नयी दिल्ली/चंडीगढ़, 19 नवंबर केंद्र के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से शुक्रवार को अचानक की गई घोषणा का किसानों ने गर्मजोशी से स्वागत किया, लेकिन कानूनों के खिलाफ एक साल से चल रहा आंदोलन अभी समाप्त नहीं हुआ है तथा किसान नेता इस बारे में औपचारिक अधिसूचना की एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी को लेकर कानून बनाने की मांग कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने गुरू नानक जयंती के अवसर पर सुबह देश को संबोधित करते हुए इसे नयी शुरुआत बताया तथा राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर डेरा डाले किसानों से घर वापसी की अपील की। किसान पिछले साल 28 नवंबर से प्रदर्शन कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘मैं आज देशवासियों से क्षमा मांगते हुए सच्चे मन से और पवित्र हृदय से कहना चाहता हूं कि शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रही होगी, जिसके कारण दीपक के प्रकाश जैसा सत्य कुछ किसान भाइयों को हम समझा नहीं पाए हैं।’’
उन्होंने कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, कृषि (सशक्तीकरण और संरक्षण) कीमत, अश्वासन और कृषि सेवा करार कानून तथा आवश्यक वस्तु संशोधन कानून, 2020 को वापस लेने की मांग को लेकर पंजाब के साथ ही हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसान आंदोलन कर रहे थे। इस दौरान करीब 700 लोगों की मौत हो गयी।
अनेक दलों ने मोदी के इस फैसले का स्वागत किया।
तीनों कानूनों को निरस्त करने से भाजपा नेताओं में उम्मीद जगी है कि वह इस फैसले से पंजाब में सिखों की नाराजगी खत्म कर जहां एक नयी शुरुआत करेगी वहीं जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वह अपना जनाधार वापस पाने मे सफल होगी।
भाजपा नेताओं ने कहा कि यह निर्णय सिखों का दिल जीतने के लिए पार्टी के प्रामाणिक प्रयासों को दर्शाता है। ज्ञात हो कि कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन में हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों के साथ बड़ी संख्या में पंजाब के सिख भी शामिल थे।
वहीं, विपक्षी दलों ने किसानों को इसके लिए बधाई दी लेकिन सरकार के फैसले के इस समय को लेकर सवाल खड़ा किया।
किसानों ने प्रधानमंत्री की घोषणा का स्वागत किया लेकिन स्पष्ट किया कि यह पर्याप्त नहीं है।
किसान नेता दर्शन पाल ने ‘पीटीआई ’ से कहा कि इस विषय पर अंतिम निर्णय शनिवार को संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) की कोर समिति की बैठक में लिया जाएगा।
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