
क्या जर्मनी, यूक्रेन को टॉरस मिसाइल देगा? क्या जर्मनी को ये मिसाइल देना चाहिए? क्या इससे रूस के साथ उसकी जंग छिड़ जाएगी? जर्मनी में रह-रहकर यह सवाल सिर उठा रहा है. नई सरकार के आने की आहट से समीकरण जटिल हो गए हैं.एक संभावित मिसाइल आपूर्ति पर जर्मनी को रूस से चेतावनी मिली है. रूस ने कहा है कि अगर यूक्रेन ने टॉरस नाम के मिसाइल से उसपर हमला किया, तो मॉस्को इसे युद्ध में जर्मनी की सीधी भागीदारी मानेगा.
यह पहली बार नहीं है, जब टॉरस मिसाइल को लेकर रूस ने जर्मनी को चेताया हो. अभी हाल ही में 14 अप्रैल को भी रूसी सरकार ने ऐसी ही चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर जर्मनी ने यूक्रेन को टॉरस मिसाइल दिया, तो इससे युद्ध के और उग्र होने का खतरा है.
किसने कहा कि जर्मनी, यूक्रेन को टॉरस देगा?
जर्मनी में नई सरकार के लिए पार्टियों के बीच गठबंधन को लेकर हो रही बातचीत पूरी हो चुकी है. उम्मीद है कि एक महीने में नई सरकार बन सकती है. क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन (सीडीयू) के पास अकेले सरकार बनाने के लिए जरूरी संख्या नहीं है. उसके नेतृत्व में गठित हो रही सरकार को एसपीडी से समर्थन मिल रहा है. एसपीडी, मौजूदा चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की पार्टी है.
अचानक कीव पहुंचे जर्मन चांसलर, कई हथियार देने का एलान
सीडीयू के नेता फ्रीडरिष मैर्त्स का नया चांसलर बनना तय है. वह यूक्रेन के समर्थक हैं और रूस से चल रहे युद्ध में कीव के हाथ मजबूत करने के पक्षधर रहे हैं. यूक्रेन कहता रहा है कि रूस से लड़ने के लिए उसे उन्नत हथियारों की जरूरत है, खासतौर पर लंबी दूरी के मिसाइलों की. यूक्रेन यूरोपीय सहयोगियों से हथियार देने की अपील करता रहा है और इसी क्रम में जर्मनी के टॉरस मिसाइलों का जिक्र होता है. हाल ही में मैर्त्स के एक बयान के बाद फिर से इस जिक्र ने जोर पकड़ा.
बीते दिनों एक इंटरव्यू में मैर्त्स ने कहा कि कीव को मिसाइल देने का विकल्प खुला हुआ है, बशर्ते यह यूरोपीय सहयोगियों के साथ तालमेल बिठाकर किया जाए. उन्होंने कहा, "मैं हमेशा से कहता आ रहा हूं कि मैं ऐसा करूंगा, लेकिन केवल यूरोपीय सहयोगियों के साथ समन्वय बिठाते हुए." यूक्रेन ने इस बयान का स्वागत किया. ब्रिटेन ने भी कहा कि अगर जर्मनी मिसाइल देने का फैसला करे, तो वह समर्थन करेगा.
क्या है टॉरस मिसाइल और यह क्या कर सकता है?
टॉरस लंबी दूरी का मिसाइल है. यह 500 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकता है. यह मिसाइल 'स्टील्थ' तकनीक से लैस है. यह तकनीक जंग के मैदान पर किसी हथियार को 'छिपे' रहने की ताकत देती है. इसके रडार की नजर और पकड़ में आने की संभावना कम होती है.
यूक्रेन का आरोप रूस ने आईसीबीएम से हमला किया
यूक्रेन लंबी दूरी के मिसाइलों से रूस में भीतर तक हमला करना चाहता है. जिस तरह रूस ने यूक्रेनी ऊर्जा ढांचे को बार-बार निशाना बनाया, उसी तरह यूक्रेन भी मॉस्को पर दबाव बढ़ाने के लिए उसके अंदरूनी इलाकों में जरूरी बुनियादी ढांचे पर हमला करना चाहता है. यहां टॉरस माकूल नतीजे दे सकता है.
क्या किसी और देश ने यूक्रेन को मिसाइल दिए?
'स्टॉर्म शैडो' लंबी दूरी का ब्रिटिश-फ्रेंच मिसाइल है. 1,300 किलो वजनी यह मिसाइल अधिकतम 250 किलोमीटर की दूरी तक वार कर सकता है. हथियार निर्माता कंपनी एमबीडीए के मुताबिक, एयरक्राफ्ट से छोड़ा जाने वाला यह मिसाइल दिन या रात किसी भी समय और कैसे भी मौसम में बहुत सटीक हमला कर सकता है.
