क्या 51,200 साल पुरानी यह गुफा कलाकृति मानवता की सबसे पुरानी कहानी है?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

इंडोनेशिया की एक गुफा की दीवार पर बनाई गई तस्वीर 51,200 साल पुरानी है. इसमें एक इंसान और सुअर को दिखाया गया है. यह अब तक की सबसे पुरानी तस्वीर है. इसे देखकर पता चलता है कि उस समय के लोग चित्रों के जरिए कहानियां बताते थे.इंसानों द्वारा दर्ज की गई अब तक की सबसे पुरानी कहानी कौन सी है? वैज्ञानिक मानते हैं कि इंसानों की सबसे पुरानी कहानी उतनी ही पुरानी है जितना पुराना इंसानों का इतिहास है. इंडोनेशिया की एक गुफा की दीवार पर बनी पेंटिंग को अब तक की सबसे पुरानी कहानी माना जा रहा है. यह तस्वीर मनुष्यों और प्रकृति के रिश्ते को दिखाती है.

इस तस्वीर में इंसान और सुअर को एक साथ दिखाया गया है. यह गुफा की दीवार पर लाल और काले रंगों से बनी एक पेंटिंग है. मशाल की रोशनी में ये आकृतियां नाचती और कूदती हुई नजर आती हैं, मानो यह तस्वीर अपने आप में कोई कहानी सुना रही हो.

नेचर जर्नल में 3 जुलाई को प्रकाशित नए विश्लेषण में पाया गया है कि इंसान और जानवर की यह दुर्लभ तस्वीर करीब 51,200 साल पुरानी है. यह फ्रांस के लासकु गुफा जैसी जगहों में पाई गई कहानी वाली अन्य गुफा कलाकृतियों से दसियों हजारों साल पुरानी है.

ऑस्ट्रेलिया स्थित ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी में पुरातत्वविद् मैक्सिम ऑर्बट के नेतृत्व में यह अध्ययन हुआ है. ऑर्बट कहते हैं, "इंसान के तौर पर, हम खुद को कहानी सुनाने वाली प्रजाति के रूप में दिखाते हैं. यह पेंटिंग हमारे इस काम का सबसे पुराना सबूत है. इससे पता चलता है कि चित्रकार सिर्फ एक तस्वीर नहीं बना रहे थे, बल्कि इन तस्वीरों के जरिए कहानियां भी बता रहे थे.”

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अब तक की सबसे पुरानी कथात्मक गुफा कलाकृति

ऑर्बट की टीम ने इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप पर लेंग बुलु सिपोंग 4 नाम के चूना पत्थर की गुफा की दीवारों पर कलाकृति की परतों का अध्ययन किया. गुफा में किए गए पिछले अध्ययनों से पता चला था कि होमो सेपियंस यानी आधुनिक मानव हजारों सालों से इस गुफा में आते थे और 27,000 से 44,000 साल पहले दीवारों पर अपनी कहानियां बनाते थे. हजारों सालों में गुफा की दीवारों पर कैल्शियम कार्बोनेट की परत जमने से ये कलाकृतियां सुरक्षित रह गई हैं. ये ऐसी लगती हैं मानो एम्बर में फंसा हुआ कोई कीट हो.

पहले इस्तेमाल की जाने वाली डेटिंग तकनीक ‘यूरेनियम-सीरीज डेटिंग' की मदद से पता लगाया गया था कि सबसे पुरानी कलाकृति 44,000 साल पहले की है. हालांकि, ऑर्बट ने बताया कि चट्टान का नमूना लेने के लिए लेजर वाली नई तकनीक का इस्तेमाल किया गया. इससे पुरानी कलाकृतियों की आयु को ज्यादा सटीक तरीके से पता लगाने में मदद मिली. नए तरीके से पता चला कि पुरानी कलाकृति करीब 4,000 और यानी 48,000 साल पहले की है.

ऑबर्ट की टीम ने इसी तकनीक का इस्तेमाल पास की एक और गुफा लेंग करमपुआंग में मिली नई कलाकृति के लिए भी किया, जिसकी आयु का पता नहीं लगाया गया था. इस तस्वीर में इंसान और सुअर जैसे दिखने वाले जानवर को साथ में दिखाया गया था. इसके विश्लेषण से पता चला कि यह तस्वीर 51,200 साल पुरानी है. यह अब तक खोजी गई मनुष्यों द्वारा बनाई गई सबसे पुरानी कथात्मक तस्वीर है.

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50,000 साल पहले मानव विकास का स्वर्णिम बिंदु

इंडोनेशिया की गुफा कलाकृति दुनिया की सबसे पुरानी नहीं है. यह खिताब स्पेन के क्यूवा डे लॉस एवियोनेस की गुफा कलाकृति को मिला है. पुर्तगाल के कोइम्ब्रा यूनिवर्सिटी के पुरातत्वविद् जॉर्ज नैश ने कहा कि इंडोनेशिया की गुफा कलाकृति कहीं ज्यादा जटिल है. हालांकि, वे इस अध्ययन में शामिल नहीं थे.

नैश ने डीडब्ल्यू को बताया, "स्पेन की गुफा कलाकृति में ज्यादातर हाथों के निशान हैं, जबकि इंडोनेशिया की गुफा कलाकृति कहीं अधिक जटिल है और उसमें कहानी होने की संभावना ज्यादा है. असल सवाल ये है कि इंडोनेशिया के सुलावेसी में उस समय इतनी जटिल कलाकृति कैसे बनाई जा रही थी? अभी तक बहुत कम कलाकृतियां ही 50,000 साल से भी ज्यादा पुरानी मानी गई हैं.”

