बांग्लादेश में सांप्रदायिक तनाव और बढ़ने का अंदेशा
बांग्लादेश में स्थितियां अब भी संवेदनशील बनी हुई हैं.
बांग्लादेश में स्थितियां अब भी संवेदनशील बनी हुई हैं. अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के लोगों पर हमले जारी हैं. अंतरिम सरकार में गृह विभाग के सलाहकार जनरल एम. शखावत हुसैन ने माना है कि अल्पसंख्यकों पर हमले हुए हैं.बांग्लादेश में नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार के शपथ लेने और हिंसा रोकने की अपील के बावजूद विभिन्न इलाकों में अल्पसंख्यक हिंदू तबके के लोगों पर हमले जारी हैं. खुलना के अलावा रंगपुर, दिनाजपुर, सातखीरा, चटगांव, किशोरगंज, सिराजगंज और हबीगंज के विभिन्न इलाकों में हमलों के साथ आगजनी और लूटपाट का सिलसिला तेज होने की खबर है.
बीते सप्ताह आंदोलनकारियों ने राजधानी ढाका में जाने-माने गायक राहुल आनंद का पुश्तैनी घर भी जला दिया. इसमें संगीत के तमाम साजो-सामान भी जलकर राख हो गए. अब अल्पसंख्यक तबके के लोग इसके खिलाफ एकजुट होकर प्रदर्शन कर रहे हैं. चटगांव और ढाका समेत कई बड़े शहरों में हिंदुओं के विरोध प्रदर्शन के कारण देश में सांप्रदायिक तनाव का अंदेशा बढ़ गया है.
मंदिरों की सुरक्षा में सेना तैनात
इस बीच, अंतरिम सरकार में गृह विभाग के सलाहकार जनरल एम. शखावत हुसैन ने माना है कि अल्पसंख्यकों पर हमले हुए हैं और उनकी सुरक्षा में चूक हुई है. उन्होंने हिंदुओं से इसके लिए माफी भी मांगी है.
हिंदू परिवारों का कहना है कि इस हिंसा ने 1971 के मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना की ओर से किए गए अत्याचार के जख्मों को ताजा कर दिया है. कुछ इलाकों से हिंदुओं के मोहल्लों और मंदिरों की सुरक्षा में तैनात मुस्लिम युवकों की तस्वीरें और खबरें भी सामने आ रही हैं. हालांकि, इनके मुकाबले हमले की घटनाएं कहीं ज्यादा हैं.
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बड़े पैमाने पर हिंसा और थानों पर हमले के बाद देश के तमाम पुलिस स्टेशन खाली हो गए थे. बीते हफ्ते आंदोलनकारियों के हमले में 14 पुलिसवालों की मौत के बाद तमाम पुलिसकर्मी अपनी जान बचाकर भाग गए थे. अब बीते तीन दिनों से धीरे-धीरे थाने में कर्मचारी लौटने लगे हैं, लेकिन उनकी तादाद काफी कम है.
आलम यह है कि जिन थानों में पुलिसकर्मी काम पर लौटे हैं, वहां बाहर उनकी सुरक्षा के लिए सेना के जवान तैनात हैं. इससे कानून व्यवस्था की स्थिति को समझा जा सकता है. ढाका के काली मंदिर समेत देश के कई अन्य मंदिरों के सामने भी सेना को तैनात किया गया है.
हिंदू समुदाय डरा हुआ है
दक्षिण एशिया के बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के बढ़ते पलायन के कारण उनकी आबादी में लगातार गिरावट आ रही है. 2011 की जनगणना में जहां हिंदुओं की आबादी 8.54 फीसदी थी, वहीं 2023 की जनगणना में यह घटकर 7.95 फीसदी रह गई है. देश की कुल आबादी करीब 16.51 करोड़ है.
हिंदुओं की आबादी के लिहाज से सिलहट डिवीजन पहले स्थान पर है. इसके बाद क्रमशः खुलना, बरिसाल, चटगांव, राजशाही, ढाका और मैमनसिंह डिवीजन का स्थान है. बांग्लादेश के चार जिले ऐसे हैं, जहां हिंदू समुदाय की आबादी 20 फीसदी से अधिक है. ढाका डिवीजन का गोपालगंज हिंदुओं की आबादी के लिहाज से पहले स्थान पर है. यहां कुल आबादी में 26.94 फीसदी हिंदू हैं. लेकिन यहां रहने वाले हिंदू परिवार भी 5 अगस्त से आतंक में दिन काट रहे हैं.
लोगों ने क्या अनुभव बताए?
सुप्रतिम मंडल, सिलहट डिवीजन के मौलवीबाजार जिले के दासपाड़ा मोहल्ले में रहते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि 5 अगस्त की सुबह से ही माहौल बेहद तनावपूर्ण हो गया था. पुलिस प्रशासन या कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं बची थी. सड़कों पर सेना जरूर तैनात थी, लेकिन वे लोग चुप्पी साधे खड़े थे. बरसों से साथ रहने वाले पड़ोसी भी खून के प्यासे हो गए थे. सुप्रतिम अपने परिवार के साथ किसी तरह बंगाल के उत्तर 24-परगना जिले में रहने वाले एक रिश्तेदार के घर पहुंचे हैं.
ढाका से करीब 100 किलोमीटर दूर मदारीपुर जिले में रहने वाले सरकारी कर्मचारी तपोब्रत मजूमदार फोन पर हुई बातचीत में डीडब्ल्यू से कहते हैं, "मेरे गांव में रातभर हिंसा का तांडव चला है. इसमें कई घर जला दिए गए हैं और संपत्ति लूट ली गई है. वहां मोटरसाइकिल के एक शो रूम में भी आग लगा दी गई. मेरे कम-से-कम 17 परिजन बीते सप्ताह से ही लापता हैं."
