
जर्मनी में आम चुनाव होने वाले हैं. चुनाव को लेकर कई पार्टियों ने अपने घोषणापत्रों में पवन ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की बात कही है. वहीं, कुछ नेता फिर से परमाणु ऊर्जा पर वापस लौटना चाहते हैं.हालिया औद्योगिक आंकड़ों के मुताबिक, जर्मनी में बिजली उत्पादन के प्रमुख स्रोत का इस्तेमाल वर्ष 2024 में काफी बढ़ गया है. जर्मन विंड एनर्जी एसोसिएशन और पावर प्लांट इंजीनियरिंग एसोसिएशन वीडीएमए पावर सिस्टम्स की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि नियामकों ने 2,400 से अधिक नए ऑनशोर विंड टर्बाइन को मंजूरी दी है. इनका कुल उत्पादन लगभग 14 गीगावाट है. यह अपने-आप में एक रिकॉर्ड है.
वीडीएमए के प्रबंध निदेशक डेनिस रेंडश्मिट ने कहा, "यह सही दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है.” उन्होंने कहा कि सरकार को ‘इस गति को बनाए रखना चाहिए', चाहे 23 फरवरी के संघीय चुनाव का नतीजा कुछ भी हो.
पवन ऊर्जा का लक्ष्य कैसे हासिल करेगा जर्मनी
हालांकि, सकारात्मक आंकड़ों के बावजूद, जर्मनी की धुर दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) ने जर्मनी की ऊर्जा नीतियों और विशेष रूप से पवन ऊर्जा का तीखा विरोध किया है. यह उसके चुनाव अभियान का महत्वपूर्ण हिस्सा है. हाल में एएफडी की पार्टी बैठक में, पार्टी की ओर से चांसलर पद की उम्मीदवार एलिस वाइडेल ने ‘अस्थिर' अक्षय ऊर्जा के खिलाफ आवाज उठाई थी. जर्मन ब्रॉडकास्टर जेडडीएफ से बातचीत में उन्होंने कहा कि ‘जब हवा नहीं बहती और सूरज की रोशनी पर्याप्त नहीं होती है, तो अक्षय ऊर्जा के स्रोत काम नहीं करते हैं.'
सेंटर-राइट क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) के अध्यक्ष फ्रीडरिष मैर्त्स ने भी पवन ऊर्जा की आलोचना की है. पिछले साल के अंत में, मैर्त्स ने सार्वजनिक तौर पर पवन ऊर्जा को एक ‘बदसूरत' और ‘ट्रांजिशन एनर्जी (अस्थायी)' बताया था जो किसी दिन समाप्त हो सकता है.
हालांकि, अपनी बवेरियाई सहयोगी पार्टी ‘सीएसयू' के साथ मिलकर जारी किए गए पार्टी के चुनावी घोषणापत्र में सभी अक्षय ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करने की बात कही गई है. इसमें ऑनशोर (समुद्र तट पर) और ऑफशोर (समुद्र तट से दूर) विंड दोनों शामिल हैं.
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एएफडी की बैठक में वाइडेल ने जर्मनी की सभी ‘शर्मनाक पवन चक्कियों' को गिराने की कसम खाई. उन्होंने जर्मनी से रूसी गैस सहित जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के साथ-साथ ‘टिकाऊ और गंभीर ऊर्जा मिश्रण' के हिस्से के तौर पर परमाणु ऊर्जा की ओर लौटने की बात कही. हालांकि, इस योजना को अधिकांश विशेषज्ञों ने अवास्तविक बताया है.
परमाणु ऊर्जा पर वापसी 'संभव नहीं'
बर्लिन में जर्मन इंस्टिट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च में ऊर्जा विशेषज्ञ वोल्फ-पेटर शिल ने कहा, "जलवायु संरक्षण के लिहाज से जर्मनी में परमाणु ऊर्जा की वापसी ना तो संभव है, ना ही मददगार होगी और ना ही यह आर्थिक रूप से लाभदायक होगी.” उन्होंने बताया कि जर्मनी ने लगभग दो साल पहले अपने आखिरी तीन रिएक्टर बंद कर दिए थे.
