Pakistan Solar Kids: पाकिस्तान में तीन भाइयों को दुर्लभ बीमारी, सूरज डूबते ही शरीर हो जाता है लकवाग्रस्त; मेडिकल साइंस भी हैरान
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में रहने वाले तीन भाई पिछले कई वर्षों से एक ऐसी दुर्लभ और रहस्यमयी बीमारी से जूझ रहे हैं, जिसे देखकर मेडिकल साइंस भी हैरान है. इन भाइयों के शरीर पर दिन में कोई असर नहीं होता
Pakistan Solar Kids: पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में रहने वाले तीन भाई पिछले कई वर्षों से एक ऐसी दुर्लभ और रहस्यमयी बीमारी से जूझ रहे हैं, जिसे देखकर मेडिकल साइंस भी हैरान है. इन भाइयों के शरीर पर दिन में कोई असर नहीं होता, लेकिन जैसे ही सूरज डूबता है, उनका पूरा शरीर धीरे-धीरे लकवाग्रस्त हो जाता है. रात होते-होते वे बोलने, चलने और हिलने-डुलने तक की क्षमता खो देते हैं.
ऐसे लोगों को मालूम पड़ा यह बीमारी
लगभग नौ साल पहले जब यह मामला पहली बार मीडिया में सामने आया था, तो इसे देखकर दुनिया भर के डॉक्टर और वैज्ञानिक चौंक गए थे. मीडिया ने उन्हें “सूरज की रोशनी पर चलने वाले बच्चे” नाम दिया था, क्योंकि वे सिर्फ दिन में सामान्य रूप से काम कर पाते थे. यह भी पढ़े: VIDEO: चेहरे पर सबसे ज्यादा बाल! दुर्लभ बीमारी से ग्रसित ललित पाटीदार ने बनाया गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड, जानें भारत के ‘वेरवोल्फ’ की कहानी
क्यों होती है यह बीमारी? कारण अब तक रहस्य
चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि यह बीमारी दुनिया में कहीं और दर्ज नहीं हुई.
संभावित कारणों में शामिल हैं:
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जेनेटिक म्यूटेशन (अनुवांशिक बदलाव)
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नर्वस सिस्टम की गंभीर गड़बड़ी
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शरीर की ऊर्जा उत्पादन प्रणाली (माइटोकॉन्ड्रियल फंक्शन) में कमी
वैज्ञानिकों ने भाइयों के ब्लड सैंपल अमेरिका, यूरोप और एशिया की बड़ी जेनेटिक लैबों तक भेजे, लेकिन कोई निश्चित कारण नहीं मिला.
परिवार के घर के आसपास की मिट्टी, पानी और हवा तक के नमूने लिए गए ताकि किसी रसायन या ज़हरीले तत्व की मौजूदगी का पता चल सके, लेकिन जांचें भी कुछ साफ नहीं बता सकीं.
इलाज क्या है? एक गोली पर टिकी है जिंदगी
डॉक्टरों ने परीक्षण के बाद पाया कि मरीजों के शरीर में डोपामाइन की कमी जैसी स्थिति रात होने पर और गंभीर हो जाती है. इसलिए उनका इलाज डोपामाइन बेस्ड मेडिसिन से किया जा रहा है, जिससे लकवा होने की प्रक्रिया कुछ हद तक धीमी पड़ जाती है. हालांकि, यह इलाज बीमारी का स्थायी समाधान नहीं है. दवा सिर्फ लक्षणों को नियंत्रित करती है, और भाइयों की पूरी दिनचर्या इसी एक गोली पर निर्भर है.
परिवार की कठिनायां
इन भाइयों की देखभाल के लिए परिवार को हर रात विशेष इंतजाम करने पड़ते हैं, सूरज ढलने से पहले ही उन्हें सुरक्षित स्थान पर लिटा दिया जाता है ताकि रात में उन्हें कोई चोट न पहुँचे, उनके पिता ने बताया कि सरकारी सहायता बहुत कम मिलती है और उनका अधिकतर खर्च इलाज पर ही हो जाता है.
बच्चों के नाम
इस दुर्लभ बीमारी से पीड़ित ये तीनों बच्चे बलूचिस्तान के क्वेटा से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित मियां कुंडी गांव के रहने वाले हैं. इनके नाम शोएब, राशिद और इलियास हाशिम हैं. दिन में ये बिल्कुल सामान्य और ऊर्जावान रहते हैं, लेकिन सूरज ढलते ही चलने-फिरने में असमर्थ हो जाते हैं.