Bangladesh: बांग्लादेश में शेख मुजीबुर्रहमान की मिटाई जा रही पहचान, राष्ट्रीय नारा 'जय बांग्ला' पर लगी रोक
बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही शेख मुजीबुर्रहमान (बंगबंधु) की विरासत को धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पहले नए करेंसी नोट पर से मुजीबुर्रहमान की तस्वीर हटाने का निर्णय लिया
Bangladesh: बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही शेख मुजीबुर्रहमान (बंगबंधु) की विरासत को धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पहले नए करेंसी नोट पर से मुजीबुर्रहमान की तस्वीर हटाने का निर्णय लिया और अब वहां के सुप्रीम कोर्ट ने 'जय बांग्ला' को राष्ट्रीय नारे के दर्जे से हटा दिया है. यह नारा 1971 के मुक्ति संग्राम का प्रतीक था और इसे शेख मुजीबुर्रहमान ने लोकप्रिय बनाया था. 2020 में हाईकोर्ट ने इसे राष्ट्रीय नारे का दर्जा दिया था, जिसे हसीना सरकार ने मान्यता दी.
लेकिन नई अंतरिम सरकार ने इस फैसले पर रोक लगाने की अपील की, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है. सुप्रीम कोर्ट के चार सदस्यीय खंडपीठ ने यह आदेश दिया कि राष्ट्रीय नारे जैसे मुद्दे सरकार की नीति का हिस्सा हैं और इसमें न्यायपालिका का हस्तक्षेप नहीं हो सकता.
'जय बांग्ला' की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
बता दें, 10 मार्च 2020 को हाईकोर्ट ने 'जय बांग्ला' को बांग्लादेश का राष्ट्रीय नारा घोषित करते हुए इसे सभी सरकारी और शैक्षणिक कार्यक्रमों में इस्तेमाल करने का आदेश दिया था. शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार ने इस नारे को मान्यता देते हुए 2 मार्च 2022 को गजट नोटिफिकेशन जारी किया था. शेख हसीना के अगस्त 2024 में सत्ता से बाहर होने के बाद, अंतरिम सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की.
यह नारा 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान राष्ट्रीय एकता और संघर्ष का प्रतीक बना. इसे शेख मुजीबुर रहमान ने स्वतंत्रता आंदोलन में जनभावनाओं को जगाने के लिए अपनाया था.
अन्य विवाद
हाल ही में बांग्लादेश बैंक ने नोटों से शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर हटाने का फैसला लिया. इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने 15 अगस्त को राष्ट्रीय शोक दिवस और अवकाश मानने के फैसले पर भी रोक लगाई. इस घटनाक्रम से यह साफ है कि सरकार के बदलाव के साथ राष्ट्रीय प्रतीकों और परंपराओं पर भी पुनर्विचार किया जा रहा है.