इस्लामाबाद. पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ को यहां की एक विशेष अदालत ने संविधान पलटने के लिए देशद्रोह के मामले में मंगलवार को मौत की सजा सुनाई. वह पहले ऐसे सैन्य शासक हैं जिन्हें देश के अब तक के इतिहास में मौत की सजा सुनाई गई है. वहीं, पाकिस्तान की सेना ने कहा कि पूर्व सैन्य प्रमुख जनरल (सेवानिवृत्त) परवेज मुशर्रफ कभी भी ‘‘देशद्रोही नहीं हो सकते’’ और उनके खिलाफ विशेष अदालत के फैसले से ‘‘पाकिस्तान की सशस्त्र सेना को काफी दुख हुआ है.’’उधर, मुशर्रफ की पार्टी ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एपीएमएल) ने कहा कि वह विशेष अदालत के ‘एकतरफा’ फैसले के खिलाफ अपील दायर करेगी। पार्टी ने कहा कि उसके नेता भावी कार्रवाई के लिये अपनी कानूनी टीम के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं।
पेशावर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश वकार अहमद सेठ की अध्यक्षता में विशेष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने 76 वर्षीय मुशर्रफ को लंबे समय से चल रहे देशद्रोह के मामले में मौत की सजा सुनाई. उन पर संविधान को निष्प्रभावी बनाने और पाकिस्तान में नवम्बर 2007 में संविधानेतर आपातकाल लगाने का आरोप था.मुशर्रफ ने कई न्यायाधीशों को जेल में बंद किया था और अपनी तानाशाही को बचाने के लिए अस्थायी संवैधानिक प्रावधान जारी किए. इस मामले में उन्हें 2014 में दोषी ठहराया गया था लेकिन 2016 में वह दुबई चले गए थे जिससे हाई प्रोफाइल मामले में प्रगति रुक गई थी. यह भी पढ़े-पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को देशद्रोह के मामले में मौत की सजा
Pakistan's Inter Services Public Relations:Decision given by special court has been received with pain by Pak Armed Forces.Due legal process seem to have been ignored&concluding case in haste.Pak's Armed Forces expect that justice will be dispensed in line with Pak's Constitution https://t.co/2yRdQYdbBc
— ANI (@ANI) December 17, 2019
पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार किसी सैन्य प्रमुख को देशद्रोही करार देकर मौत की सजा सुनाई गई है. संविधान पलटने के लिए दोषी ठहराए जाने वाले मुशर्रफ पाकिस्तान के पहले सैन्य शासक हैं। हालांकि, वह पहले जनरल नहीं हैं जिन्होंने ऐसा किया है. पाकिस्तान के तीन सैन्य प्रमुखों जनरल अयूब खान, जनरल याह्या खान और जनरल जिया उल हक ने भी संविधान को निरस्त किया था लेकिन उन्हें कभी भी अदालत का सामना नहीं करना पड़ा. विशेष अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ गफूर ने एक संक्षिप्त बयान में कहा, ‘‘पूर्व सैन्य प्रमुख, ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमिटी के पूर्व अध्यक्ष और पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति (परवेज मुशर्रफ) ने 40 वर्षों से ज्यादा समय तक देश की सेवा की. देश की रक्षा के लिए युद्ध लड़ने वाला निश्चित तौर पर देशद्रोही नहीं हो सकता है.’’ गफूर ने कहा, ‘‘पाकिस्तान की सशस्त्र सेना उम्मीद करती है कि पाकिस्तानी इस्लामी गणतंत्र के मुताबिक न्याय किया जाएगा. देशद्रोह के मामले में उन्हें दोषी ठहराना उस देश के लिए महत्वपूर्ण क्षण है जहां 72 वर्षों के स्वतंत्र इतिहास में अधिकतर समय तक शक्तिशाली सेना काबिज रही है.