वह कहते हैं, "परमाणु ऊर्जा रिएक्टर पहले ही इस हद तक नष्ट हो चुके हैं कि उन्हें आसानी से चालू नहीं किया जा सकता. नए परमाणु संयंत्र बनाने में बहुत समय लगेगा, इसलिए जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने में इनसे किसी तरह की मदद नहीं मिल पाएगी.”
विशेषज्ञों के मुताबिक, जर्मनी में फिलहाल 30 हजार से अधिक पवन चक्कियां हैं. इन्हें हटाने के लिए डीकमीशनिंग शुल्क, अधिग्रहण और मुआवजे के भुगतान के लिए काफी अधिक खर्च करना पड़ेगा. इनमें उन लागतों पर ध्यान नहीं दिया गया है जो ऊर्जा की कमी को पूरा करने से संबंधित हैं, क्योंकि जर्मनी को बिजली का आयात बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. इससे उपभोक्ताओं और कारोबारों के लिए बिजली की कीमत बढ़ जाएगी.
ऊंची उड़ान वाली पतंगों से पवन ऊर्जा को पकड़ने की कोशिश
शिल ने कहा कि सौर ऊर्जा में भारी वृद्धि से कुछ हद तक पवन ऊर्जा की जगह लेने में मदद मिल सकती है. हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जर्मनी में पवन चक्कियों की जगह सोलर पैनल हमेशा सबसे अच्छे विकल्प नहीं हो सकते हैं, विशेषकर सर्दियों के महीनों में.
उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "यदि आप पवन ऊर्जा या सौर ऊर्जा नहीं चाहते हैं, तो एकमात्र विकल्प जीवाश्म ईंधन है. मुझे जर्मनी में बिजली उत्पादन के लिए कोई अन्य वास्तविक विकल्प नहीं दिखता है.” हीटिंग और उद्योग जैसी चीजों के लिए जीवाश्म ईंधन जलाने से वैश्विक तापमान बढ़ रहा है और दुनिया भर में चरम मौसम की घटनाएं बढ़ रही हैं.
अक्षय ऊर्जा से जर्मनी की लगभग दो-तिहाई बिजली की आपूर्ति
वाइडेल के इस दावे के बावजूद कि अक्षय ऊर्जा जर्मनी को पीछे ले जा रही है, नए सरकारी आंकड़े इसे गलत साबित करते हैं. जनवरी की शुरुआत में संघीय ऊर्जा नियामक ‘बुंडेसनेट्सआगेनटुअर'की ओर से जारी किए गए डेटा से पता चलता है कि 2024 में जर्मनी को 59 फीसदी बिजली अक्षय ऊर्जा स्रोतों से मिली, जो कि 2023 में 56 फीसदी थी. इसमें से आधे से थोड़ा ज्यादा पवन ऊर्जा से मिली.
जर्मनी के जलवायु एवं आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेक ने कहा कि पिछले दो सालों में सेंटर-लेफ्ट गठबंधन सरकार (एसपीडी/ग्रीन्स/एफडीपी) ने पवन और सौर ऊर्जा संयंत्रों को लगाने की अनुमति देने की प्रक्रिया को आसान और तेज कर दिया है, जिसकी वजह से यह वृद्धि हुई है.
वहीं, शिल ने कहा कि मौजूदा सरकार की ओर से लिए गए फैसलों की वजह से पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए ‘मजबूत' मंच तैयार हुआ है. इससे संभवतः जर्मनी को 2030 तक 115 गीगावाट की क्षमता वाले ऑनशोर पवन ऊर्जा संयंत्रों को स्थापित करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी. अब पुराने बिजली स्टेशनों को बदलने के लिए बड़े और अधिक उन्नत पवन टर्बाइन बनाए जा रहे हैं, जो देश की कुल ऊर्जा आपूर्ति में अक्षय ऊर्जा का अनुपात लगभग 80 फीसदी तक लाने में मदद कर सकते हैं.
शिल कहते हैं, "अगली सरकार के लिए अक्षय ऊर्जा क्षेत्र को दिए गए प्रोत्साहन का लाभ नहीं उठाना ‘हास्यास्पद' होगा. ना केवल पवन ऊर्जा पर रोक लगाने बल्कि इसे समाप्त करने का एएफडी का यह कदम भी पूरी तरह से गलत दिशा में जाने जैसा है.”
