साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, हाल के महीनों में जीपीएस "स्पूफिंग" में 400 फीसदी की वृद्धि हुई है. अब इसने एक नया और दिलचस्प मोड़ लिया है: समय को हैक करने की क्षमता.एविएशन एडवाइजरी बॉडी ओपीएस ग्रुप का कहना है कि हाल के महीनों में कमर्शियल विमानों को प्रभावित करने वाली जीपीएस स्पूफिंग घटनाओं में काफी वृद्धि हुई है. इनमें से कई घटनाओं में अवैध ग्राउंड-आधारित जीपीएस सिस्टम शामिल होते हैं. ये खासतौर पर उन इलाकों में सक्रिय हैं, जहां युद्ध चल रहे हैं. विज्ञान और तकनीक के विशेषज्ञों के मुताबिक, ये आसपास के हवाई क्षेत्र में गलत स्थानों का प्रसारण करते हैं ताकि आने वाले ड्रोन या मिसाइलों को भ्रमित किया जा सके.
ब्रिटिश साइबर सुरक्षा फर्म पेन टेस्ट पार्टनर्स के संस्थापक केन मुनरो ने लास वेगस में डेफ कॉन हैकिंग सम्मेलन के दौरान कहा, "हम अक्सर जीपीएस को केवल स्थान के स्रोत के रूप में सोचते हैं, लेकिन वास्तव में यह समय का भी एक स्रोत है. हमने देखा है कि स्पूफिंग के दौरान विमानों पर लगी घड़ियों ने अजीब व्यवहार करना शुरू कर दिया है."
कई घटनाएं हुईं
रॉयटर्स के साथ एक बातचीत में मुनरो ने एक हालिया घटना का उल्लेख किया, जिसमें एक प्रमुख पश्चिमी एयरलाइंस के विमान में घड़ियों को अचानक सालों आगे बढ़ा दिया गया. इससे विमान का अपने डिजिटल एन्क्रिप्टेड संचार प्रणाली से कनेक्शन टूट गया. इस घटना के कारण विमान को हफ्तों तक जमीन पर रहना पड़ा और इंजीनियरों ने इसके ऑनबोर्ड सिस्टम को मैन्युअल रूप से रीसेट किया.” मुनरो ने एयरलाइन या विमान का नाम बताने से इनकार कर दिया.
कैसे काम करता है नेवीगेशन
अप्रैल में फिनएयर ने एस्टोनिया के पूर्वी शहर तार्तू के लिए उड़ानों को अस्थायी रूप से रोक दिया था. इसकी वजह जीपीएस स्पूफिंग की घटनाओं को बताया गया था. टालिन का आरोप था कि ये हमले रूस ने किए थे.
ब्लैक सी क्षेत्र, विशेष रूप से रूस और यूक्रेन के तटों के पास जीपीएस स्पूफिंग की बहुत घटनाएं दर्ज की गई हैं. इससे जहाजों को धोखा दिया गया और उन्हें लगा कि वे अपने वास्तविक स्थानों से कई किलोमीटर दूर हैं.
अमेरिका में ट्रकिंग उद्योग को प्रभावित करने वालीं कई जीपीएस स्पूफिंग घटनाएं दर्ज हो चुकी हैं. नेविगेशन के लिए जीपीएस का उपयोग करने वाले ट्रक ड्राइवरों को झूठे सिग्नलों के कारण रास्ता बदलना पड़ा या देरी का सामना करना पड़ा.
एशिया में हवाई यातायात को प्रभावित करने वाले ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जहां जीपीएस स्पूफिंग के कारण महत्वपूर्ण क्षेत्रों के पास हवाई यातायात प्रभावित हुआ. यह विशेष रूप से सैन्य और कमर्शियल विमानों के लिए चिंताजनक था, जहां सटीकता बहुत महत्वपूर्ण होती है.
हाल के वर्षों में स्पूफिंग ऐप्स आम जनता के लिए अधिक सुलभ हो गए हैं, जिससे लोगों को अपने स्मार्टफोन पर जीपीएस स्थान को नकली बनाने की अनुमति मिलती है. इसका इस्तेमाल प्रतिबंधित सामग्री या पोकीमोन गेम्स आदि के इस्तेमाल में हो रहा है.
जीपीएस स्पूफिंग कैसे काम करती है
जीपीएस स्पूफिंग एक तकनीक है, जिसका प्रयोग जीपीएस रिसीवर को धोखा देने के लिए किया जाता है ताकि उसे यह विश्वास हो कि वह किसी अन्य स्थान या समय में है. इसे नकली जीपीए सिग्नल प्रसारित करके या वैध उपग्रहों से प्राप्त सिग्नलों में हेरफेर करके किया जा सकता है.
स्पूफर एक सिग्नल प्रसारित करता है, जो एक वैध जीपीएस उपग्रह की नकल करता है. अक्सर ऐसा वास्तविक उपग्रह सिग्नलों को ओवरराइड करने के लिए थोड़ी अधिक शक्ति के साथ किया जाता है. जीपीएस रिसीवर स्पूफ किए गए सिग्नल को उठाता है और इसे वास्तविक मानकर गलत डेटा के आधार पर अपने स्थान की गणना करता है. इसके परिणामस्वरूप जीपीएस रिसीवर गलत स्थान, गति या समय की रिपोर्ट करता है.
जीपीएस यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम ने काफी हद तक जमीन पर मौजूद महंगे उपकरणों का काम संभाल लिया है. ये उपकरण विमानों को लैंडिंग के लिए मार्गदर्शन करने के लिए रेडियो बीम्स प्रसारित करते थे. हालांकि, जीपीएस सिग्नल को ब्लॉक या विकृत करना अपेक्षाकृत आसान है, क्योंकि इसके लिए सस्ते और आसानी से उपलब्ध पार्ट्स और सीमित तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है.
मुनरो ने रॉयटर्स को बताया, "क्या इससे कोई विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाएगा? नहीं, ऐसा नहीं है. लेकिन यह थोड़ी भ्रम की स्थिति पैदा करता है और आप एक ऐसी स्थिति में आ सकते हैं जिसे हम घटनाओं के सिलसिले के रूप में जानते हैं, जहां पहले कुछ मामूली होता है, फिर कुछ और मामूली होता है, और फिर कुछ गंभीर होता है."