नेपाल में हो रही है इलेक्ट्रिक क्रांति

नेपाल में एक परिवहन क्रांति हो रही है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

नेपाल में एक परिवहन क्रांति हो रही है. इसकी जड़ में वे बांध हैं जिन्होंने बिजली के मामले में देश को आत्मनिर्भर बना दिया है. इसलिए लोग जमकर इलेक्ट्रिक वाहन खरीद रहे हैं.एक दशक पहले टैक्सी ड्राइवर सुरेंद्र पराजुली सोच भी नहीं सकते थे कि वह कभी इलेक्ट्रिक टैक्सी खरीदेंगे. तब बिजली की इतनी भारी कमी थी कि नेपालियों के लिए रात में अपने घरों को रोशन करना भी मुश्किल था.

लेकिन बांध निर्माण की तेजी के कारण इस पहाड़ी देश में अब ऊर्जा के दाम बेहद कम हो गए हैं. जो देश पहले पूरी तरह से जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भर था, अब उसके पास खूब बिजली है. इस बदलाव ने पराजुली के लिए जीवन को इतना आसान बना दिया कि उन्हें बचत होने लगी है.

काठमांडू में बैटरी से चलने वाली चीनी बीवाईडी टैक्सी के मालिक पराजुली कहते हैं, "इसने मेरे लिए बहुत बचत की है. यह एक बार चार्ज करने पर 300 किलोमीटर तक चलती है और इसका खर्च पेट्रोल के मुकाबले दसवां हिस्सा है. और यह पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है."

परिवहन क्रांति

काठमांडू एक परिवहन क्रांति का केंद्र बनता जा रहा है, जिसमें प्रदूषण फैलाने वाली पुरानी कारों की जगह शून्य उत्सर्जन वाले वाहन ले रहे हैं. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, देशभर में लगभग 40,000 इलेक्ट्रिक वाहन सड़कों पर चल रहे हैं , जो कि सेवा में मौजूद 62 लाख मोटर वाहनों का एक छोटा हिस्सा है.

लेकिन मांग जबरदस्त है. इन वाहनों में से एक चौथाई से अधिक पिछले साल जुलाई तक के 12 महीनों में आयात किए गए. यह पिछले साल के मुकाबले लगभग तीन गुना अधिक है.

चीन, जो अब वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रिक वाहनों की सप्लाई में प्रमुख भूमिका निभा रहा है, इस बाजार के लगभग 70 प्रतिशत की सप्लाई कर रहा है.

एक इलेक्ट्रिक वाहन मोटर शो में संभावित खरीदार यज्ञ राज भट्ट कहते हैं, "इलेक्ट्रिक वाहन वास्तव में नेपाली लोगों के लिए उपयुक्त हैं. पहले हमें पेट्रोल गाड़ियों पर निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन अब हम स्वतंत्र रूप से गाड़ी चला सकते हैं."

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार इस सदी की शुरुआत में हर पांच में से चार नेपाली लोगों तक बिजली नहीं पहुंची थी. लेकिन बांधों में तेजी से निवेश ने बिजली ग्रिड को बदल दिया है. ये ग्रिड अब नेपाल की बेसलोड ऊर्जा का 99 प्रतिशत पैदा करते हैं.

बिजली सस्ती, अर्थव्यवस्था अच्छी

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले आठ वर्षों में पनबिजली उत्पादन चार गुना बढ़ गया है, और अब 95 प्रतिशत आबादी को बिजली की सुविधा है. देश ने पहले ही भारत को अतिरिक्त बिजली निर्यात करने के समझौते किए हैं. अगले दशक में नेपाल अपनी मौजूदा 3,200 मेगावाट की स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता को 30,000 मेगावाट तक बढ़ाकर भविष्य की राजस्व संभावनाओं पर नजर रख रहा है.

