फ्रांस की राजनीति में ताकत और गठजोड़ का असमंजस
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

फ्रांस के राजनीतिक दल अपनी ताकत और गठजोड़ का दायरा बदलने में जुटे हैं. संसदीय चुनाव में बहुमत के अभाव ने सरकार की स्थिति डांवाडोल कर दी है.वामपंथी धड़े न्यू पॉपुलर फ्रंट (एनएफपी) के सदस्यचुनाव में उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करने के बाद संसद के प्रथम सत्र से पहले ही अपनी तैयारियों में जुट गए हैं. हालांकि ग्रीन, सोशलिस्ट, कम्युनिस्ट और कठोर वामपंथी दल का यह गठबंधन अपने प्रधानमंत्री का नाम तय नहीं कर पाया है. वे यह भी तय नहीं कर पाए हैं कि क्या किसी दल के साथ मोटे तौर पर एक व्यापक सहमति के साथ काम करेंगे.

तीन टुकड़ों में बंटा जनमत

वामपंथी धड़े की पार्टियों के पास नेशनल असेंबली में कुल मिलाकर 193 सीटें हैं. 577 सीटों वाली असेंबली में बहुमत के लिए कम-से-कम 289 सीटों की जरूरत है. हालांकि, इसके बाद भी सदस्य एक संभावित प्रधानमंत्री का नाम इस हफ्ते के आखिर तक तय करने की कोशिश में जुटे हैं.

फ्रेंच सिस्टम में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को नामित करते हैं. उसके बाद प्रधानमंत्री को संसद में विश्वास मत हासिल करना होता है. वर्तमान संसद में तीन धड़ों को जो सफलता मिली है, उसमें विश्वास मत हासिल करना कठिन होगा. 7 जुलाई को हुए मतदान के बाद राष्ट्रपति माक्रों की पार्टी दूसरे नंबर पर आई है और उसके पास 164 सीटें हैं. उधर आप्रवासी विरोधी और यूरोपीय एकता के प्रति संदेह रखने वाली धुर-दक्षिणपंथी पार्टी तीसरे नंबर पर है और उसके पास 143 सांसद हैं.

चुनाव के नतीजे आने के बाद भी राष्ट्रपति माक्रों ने प्रधानमंत्री गैब्रिएल अताल की सरकार को बनाए रखा है. उन्हें उम्मीद है कि आने वाले दिनों या हफ्तों में जब सहयोग पर बातचीत शुरू होगी, तो विकल्प खुले रखकर वह अपने लिए कुछ बेहतर हासिल कर सकते हैं. हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक गियोम तेबड ने 'ल फियारो' अखबार में लिखा है, "संस्थागत बदलाव हुए हैं, हर कोई सोच रहा है कि नव निर्वाचित राष्ट्रीय संसद समाधान लेकर आएगी, जो (माक्रों) सामान्य रूप से स्वीकार करेंगे."

फ्रांसः धुर दक्षिणपंथ को हराने के लिए विरोधी दलों में एकता

विजेता पार्टियों की खींचतान

पार्टियों के बीच अभी विभाजन बना हुआ है. इसका संकेत इस बात से भी मिलता है कि वामपंथी दलों के सांसदों ने तय किया है कि वे अलग-अलग समय पर संसद में प्रवेश करेंगे. सोशलिस्ट अब भी उम्मीद कर रहे हैं कि कुछ सदस्यों का जुगाड़ हो जाए, तो एलएफआई से आगे निकलकर गठबंधन के मामलों में ज्यादा अधिकार हासिल कर लें. इस बीच माक्रों कैंप के सदस्य मध्यम वामपंथी सोशलिस्ट और रूढ़िवादी रिपब्लिकनों की ओर आशा भरी नजरों से देख रहे हैं, ताकि मध्यमार्गियों के वर्चस्व वाला गठबंधन बनाया जा सके.

माक्रों की पार्टी के प्रमुख स्टेफन सेयुग्ने ने 'ल मोंद' अखबार में लिखा है, "तीनों प्रमुख धड़ों में से कोई भी अकेले सरकार नहीं चला सकता." इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा, "मध्यमार्गी धड़ा, रिपब्लिकन धड़े से बात करने के लिए तैयार है." सेयुग्ने ने यह भी कहा है कि गठबंधन के सदस्यों के लिए निश्चित रूप से यूरोपीय संघ, यूक्रेन और कारोबार संगत नीतियों को बनाए रखने में सहयोग जरूरी शर्त होगी. इन शर्तों ने स्वाभाविक रूप से कुछ पार्टियों को इसके दायरे से बाहर कर दिया है.

अर्थव्यवस्था की चुनौतियां

यूरोपीय संघ की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में उपजी नई स्थिति पर बाजार भी बारीक नजर रख रहा है. रेटिंग एजेंसी मूडी ने चेतावनी दी है कि वह फ्रांस का क्रेडिट स्कोर डाउनग्रेड कर सकता है. फ्रांस की नई सरकार अगर माक्रों के पेंशन सुधार वाले फैसले को पलट देती है, तो मूडी यह कदम उठाएगा. फ्रांस पर तीन हजार अरब यूरो का यूरोपीय संघ का कर्ज है. इसी कर्ज का बोझ घटाने के लिए सरकार ने जो खर्च घटाने वाले उपाय किए हैं, उसमें यह भी शामिल है. इससे पहले 'एस एंड पी' भी घाटे की चेतावनी दे चुकी है.

राजनेता जहां अभी मौजूदा सरकार के लिए रास्ता बनाने में जुटे हैं, वहीं यह सवाल भी पूछा जाने लगा है कि फ्रांस के वोटरों के सामने अगले चुनाव का मौका कब आएगा. माक्रों का कार्यकाल 2027 में खत्म होगा और वह तीसरी बार चुनाव नहीं लड़ सकते. ऐसे में दो बार उनसे चुनाव हार चुकीं नेशनल रैली की प्रमुख मरीन ला पेन के सामने जीत का बढ़िया मौका आ सकता है. धुर-दक्षिणपंथी पार्टी संसदीय चुनाव में जीत की प्रबल उम्मीदों के बाद अब हार को पचाने में जुटी है.

हालांकि, नेशनल रैली ने जिस तरह से अपनी पहुंच बढ़ाई है, उससे इतना तो साफ है कि आगे के चुनावों में वह प्रमुख ताकत के रूप में सामने होगी. 2017 में जब माक्रों पहली बार राष्ट्रपति चुने गए थे, तब नेशनल रैली के महज आठ सांसद थे और अब उनकी संख्या 143 तक पहुंच गई है. कई जबरदस्त अपीलों के साथ ही मध्यमार्गी और वामपंथी पार्टियों के तालमेल ने उन्हें बहुमत से भले इस बार दूर कर दिया हो, लेकिन यह स्थिति कभी भी बदल सकती है. 10 जुलाई को नाटो सम्मेलन में जब माक्रों दूसरे राष्ट्रप्रमुखों से मिलेंगे, तो वहां उन्हें फ्रांस की स्थिरता पर भी आश्वासन देना पड़ सकता है.

एनआर/एसएम (एएफपी)