अहमदाबाद, नौ नवंबर देश भर में लाखों आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को लाभ पहुंचाने वाले एक महत्वपूर्ण फैसले में गुजरात उच्च न्यायालय ने राज्य और केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वे नियमित रूप से चयनित स्थायी कर्मचारियों के समान उनके साथ व्यवहार करें।
यह देखते हुए कि सरकारी कर्मचारियों के मामले में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और आंगनवाड़ी सहायिकाओं के बीच भेदभाव ‘‘अधिक’’ है, न्यायमूर्ति निखिल एस केरियल की अदालत ने राज्य और केंद्र सरकार को सरकारी सेवा में उक्त दोनों पदों को समाहित करने के लिए संयुक्त रूप से नीति बनाने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि साथ ही उन्हें नियमितीकरण का लाभ भी प्रदान किया जाए।
अदालत ने 1983 और 2010 के बीच केंद्र की एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना के तहत नियुक्त आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और आंगनवाड़ी सहायिकाओं द्वारा दायर याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया।
आईडीसीएस योजना में, छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ-साथ गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए आंगनवाड़ी केंद्र बनाने की परिकल्पना की गई थी, जिन्हें आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और आंगनवाड़ी सहायिकाओं द्वारा संचालित किया जाता है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि 10 साल से अधिक समय तक और दिन में छह घंटे से अधिक काम करने के बावजूद, उन्हें मामूली राशि दी जा रही। उन्होंने अपने ‘‘वाजिब अधिकार’’ के लिए अदालत से निर्देश जारी करने का अनुरोध किया था।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्हें एक नियमित प्रक्रिया के माध्यम से भर्ती किया गया था, लेकिन उन्हें एक योजना के तहत काम करने वाला माना गया, न कि सरकारी कर्मचारी।
अदालत ने कहा कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और आंगनवाड़ी सहायिकाओं को क्रमशः 10,000 रुपये और 5,000 रुपये के मासिक मानदेय से यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार सिविल पदों पर काम करने वाले कर्मचारियों की तुलना में उनके साथ भेदभाव कर रही।
अदालत ने राज्य और केंद्र सरकार को यह घोषित करने का निर्देश दिया कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और आंगनवाड़ी सहायिका नियमित रूप से चयनित स्थायी कर्मचारियों के समान व्यवहार के हकदार होंगे।
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