नयी दिल्ली, 21 मई: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें कहा गया था कि कोविड-19 महामारी के बीच उत्तर प्रदेश के गांवों और छोटे शहरों में समूची स्वास्थ्य प्रणाली ‘राम भरोसे’ है. न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति बी आर गवई की अवकाशकालीन पीठ ने अपने फैसले में कहा कि उच्च न्यायालय के 17 मई के निर्देशों को निर्देशों के रूप में नहीं माना जाएगा और इन्हें उत्तर प्रदेश सरकार को सलाह के रूप में माना जाएगा. शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालयों को ऐसे निर्देश जारी करने से बचना चाहिए जिन्हें क्रियान्वित नहीं किया जा सकता.
उच्च न्यायालय ने मेरठ के एक अस्पताल में पृथक-वार्ड में भर्ती 64 वर्षीय संतोष कुमार की मौत पर संज्ञान लेते हुए राज्य में कोरोना वायरस के प्रसार और पृथक-वास केंद्रों की स्थिति को लेकर दायर जनहित याचिका पर 17 मई को कुछ निर्देश जारी किए थे. जांच की रिपोर्ट के अनुसार संबंधित अस्पताल के डॉक्टर संतोष की पहचान करने में विफल रहे थे और उसके शव को अज्ञात के रूप में निपटा दिया था.
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संतोष अस्पताल के बाथरूम में 22 अप्रैल को बेहोश हो गया था. उसे बचाने के प्रयास किए गए लेकिन उसकी मौत हो गई थी. अस्पताल के कर्मचारी उसकी पहचान नहीं कर पाए थे और उसकी फाइल खोजने में भी विफल रहे। इस तरह, इसे अज्ञात शव का मामला बताया गया था.
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