में छूट संबंधी याचिका पर विचार कर रही थी।
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