जर्मनी में 10 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंची जन्म दर

जर्मनी में पैदा होने वाले बच्चों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जर्मनी में पैदा होने वाले बच्चों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं.जर्मनी में पैदा हो रहे बच्चों की कम संख्या चिंता का विषय बन गई है. यहां जन्म दर पिछले 10 सालों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है. जर्मन इंस्टिट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च (आईएफओ) के अनुसार, देश की औसत जन्म दर प्रति महिला 1.35 है. साल 2021 में यह प्रति महिला 1.58 थी.

पूर्वी जर्मनी के इलाकों में यह गिरावट पश्चिमी जर्मनी की तुलना में ज्यादा है. जर्मन फेडरल स्टैटिस्टिकल ऑफिस के अनुसार, जनवरी से जुलाई 2024 के बीच जर्मनी में लगभग 392,000 बच्चे पैदा हुए. 2023 में इसी अवधि की तुलना में यह आंकड़ा तीन प्रतिशत कम था.

ये आंकड़े लगातार नीचे गिरती जन्म दर को और पुख्ता करते हैं, जो 2022 और 2023 से लगातार देखी जा रही है. पिछले दो सालों में जर्मनी में 693,000 नवजात बच्चों का रजिस्ट्रेशन हुआ है. वहीं, 2021 में जर्मनी में 795,500 बच्चों का जन्म हुआ था. अगर इन आंकड़ों की तुलना 2021 से करें, तो 2023 में नवजात बच्चों के वॉर्ड में हर आठवां बिस्तर खाली था.

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10 सालों में सबसे निम्न स्तर

जानकारों ने यह पहले ही बता दिया था कि 2016 तक जर्मनी में नवजात बच्चों की संख्या घट जाएगी. 2013 में जहां यह संख्या 682,000 के आसपास थी, वहीं 2015 में ये महज 737,000 के आसपास ही पहुंच पाई.

हालांकि, 2016 और 2021 के बीच इसमें सुधार हुआ और प्रति 1,000 निवासियों पर नौ से अधिक नवजात बच्चों की संख्या दर्ज की गई. बाद में यह आंकड़ा घटकर केवल 8.2 रह गया, जो पिछले 10 से 15 सालों में सबसे कम है.

किसी देश में अगर नवजात बच्चों की जन्म दर में उतार-चढ़ाव आते हैं, तो इसके पीछे कुछ बड़े कारण छिपे होते हैं. सबसे पहला कारण बच्चों की देखभाल और स्कूली शिक्षा के लिए जरूरी स्थानों की संख्या है. लंबे समय में यह काम करने वालों की संख्या के अलावा पेंशन फंड के लिए मुहैया की जाने वाली राशि पर असर डाल सकता है. वहीं, कम जन्म दर दूसरे देशों से लोगों को बुलाने का भी एक कारण बनता है.

पूर्वी जर्मन राज्यों का बुरा हाल

आईएफओ के अनुसार, कम जन्म दर के मामले में जर्मनी के पूर्वी राज्यों का हाल बुरा है. पूरे जर्मनी में 2021 से 2023 तक नवजात शिशुओं की संख्या लगभग 13 फीसदी घटी. वहीं, जर्मनी के पूर्वी राज्यों में यह गिरावट 17.5 फीसदी थी.

इसकी वजह काम के बेहतर मौकों की तलाश या निजी कारणों से युवा पुरुषों की तुलना में युवा महिलाओं का पूर्वी जर्मनी से पश्चिमी जर्मनी की ओर पलायन है. इसीलिए जन्म दर में गिरावट चौंकाने वाली बात नहीं है. देश भर में प्रजनन की उम्र वाली महिलाओं की संख्या भी घट रही है. हालांकि, सिर्फ इसी वजह को बच्चों की घटती संख्या के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. आंकड़े बताते हैं कि एक महिला द्वारा कम बच्चे पैदा करना भी इसकी एक बड़ी वजह है.

