नयी दिल्ली, 25 दिसंबर विश्वविद्यालयीन सामान्य प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी) में अनियमितताओं के कारण शैक्षणिक कैलेंडर में व्यापक व्यवधान से लेकर जामिया मिलिया इस्लामिया को एक साल के लंबे इंतजार के बाद कुलपति मिलने तक, दिल्ली के विश्वविद्यालयों में 2024 में कई उतार-चढ़ाव देखे गए।
इस वर्ष कांग्रेस समर्थित नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) ने सात साल के अंतराल के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ की कमान संभाली और वामपंथी गठबंधन ने कोविड महामारी के कारण चार साल के अंतराल के बाद हुए जवाहरलाल नेहरू छात्र संघ (जेएनयूएसयू) चुनाव में अपनी पकड़ बरकरार रखी।
साल की शुरुआत काफी समय से लंबित जेएनयूएसयू चुनाव के साथ हुई, लेकिन सीयूईटी विवाद सुर्खियों में रहा और इसने छात्रों के साथ-साथ विश्वविद्यालयों को भी चिंता में डाल दिया।
*** सीयूईटी में देरी और विरोध प्रदर्शन:
राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) द्वारा आयोजित प्रवेश परीक्षाओं में अनियमितताओं और पेपर लीक के कारण सीयूईटी परिणामों की घोषणा में देरी ने देश भर के विश्वविद्यालयों की शैक्षिक गतिविधियां प्रभावित कीं।
अराजकता के कारण कई छात्र संगठनों ने व्यापक विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें एनएसयूआई द्वारा एनटीए मुख्यालय की घेराबंदी भी शामिल थी। पीएचडी दाखिले में देरी हुई और कई विश्वविद्यालयों ने सप्ताहांत में कक्षाएं आयोजित करके बर्बाद हुए समय की भरपाई करने की कोशिश की, जिससे छात्रों और शिक्षकों दोनों पर बोझ बढ़ गया।
*** एक उथल-पुथल भरा डूसू चुनाव:
इस साल दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव सुर्खियों में रहा क्योंकि बड़े पैमाने पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के कारण पहली बार लगभग दो महीने तक परिणाम स्थगित रहे, जिसके कारण उच्चतम न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा।
सत्ताईस सितंबर को चुनाव हुए थे, जिसके परिणाम एक दिन बाद घोषित किए जाने थे। हालांकि, कानूनी बाधाओं के कारण दो बार स्थगित होने के बाद लगभग दो महीने के अंतराल पर 25 नवंबर को परिणाम घोषित किए गए।
डूसू चुनाव सात वर्षों के बाद एनएसयूआई की सत्ता में वापसी एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है, लेकिन चुनाव में मतदान मानदंडों के उल्लंघन की घटनाएं हुईं, जिससे दिल्ली विश्वविद्यालय में चुनावों की प्रकृति पर सवाल उठे।
*** जेएनयूएसयू चुनाव और लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन:
कोविड-19 महामारी के बाद पहली बार जेएनयू में छात्र संघ चुनाव हुए, जिसमें वामपंथी संगठनों ने नियंत्रण बरकरार रखा। हालांकि, परिसर में अशांति भी देखी गई, जिसमें बेहतर छात्रावास सुविधाओं से लेकर प्रशासनिक निर्णयों में पारदर्शिता बढ़ाने जैसी विभिन्न मांगों को लेकर 17 दिन की भूख हड़ताल भी शामिल थी।
*** जामिया के लिए प्रशासनिक उपलब्धियां और चुनौतियां:
जामिया मिलिया इस्लामिया को एक साल से अधिक समय के बाद आखिरकार अपना नया कुलपति मिला, जिसके साथ ही प्रशासनिक अस्थिरता का लंबा दौर खत्म हो गया।
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