न्यायमूर्ति सेठ ने संक्षिप्त फैसले में घोषणा की कि अदालत ने पाया कि मुशर्रफ संविधान के अनुच्छेद छह का उल्लंघन करने के दोषी हैं जिसके मुताबिक संविधान को निलंबित रखना देशद्रोह का कृत्य है. देशद्रोह कानून, 1973 के मुताबिक इस अपराध के लिए मौत या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है. अदालत के दो न्यायाधीशों ने मौत की सजा सुनाई जबकि एक अन्य न्यायाधीश की राय अलग थी। इसके ब्योरे अगले 48 घंटों में सुनाए जाएंगे.
फैसले के खिलाफ मुशर्रफ 30 दिनों में अपील दायर कर सकते हैं। लेकिन उन्हें पाकिस्तान लौटना होगा जब तक कि ऊपरी अदालत से इसके लिए उन्हें छूट हासिल नहीं हो जाती. इस महीने की शुरुआत में स्वास्थ्य खराब होने के कारण मुशर्रफ को दुबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था. फैसले पर प्रतिक्रिया जताते हुए प्रधानमंत्री की विशेष सूचना सहायक फिरदौस आशिक अवान ने कहा कि सरकार प्रधानमंत्री इमरान खान के विदेश (स्विट्जरलैंड) से लौटने पर सरकार फैसले पर टिप्पणी करेगी.
उन्होंने कहा, ‘‘हम विस्तृत फैसले को देखेंगे और प्रधानमंत्री के लौटने पर प्रतिक्रिया देंगे।’’मुशर्रफ ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को 1999 में रक्तहीन तख्ता पलट में सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था। वह 2001 से 2008 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति भी रहे. फैसला सुनाए जाने से पहले अदालत ने अभियोजकों की एक याचिका खारिज कर दी जिसमें फैसले को टालने की मांग की गई थी.
पूर्व सैन्य प्रमुख मार्च 2016 में इलाज के लिए दुबई गए थे और सुरक्षा एवं सेहत का हवाला देकर तब से वापस नहीं लौटे हैं. विशेष अदालत में न्यायमूर्ति सेठ, सिंध उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नजर अकबर और लाहौर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शाहिद करीम शामिल हैं. अदालत ने 19 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
मुशर्रफ ने अस्पताल में अपने बिस्तर से वीडियो के माध्यम से बयान जारी कर देशद्रोह के मामले को ‘‘पूरी तरह निराधार’’ बताया. उन्होंने कहा, ‘‘मैंने दस वर्षों तक अपने देश की सेवा की है. मैं अपने देश के लिए लड़ा. यह (देशद्रोह) मामला है जिसमें मेरी बात नहीं सुनी गई और मुझे प्रताड़ित किया गया.’’मुशर्रफ की पार्टी एपीएमएल ने कहा कि वह विशेष अदालत के फैसले से ‘स्तब्ध’ है.
पार्टी ने कहा, ‘हमारा मानना है कि यह असंवैधानिक मुकदमा है जो उनके वकील को सुने बगैर और उन्हें अपना बचाव करने का मौका दिये बिना सर्वाधिक असंवैधानिक तरीके से चलाया गया है।’’खबरों में बताया गया है कि उनकी कानूनी टीम उच्चतम न्यायालय में फैसले को चुनौती देगी। अगर शीर्ष अदालत विशेष न्यायालय के फैसले को बरकरार रखती है तो अनुच्छेद 45 के तहत राष्ट्रपति के पास संवैधानिक अधिकार है कि वह मौत की सजा प्राप्त व्यक्ति को माफी दें.
विशेष अदालत का यह आदेश इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व के एक आदेश के बावजूद आया है जिसमें उसे फैसला देने से रोका गया था. इस्लामाबाद उच्च न्यायालय का आदेश 27 नवंबर को आया था. इसके एक दिन बाद विशेष अदालत अपना फैसला सुनाने वाली थी.
मुशर्रफ ने शनिवार को अपने वकीलों के जरिए दायर आवेदन में लाहौर उच्च न्यायालय से विशेष अदालत में चल रहे मुकदमे पर तब तक रोक लगाने को कहा था जब तक कि उनकी पूर्व याचिका पर उच्च न्यायालय फैसला नहीं ले लेता. उस याचिका में पूर्व तानाशाह ने इस मामले में मुकदमा चला रही विशेष अदालत के गठन और प्रक्रिया में हुई कानूनी खामियों को चुनौती दी थी.