जर्मनी की नई लोकलुभावन जारा वागनक्नेष्ट अलायंस (बीएसडब्ल्यू) जैसी दूसरी पार्टियों ने अपने घोषणापत्रों में कहा है कि वे पुरानी पवनचक्कियों को नए से बदलना चाहती हैं, ताकि जर्मनी ‘प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना मौजूदा जगहों पर बिजली उत्पादन बढ़ा सके.' देश की लेफ्ट पार्टी पवन सहित अन्य अक्षय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना जारी रखना चाहती है, लेकिन यह भी चाहती है कि उन पर सरकार का मालिकाना हक हो.
जर्मनी में बड़े पैमाने पर हो रहा पवन ऊर्जा का इस्तेमाल
बिजली उत्पादन में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाने से जर्मनी में ऊर्जा की कीमतों को कम करने में मदद मिल सकती है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है. शिल ने बताया कि जलवायु तटस्थता योजनाओं में पवन ऊर्जा इतनी महत्वपूर्ण भूमिका इसलिए निभाती है, क्योंकि यह सस्ती है.
जुलाई 2024 में फ्रॉउनहोफर इंस्टिट्यूट की ओर से किए गए अध्ययन में एक बिजली संयंत्र के जीवनकाल में बिजली उत्पादन की औसत लागत की गणना की गई. इसमें जर्मनी में अक्षय ऊर्जा और पारंपरिक बिजली संयंत्रों के बीच एक उल्लेखनीय अंतर देखने को मिला.
अलग-अलग तरह के सौर और पवन ऊर्जा स्रोत की लागत पैमाने के निचले स्तर पर थी, जो 0.041 यूरो से 0.225 यूरो प्रति किलोवाट घंटा थी. वहीं, गैस, कोयला और परमाणु ऊर्जा की लागत अधिक थी, जो 0.109 यूरो से 0.49 यूरो प्रति किलोवाट घंटा थी जिसमें परमाणु ऊर्जा सबसे महंगी थी.
वाइडेल के अक्षय ऊर्जा के विरोध का एक मुख्य कारण ऊर्जा की उच्च कीमतें भी थी. जेडडीएफ को दिए साक्षात्कार में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पवन ऊर्जा जर्मन अर्थव्यवस्था पर बोझ डाल रही है. उन्होंने कहा कि ‘ऊर्जा की उच्च कीमतों के कारण हमारी कंपनियां अब प्रतिस्पर्धी नहीं हैं यानी जर्मन कंपनियां अब दूसरे देशों की कंपनियों से मुकाबला नहीं कर पा रही हैं.'
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दूसरी ओर, शिल ने कहा, "मुझे लगता है कि भविष्य में ऊर्जा के लिए कोई और ऐसा विकल्प नहीं होगा जिसमें सौर और पवन ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.” ग्रीन्स की पूर्व सांसद और जर्मन एसोसिएशन ऑफ एनर्जी एंड वाटर इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष केर्स्टिन एंड्री ने भी इस हफ्ते की शुरुआत में कहा कि अक्षय ऊर्जा क्षेत्र अपने आप में अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है.
उन्होंने 13 जनवरी को एक बयान में कहा, "पवन ऊर्जा ना सिर्फ जलवायु संरक्षण का एक साधन है, बल्कि यह रोजगार सृजन और निवेश को बढ़ावा देकर आर्थिक स्थिरता में भी योगदान देती है. पवन ऊर्जा ने 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले के कारण ऊर्जा की कमी के समय आपूर्ति सुनिश्चित करने में भी मदद की है.”
शिल के मुताबिक, कई पवनचक्की निर्माता जर्मनी और यूरोप में स्थित हैं, जिससे इस उद्योग को बढ़त मिली है. उन्होंने कहा, "कई ऊर्जा तकनीकों, जैसे कि सौर ऊर्जा पैनल के लिए हम चीन से आयात पर काफी ज्यादा निर्भर हैं, लेकिन पवन ऊर्जा के मामले में ऐसा नहीं है. लचीलेपन और सुविधा के लिहाज से, पवन ऊर्जा के कई फायदे हैं.”