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आईएफओ की ड्रेसडन शाखा के उप निदेशक योआखिम रागनित्ज ने डीडब्ल्यू को बताया, "पिछले तीन सालों में जन्म दर से पता लगाए जाने वाले प्रजनन से जुड़ी जानकारियों में बहुत बदलाव आया है." उन्होंने कहा, "कोरोना संकट, यूक्रेन में युद्ध और बढ़ी हुई महंगाई की वजह से आय में कमी ने कई युवा परिवारों को कुछ समय के लिए बच्चे पैदा करने से रोक दिया है."

हालांकि, वह मानते हैं कि ये कारण महज अंदाजा हैं और इन्हें आंकड़ों के जरिए साबित नहीं किया जा सकता. जर्मनी में बच्चा पैदा करने का फैसला एक निजी मामला है. रागनित्ज आगे कहते हैं, "इस निर्णय में कई कारक महत्वपूर्ण हैं, जिनमें लागत और लाभ के मूल्यांकन के साथ ही अपनी जीवन योजना का प्रश्न भी शामिल है." इसलिए यह तथ्य कि एक बच्चे की जिंदगी के शुरुआती 18 सालों में लगभग 180,000 यूरो (163 करोड़ रुपये) खर्च होते हैं, बिल्कुल सही है.

रागनित्ज कहते हैं कि इसीलिए जोड़ों या परिवारों को "बहुत लंबे समय" के लिए निर्णय लेना पड़ता है. उनके अनुसार, राजनेताओं की यह जिम्मेदारी है कि वे "लाभ बढ़ाकर या लागत कम करके" इसे संतुलित करें.

क्या है ताजा विवाद

जर्मनी में बच्चों की देखभाल के लिए दी जानी वाली सुविधाओं में वृद्धि या परिवारों को दी जाने वाली रकम में कटौती दशकों से बहस का मुद्दा है. ज्यादातर मामलों में ये बहस चल रही है कि क्या संस्थाओं को इसका जिम्मा दे दिया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए, बच्चों की देखभाल से जुड़ी सेवाओं और वर्क लाइफ बैलेंस और बच्चों की देखभाल के रूप में व्यक्तिगत समर्थन देने की जरूरत है.

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गणित की मानें, तो ऐसे उपायों से करदाताओं को सालाना 200 बिलियन यूरो तक का नुकसान होगा. पारिवारिक मामलों के संघीय मंत्रालय के अनुसार, इसमें बच्चों को मिलने वाले लाभ और कर मुक्त बाल भत्ते के साथ-साथ शिक्षा में निवेश भी शामिल है. रागनित्ज कहते हैं, "किसी भी घटना के लिए शायद एक मौलिक सामाजिक बदलाव की जरूरत पड़ती है." आजकल कई होटल विज्ञापन देकर बताते हैं कि वो बच्चों को कमरे नहीं दे सकते. इसके पीछे की वजह शरारती बच्चे हैं.

उनके अनुसार, यह दिखाता है कि समग्र रूप से समाज को खुद से पूछना चाहिए कि वह बच्चों और परिवारों से कैसे संपर्क करता है और वह भौतिक और गैर-भौतिक संदर्भ में उनके लिए क्या कर सकता है. रागनित्ज के अनुसार, चाहे राजनेता परिवारों के लिए विशेष नीतियों और उपायों के जरिए अलग मानसिकता और अलग आंकड़ों में योगदान दें या समाज समग्र रूप से मूलभूत परिवर्तन के लिए खुल जाए, यह पुरानी प्रवृत्ति को इतनी जल्दी नहीं बदल पाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि कोई भी दृष्टिकोण केवल लंबे समय में भूमिका निभा सकता है, कम समय के लिए नहीं क्योंकि आप जो भी कदम उठाते हैं, उसके परिणाम लंबे समय के बाद ही हासिल होते हैं.

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