यूक्रेन को यह मिसाइल ब्रिटेन और फ्रांस से मिला है. नवंबर 2024 में बीबीसी ने खबर दी थी कि यूक्रेन ने पहली बार इससे रूसी भूभाग के अंदर के लक्ष्यों पर हमला किया था. इससे पहले भी वह इस मिसाइल का इस्तेमाल कर रहा था, लेकिन केवल उन इलाकों में जिनपर रूस का कब्जा है.
यूक्रेन को सबसे ज्यादा सैन्य सहायता अमेरिका ने दी है. अमेरिका ने यूक्रेन को एटीएमएस मिसाइल भी दिए. इसे "आर्मी टैक्टिकल मिसाइल सिस्टम" भी कहा जाता है. लॉकहीड मार्टिन का बनाया यह मिसाइल 300 किलोमीटर की दूरी तक वार कर सकता है.
यह मिसाइल बाइडेन प्रशासन ने यूक्रेन को दिया था, हालांकि यूक्रेन को रूस के भीतर इससे हमला करने की इजाजत नहीं थी. इसकी वजह थी कि रूसी भूभाग में अमेरिकी या नाटो हथियारों से हमले के कारण संघर्ष भड़क सकता था. बाइडेन ने यूक्रेन पर लगाई गई शर्तों का समर्थन करते हुए कहा था, "हम तीसरा विश्व युद्ध टालने की कोशिश कर रहे हैं."
रूस की ओरेश्निक मिसाइल: क्या है ये नया हथियार?
नवंबर 2024 में बाइडेन प्रशासन ने यूक्रेन को रूसी जमीन के भीतर इस मिसाइल के इस्तेमाल की हरी झंडी दे दी. इसी महीने यूक्रेन ने पहली बार रूस के दक्षिण-पश्चिमी ब्रायंस्क प्रांत में मिसाइल से हमला किया. यह हमला गोला-बारूद के एक डिपो पर किया गया था. अमेरिका से इस हरी झंडी की दो मुख्य वजहें बताई गईं.
जो बाइडेन ने रूस के खिलाफ मिसाइलों के इस्तेमाल की मंजूरी दी
पहला कारण उन खबरों से जुड़ा था, जिनके मुताबिक यूक्रेन से युद्ध लड़ रही रूसी सेना में उत्तर कोरिया के भी सैनिक मौजूद हैं. आरोप है कि उत्तर कोरिया ने अक्टूबर 2024 में अपने करीब 10,000 सैनिकों को रूस भेजा. युद्ध में रूस का किसी और देश के सैनिकों को शामिल करना, उसकी ओर से जंग का विस्तार माना गया.
इसके अलावा एक और वजह थी, डॉनल्ड ट्रंप को चुनाव में मिली जीत. जनवरी 2025 में उन्हें कार्यभार संभालना था. ट्रंप पहले ही युद्ध खत्म करवाने की बात कर रहे थे. वह यूक्रेन को दी जा रही सैन्य सहायता रोकने और शांति समझौता करवाने का समर्थन कर रहे थे. ऐसे में युद्ध के मैदान में बढ़ा मनोबल वार्ता की मेज पर यूक्रेन के हाथ मजबूत कर सकता था.
यूक्रेन संघर्ष-विराम वार्ता पर पुतिन से 'बहुत नाराज' ट्रंप
रूस क्या कहता है?
दरअसल, पश्चिमी देशों से यूक्रेन को जो लंबी दूरी के मिसाइल मिले, उनका इस्तेमाल सशर्त था. यूक्रेन इन हथियारों को आत्मरक्षा के लिए इस्तेमाल कर सकता था, वो भी वाजिब सैन्य ठिकानों पर. उसे ऐसे मिसाइलों को रूस में बहुत अंदर तक दागने की अनुमति नहीं थी.
रूस, यूक्रेन को हथियार दिए जाने का विरोध करता रहा है. मई 2024 में रूस ने नाटो और अमेरिका पर आरोप लगाया कि यूक्रेन को हथियार देकर वह तनाव को भड़का रहे हैं.