दूरदराज के इलाकों में बिगड़ रहे हैं हालात
ढाका में 'प्रथम आलो' बंग्ला दैनिक के एक वरिष्ठ पत्रकार नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताते हैं, "अंतरिम सरकार के शपथ लेने के बावजूद दूरदराज के इलाकों में हालात सुधरने की बजाय बिगड़ते ही जा रहे हैं. अब भीड़ में बड़े पैमाने पर इस्लामिक कट्टरपंथी और उपद्रवी तत्व भी शामिल हो गए हैं. वे हिंदुओं को शेख हसीना का समर्थक बताते हुए उनके घरों पर हमले कर रहे हैं. कई व्यापारियों से प्रोटेक्शन मनी के तौर पर करोड़ों रुपए मांगे जा रहे हैं. इनकार करने पर हिंसा और आगजनी की जा रही है."
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खुलना में व्यवसायी समिति के एक पदाधिकारी तो इतने आतंकित हैं कि वह अपना नाम भी नहीं बताना चाहते. डीडब्ल्यू से फोन पर हुई बातचीत में वह कहते हैं कि शाम ढलते ही आशंका घेर लेती है कि पता नहीं, अगली सुबह देख पाएंगे भी या नहीं. उनका दावा है कि ग्रामीण इलाकों में तो भयानक स्थिति है. कहीं कोई पूछने या बचाने वाला नहीं है. हमलावर कहते हैं कि शेख हसीना का समर्थन करते थे, अब भुगतो.
भारत में दाखिल होने की कोशिश
देश में रह रहे हिंदू परिवारों में ज्यादातर ऐसे हैं, जिनकी कई पीढ़िया यहां गुजर गईं. बच्चों के जन्म से लेकर शादियां तक यहीं हुई है. पुश्तैनी मकान और खेत भी हैं, लेकिन बांग्लादेश में हिंसा को देखते हुए उनका कहना है कि जब जान ही नहीं बचेगी तो संपत्ति का क्या करेंगे. इसलिए उनमें से ज्यादातर लोग अब किसी तरह भारत पहुंचने के प्रयास में जुटे हैं.
खुलना में दुर्गापूजा पूजा आयोजन समिति के प्रमुख दीपंकर दास बीते सप्ताह की घटनाओं को याद कर सिहर उठते हैं. वह डीडब्ल्यू से कहते हैं, "4 अगस्त की रात से ही हिंदू परिवारों को निशाना बनाने की कवायद शुरू हो गई थी. बांग्लादेश में आम धारणा यह है कि हिंदू तबके के लोग अवामी लीग के समर्थक हैं. इसलिए विपक्षी बीएनपी के समर्थकों ने हिंदू परिवारों और उनकी दुकानों की एक सूची तैयार कर ली थी. उसी के मुताबिक 5 अगस्त की सुबह से हमले शुरू हो गए. अब भी स्थित बेहतर नहीं है."
देश में बढ़ते हमलों और आतंक के कारण 9 अगस्त की सुबह से ही सीमा पार से जीरो पॉइंट पर लोगों की भीड़ जुटने लगी थी. ये लोग 'जय श्रीराम' के नारे लगा रहे थे. इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. वैध कागजात नहीं होने के कारण बीएसएफ ने उन्हें सीमा पर ही रोक दिया था. लेकिन भारत में प्रवेश की उम्मीद में कई लोग सीमा पर ही दिन काट रहे हैं.
भारत के साथ बांग्लादेश की 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा में से 2,217 किलोमीटर, यानी आधे से ज्यादा सीमा पश्चिम बंगाल से सटी है. उत्तर बंगाल में करीब 109 किलोमीटर लंबी सीमा ऐसी है, जहां कोई बाड़ नहीं लगी है.
बांग्लादेश पुलिस ने सरकार के आगे रखी मांगें
इस बीच, बांग्लादेश के पुलिस एसोसिएशन ने सरकार के समक्ष अपनी विभिन्न मांगें रखी हैं. एसोसिएशन के सदस्य सब-इंस्पेक्टर जाहिदुल इस्लाम ने डीडब्ल्यू को बताया कि पुलिस को राजनीति से आजाद रखना होगा और पुलिसकर्मियों की मौत के दोषी लोगों को कड़ी-से-कड़ी सजा देनी होगी. साथ ही, पुलिसवालों और उनके परिजनों को सुरक्षा मुहैया कराने और मृतकों के परिजनों और घायलों को पर्याप्त मुआवजा देने की भी मांग रखी गई है.
बांग्लादेश के बदलते हालात में भारत के लिए क्या विकल्प हैं
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने 11 अगस्त को कहा कि वह हिंदुओं और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर होने वाले हमलों पर अंकुश लगाने की दिशा में काम कर रही है. कैबिनेट बैठक के बाद सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि सरकार ने अल्पसंख्यक तबके पर हो रहे हमलों को गंभीरता से लिया है. वह इस मुद्दे पर काफी चिंतित है और इसे रोकने के लिए तमाम संगठनों के प्रतिनिधियों से बातचीत की जा रही है.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अंतरिम सरकार के लिए ये हमले रोकना एक गंभीर चुनौती है. अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषत्र प्रोफेसर जीवन कुमार दास डीडब्ल्यू से कहते हैं, "बांग्लादेश की मौजूदा परिस्थिति में यह काम आसान नहीं है. ज्यादातर थानों में ताला लगा है. खासकर दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में ऐसे हमलों को रोकने में सरकार को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. शेख हसीना के देश छोड़कर जाने के एक सप्ताह बाद भी हमलों का सिलसिला जारी है."