वह आगे कहते हैं, "पुरातत्वविद् 50,000 साल पुराने समय को मानव विकास के लिहाज से ‘स्वर्णिम बिंदु' के तौर पर मानते हैं, क्योंकि उसी समय 'अधिक साहसी आधुनिक मानव' पूर्व की ओर एशिया, इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया की ओर चले गए थे, जो उस समय एक विशाल भूभाग से जुड़े हुए थे.”

इंडोनेशिया के पास ही स्थित बोर्नियो द्वीप पर भी इसी तरह की कलाकृतियां मिली हैं. इससे यह क्षेत्र प्राचीन कलाकृतियों का एक आकर्षक केंद्र बन गया है.

गुफा में मिली कलाकृतियों के अध्ययन के लिए आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है. इसकी मदद से प्राचीन अवशेषों का आनुवंशिक विश्लेषण किया गया. इससे यह पता लगाने में मदद मिल रही है कि आधुनिक मानव किस तरह से दुनिया में एक जगह से दूसरी जगह गए.

स्पेन में मिली कलाकृति निएंडरथालों ने बनाई थी

नैश ने कहा कि 10 साल पहले तक सिर्फ यूरोप में ही इस तरह के अध्ययन किए जा रहे थे. हालांकि, अब नए और व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की वजह से हमें पूरे विश्व में होमो सेपियंस के फैलने और निएंडरथाल के साथ हमारे संबंधों के बारे में कुछ अद्भुत चीजें जानने में मदद मिल रही है.

उदाहरण के लिए, नैश का मानना है कि विभिन्न प्रजातियों के बीच के संबंधों ने मानव गुफा कलाकृति को प्रभावित किया हो. पचास हजार साल पहले एक ऐसा दौर था जब पलायन कर रहे मानव और निएंडरथाल एक-दूसरे से सीख रहे थे. हमें नहीं पता कि उनके आपसी संबंधों का क्या मतलब था, लेकिन इसका एक नतीजा ज्यादा जटिल गुफा कलाकृति हो सकती है.

क्या यह वास्तव में कथात्मक कलाकृति है?

लेखकों के अनुसार, उनके इस अध्ययन से पता चलता है कि इंडोनेशिया में होमो सेपियंस ने हमारे विकास के काफी शुरुआती दौर में ही कहानी सुनाने की समृद्ध संस्कृति विकसित कर ली थी. इन प्राचीन कलाकारों ने इंसानों और जानवरों के बीच के संबंधों को दिखाने वाली कहानियां बताने के लिए ये तस्वीरें बनाईं.

पुर्तगाल के लिस्बन यूनिवर्सिटी के पुरातत्वविद् जोआओ जिल्हाओ ने अध्ययन में इस्तेमाल किए गए तरीकों की प्रशंसा की. हालांकि, वे अध्ययन के नतीजों की आलोचना भी करते हैं.

उन्होंने ईमेल के जरिए डीडब्ल्यू को बताया, "लेखकों ने इस बात का कोई सबूत पेश नहीं किया है कि जिन अलग-अलग चीजों की उन्होंने जांच की वे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. ‘कहानी' या ‘कहानी सुनाना' ये शब्द ऑबर्ट और उनकी टीम के शोध पत्र में तो मिलते हैं, पर खुद कलाकृतियों में कहीं नहीं मिलते.”

वहीं, नैश इस बात को लेकर ज्यादा आश्वस्त हैं कि गुफा कलाकृति एक कहानी बनाती है. उन्होंने कहा कि यह क्रॉस के चिन्ह की तरह है. कोई भी ईसाई व्यक्ति एक साधारण आकृति से जटिल कहानी बना सकता है. उन्होंने आगे बताया कि ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी कला में भी ऐसा ही है, जहां किसी जानवर के साधारण से चित्र से भी जटिल कहानी बताई जा सकती है.

भले ही हम 52,000 साल पहले के उन इंसानों की कहानी का अर्थ भूल चुके हैं कि क्या यह एक शिकार का दृश्य था या किसी जानवर के प्रति सम्मान का? हालांकि, नैश को इस बात का पूरा भरोसा है कि इन गुफा चित्रों का कोई धार्मिक या अनुष्ठानिक महत्व रहा होगा क्योंकि ये इंडोनेशिया की गुफाओं के सबसे अंदरूनी हिस्से में पाए गए हैं, जहां शायद कहानियां सुनाई जाती थीं.

वह कहते हैं, "भले ही यह ठोस सबूत नहीं है, लेकिन यह इतिहास को समझने के लिए पुरातत्व, मानव विज्ञान और दर्शनशास्त्र जैसे कई तरीकों को अपनाने की अवधारणा को मजबूत करते हैं.”

नैश ने आगे कहा कि यह बहुत अच्छी बात है कि ऑबर्ट की टीम वापस गई और अधिक सटीक डेटिंग तरीकों का इस्तेमाल करके गुफा कलाकृति का पुनर्मूल्यांकन किया. उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया भर में चट्टानों पर बनी कलाकृतियों पर और अधिक शोध की आवश्यकता है.

वह कहते हैं, "मुझे यकीन है कि हमें 60,000 साल से भी पुरानी कलाकृतियां मिलेंगी. अगर ऐसा हुआ, तो यह आधुनिक मनुष्यों के बारे में हमारी समझ को पूरी तरह से बदल देगी.”

(प्राथमिक स्रोतः नेरेटिव केव आर्ट इन इंडोनेशिया बाई 51,200 ईयर्स अगो. जर्नल नेचर में प्रकाशित https://doi.org/10.1038/s41586-024-07541-7)