देहरादून, 31 दिसंबर साल 2000 में उत्तराखंड की स्थापना होने के बाद से इसके सामाजिक-राजनीतिक इतिहास में वर्ष 2024 को सबसे महत्वपूर्ण वर्ष कहना गलत नहीं होगा।
उत्तराखंड सरकार ने इस साल समान नागरिक संहिता के लिए कानून पारित किया, जिससे यह देश में ऐसा करने वाला पहला राज्य बन गया। समान नागरिक संहिता, एक ऐसा मुद्दा है जिस पर तीखी बहस हुई है और इस पर लोगों की राय अलग-अलग है।
वैसे तो भाजपा सरकार के राजनीतिक और विधायी एजेंडे में समान नागरिक संहिता केंद्र में और प्रमुख मुद्दा रहा है, लेकिन इसने संभावित दंगाइयों को रोकने के लिए एक कानून भी बनाया है। इस कानून के तहत, किसी भी उपद्रव के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई सरकार दंगाइयों से करेगी।
उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक पारित होने के ठीक एक दिन बाद हल्द्वानी के मुस्लिम बहुल बनभूलपुरा क्षेत्र में आठ फरवरी को हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद ही उत्तराखंड सार्वजनिक एवं निजी संपत्ति क्षति वसूली अधिनियम को लागू किया गया था।
हल्द्वानी में एक अवैध मदरसा और उसके परिसर में नमाज अदा करने के लिए बनाए गए एक छोटे से ढांचे को गिराए जाने से दंगा भड़क गया था, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 100 पुलिसकर्मियों सहित कई लोग घायल हो गए थे।
सुदूर हिमालय में जून 2024 में ट्रैकिंग करते समय बर्फीला तूफान आने के कारण भारत के नौ पर्वतारोहियों की मौत हो गई थी।
केदारघाटी में अगले महीने यानी जुलाई में चारधाम यात्रा के दौरान भारी बारिश और कई बार भूस्खलन होने से 17 लोगों की मौत हो गई थी और 25 लोग घायल हो गए थे। लाखों यात्री फंस गए थे, जिसके बाद यात्रा को स्थगित कर दिया गया।
उत्तराखंड के लिए नवंबर का महीना घातक साबित हुआ क्योंकि इस दौरान हुई दो दुर्घटनाओं में 45 लोगों की मौत हो गई थी।
अल्मोड़ा में चार नवंबर को खचाखच भरी एक बस के गहरी खाई में गिर जाने से 36 लोगों की मौत हो गई थी।
अल्मोड़ा में हुई इस घटना के ठीक एक सप्ताह बाद दूसरी दर्दनाक घटना हुई, जिसमें एक पार्टी से लौट रहे युवाओं की इनोवा कार एक ट्रक से टकरा गई, जिससे कार में मौजूद सभी छह लोगों की मौत हो गई।
इस वर्ष उत्तराखंड में चारधाम यात्रा के दौरान स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण 240 से अधिक तीर्थयात्रियों की मृत्यु हो गई।
समान नागरिक संहिता कई साल तक भाजपा का राष्ट्रीय स्तर का एजेंडा रहा है। लेकिन उत्तराखंड में पार्टी की सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले इसे कानून बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए, जिससे यह ऐसा करने वाली पहली सरकार बन गई।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा गठित और उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने फरवरी में राज्य सरकार को चार खंडों में यूसीसी का एक व्यापक मसौदा प्रस्तुत किया।
धामी सरकार ने कुछ दिनों बाद विधानसभा में उत्तराखंड समान नागरिक संहिता विधेयक पेश किया और इसे 7 फरवरी को पारित कर दिया गया।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 11 मार्च को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) अधिनियम को मंजूरी दे दी, जिससे यह देश का ऐसा पहला राज्य बन गया जहां यूसीसी पारित किया गया है।
राज्य सरकार ने कार्यान्वयन के नियम निर्धारित करने के लिए पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह की अध्यक्षता में नौ सदस्यीय समिति का गठन किया है।
असम सहित कई भाजपा शासित राज्य पहले ही उत्तराखंड की समान नागरिक संहिता को मॉडल के रूप में अपनाने की इच्छा व्यक्त कर चुके हैं। समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि ऐसी संभावना है कि जनवरी तक राज्य में समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया जाएगा।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में संसद में कहा कि भाजपा शासित हर राज्य समान नागरिक संहिता लागू करेगा, जैसा कि उत्तराखंड में किया गया।
उत्तराखंड में 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में राज्य में यूसीसी लागू करना धामी का प्रमुख चुनावी वादा था और इसी के बाद भाजपा दोबारा राज्य की सत्ता में लौटी थी। साल 2000 में उत्तराखंड की स्थापना होने के बाद से कोई भी पार्टी लगातार दो बार राज्य में सरकार बनाने की उपलब्धि हासिल नहीं कर पाई थी, लेकिन भाजपा ने दो साल पहले हुए चुनाव में यह उपलब्धि अपने नाम कर ली।
भाजपा ने इस साल हुए लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड में अच्छा प्रदर्शन किया तथा लगातार तीसरी बार सभी पांचों सीटों पर कब्जा बरकरार रखा।
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