सितंबर 2024 में भी मीडिया के साथ एक बातचीत में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से इसपर सवाल पूछा गया. एक पत्रकार ने पूछा, "पिछले कुछ दिनों से हम ब्रिटेन और अमेरिका में नेतृत्व के बहुत ऊंचे स्तर से ऐसे बयान सुन रहे हैं. इनमें कहा जा रहा है कि कीव को लंबी दूरी के पश्चिमी हथियारों से रूस में भीतर तक हमला करने की अनुमति दी जाएगी. जहां तक हम देख पा रहे हैं, लगता है कि ये फैसला या तो लिया जाने वाला है, या लिया जा चुका है. क्या आप टिप्पणी कर सकते हैं कि ये हो क्या रहा है?"
जवाब में पुतिन ने कहा कि यूक्रेनी सेना पश्चिमी देशों के दिए अत्याधुनिक, बेहद सटीक निशाना लगाने में सक्षम लंबी दूरी के हथियारों का इस्तेमाल करने में सक्षम ही नहीं है. पुतिन के मुताबिक, "वो ये कर ही नहीं सकते. उपग्रहों से मिले इंटेलिजेंस डेटा के बिना इन हथियारों को तैनात करना नामुमकिन है, और यूक्रेन के पास ये है नहीं. इसे केवल यूरोपीय उपग्रहों या अमेरिकी सैटेलाइटों से, यानी नाटो सैटेलाइटों का इस्तेमाल करके ही किया जा सकता है."
उन्होंने आगे कहा कि केवल नाटो के ही सैन्यकर्मी इन मिसाइलों का फ्लाइट मिशन तय कर सकते हैं, यूक्रेनी सैनिक नहीं. ऐसे में "यह यूक्रेन को इन हथियारों से रूस पर हमला करने की इजाजत देने का सवाल नहीं है. यह सवाल है तय करने का कि नाटो देश सैन्य संघर्ष में सीधे शामिल होंगे या नहीं."
रूस-यूक्रेन युद्ध: क्या चाहते हैं पुतिन?
पुतिन के मुताबिक, अगर यूक्रेन को संबंधित अनुमति मिलती है, तो इसका मतलब होगा कि नाटो के देश, अमेरिका और यूरोपीय देश यूक्रेन के साथ जारी युद्ध में सीधे-सीधे हिस्सेदार बन रहे हैं. पुतिन ने चेतावनी दी थी, "इसका मतलब होगा कि नाटो के देश, अमेरिका और यूरोपीय सदस्य रूस के साथ युद्ध लड़ रहे हैं."
क्या टॉरस मिसाइल देने पर जर्मनी में सहमति है?
चांसलर ओलाफ शॉल्त्स, नई सरकार के गठन तक इस पद पर हैं. वह यूक्रेन को टॉरस मिसाइल देने का विरोध करते हैं. फरवरी 2024 में इस संबंध में जर्मन संसद में एक मतदान भी हुआ. यह प्रस्ताव सीडीयू-सीएसयू ने पेश किया था. विपक्षी नेता फ्रीडरिष मैर्त्स ने सत्तारूढ़ गठबंधन से अपील की कि वह यूक्रेन को टॉरस मिसाइल देने का समर्थन करे. प्रस्ताव पर 182 सांसदों ने प्रस्ताव के पक्ष में और 480 ने विरोध में वोट डाला.
पूर्व चांसलर ने भी यूक्रेन को जर्मन मिसाइल न देने का समर्थन किया
फिर नवंबर 2024 में जब बाइडेन ने अमेरिका में बने एटीसीएमएस मिसाइल को रूसी इलाकों में इस्तेमाल करने की अनुमति दी, तब भी जर्मनी में टॉरस पर बहस छिड़ी. सीडीयू मिसाइल देने का समर्थन कर रही थी. गठबंधन सरकार में शॉल्त्स के सहयोगी रहे रोबर्ट हाबेक ने कहा कि अगर वो सरकार का नेतृत्व कर रहे होते, तो यूक्रेन को टॉरस दे देते.
ग्रीन पार्टी भी यही रुझान दिखा रही थी. बावजूद इसके शॉल्त्स अपने रुख पर कायम रहे. उन्होंने कहा कि इससे जर्मनी पर यूक्रेन और रूस के युद्ध में खिंचने का खतरा है. शॉल्त्स और उनकी पार्टी एसपीडी ने बार-बार कहा कि यूक्रेन को टॉरस देने का सवाल ही नहीं है.
अब एकबार फिर टॉरस चर्चा में है. हालांकि, इस बार परिस्थितियां अलग हैं. शॉल्त्स अब चांसलर नहीं, सहयोगी पार्टी के नेता होंगे. शॉल्त्स और मैर्त्स, दोनों के रुख में बदलाव नहीं आया है. मैर्त्स अब भी यूक्रेन को टॉरस देना चाहते हैं और शॉल्त्स अब भी इनकार कर रहे हैं.