बिजली को सभी के लिए सुलभ और सस्ती बनाना एक ऐसी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की क्षमता रखता है, जो ऐतिहासिक रूप से विदेशों में काम कर रहे नेपाली लोगों से आने वाले धन पर निर्भर रही है.

नेपाल बिजली प्राधिकरण के कुलमान घिसिंग ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि अनुकूल परिस्थितियों के निर्माण से इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने के लाभ नजर आने लगे हैं.

नेपाल अपनी जीवाश्म ईंधन की जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से भारत से आयात पर निर्भर है, जो मोटर चालकों का खर्च बढ़ाता है. लेकिन घिसिंग ने कहा कि मांग पर नियंत्रण ने देश को लगभग 22.4 करोड़ डॉलर की बचत कराई है.

उन्होंने कहा, "इलेक्ट्रिक वाहनों में हमारे लिए जबरदस्त संभावनाएं हैं. भारत और बांग्लादेश में इलेक्ट्रिक वाहनों को कोयले पर निर्भर रहना पड़ता है, लेकिन नेपाल में यह पूरी तरह से हरित ऊर्जा है."

प्रदूषण में कमी

सड़क परिवहन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के पांच प्रतिशत से थोड़े अधिक का जिम्मेदार है और इसने वायु प्रदूषण संकट को और भी बदतर बना दिया है. काठमांडू को इस साल अप्रैल में कई दिनों तक दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में रखा गया था.

विशेषज्ञों का कहना है कि पेट्रोल से चलने वाले अधिक वाहनों को सड़कों से हटाना इस समस्या को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा. इलेक्ट्रिक वाहनों पर आयात शुल्क बहुत कम है और सरकार को उम्मीद है कि वे नेपाल को 2045 तक नेट-जीरो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक बनने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने में मदद करेंगे. इस योजना का उद्देश्य दशक के अंत तक सभी निजी वाहन खरीद में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत तक पहुंचाना है.

चुनौतियां भी हैं

फायदों के बावजूद सभी लोग यह मानने को तैयार नहीं हैं कि नेपाल की इलेक्ट्रिक वाहन क्रांति पर्यावरण के अनुकूल भविष्य की ओर संकेत करती है. देश की महत्वाकांक्षी जलविद्युत योजनाएं विवादास्पद हैं, और पर्यावरणविदों का कहना है कि नए बांधों के निर्माण से संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाने का खतरा है.

सरकार ने इस साल एक नई नीति को मंजूरी दी है, जिससे पहले से संरक्षित क्षेत्रों, जैसे कि जंगलों, प्रकृति रिजर्व और बाघों के आवासों में बांधों के निर्माण की अनुमति मिल गई है.

जलविद्युत परियोजनाएं बाढ़ और भूस्खलन के कारण नुकसान के जोखिम का भी सामना करती हैं, जो नेपाल में आम हैं और जलवायु परिवर्तन के कारण इनकी आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है. बीते रविवार को ही नेपाल में भयानक बाढ़ आई जिसने 150 से ज्यादा जानें ले लीं.

पर्यावरणविदों का यह भी कहना है कि सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाने की होड़ में इलेक्ट्रॉनिक कचरे के प्रबंधन के लिए उचित योजनाएं नहीं बनाई हैं. इलेक्ट्रिक वाहनों की लिथियम-आयन बैटरियों में ऐसे तत्व होते हैं जो इंसान और पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं, और उनका निपटान महंगा होता है.

ब्लू वेस्ट टु वैल्यू नामक रीसाइक्लिंग कंपनी के नवीन विकास महारजन ने एएफपी को बताया, "सरकार इस मुद्दे पर दूरदर्शी दिखाई नहीं दे रही है. उसकी दिलचस्पी केवल तात्कालिक समस्याओं को हल करने में है. अब समय आ गया है कि सरकार इसे प्राथमिकता दे, नहीं तो यह प्रदूषण कम करने की जगह और ज्यादा प्रदूषण का स्रोत बन जाएगा. "

वीके/सीके (एएफपी)

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