आसियान की एकता और जरूरत का इम्तेहान

बुधवार को होने वाली आसियान देशों की बैठक संगठन की प्रासंगिकता और एकता का बड़ा इम्तेहान होगी.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

बुधवार को होने वाली आसियान देशों की बैठक संगठन की प्रासंगिकता और एकता का बड़ा इम्तेहान होगी. दक्षिणी चीन सागर में बढ़ता तनाव और म्यांमार मुद्दे का हल उसकी परीक्षा लेंगे.म्यांमार के गृह युद्ध और दक्षिण चीन सागर में जारी तनाव दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान के लिए वजूद का सवाल बन गए हैं. इस हफ्ते जब लाओस में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के समूह आसियान के नेता मिलेंगे, तो उनके सामने सबसे बड़ा सवाल यह होगा कि संगठन की अहमियत को कैसे कायम रखा जाए.

दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों के 10 सदस्यों वाले इस संगठन ने 1967 में अपनी स्थापना के बाद से जटिल राजनीतिक ढांचे और प्रक्रियाएं बनाई हैं, जिससे करीब 70 करोड़ लोगों वाले इस क्षेत्र में काफी हद तक शांतिपूर्ण सहयोग बना रहा है.

लेकिन हाल के सालों में इस संगठन को कई ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जो उसकी एकता के लिए खतरा बन गए हैं. पूर्व इंडोनेशियाई विदेश मंत्री मार्ती नटालेगावा कहते हैं कि कठिन मुद्दों को समय पर हल न कर पाने की इसकी अक्षमता समूह के भीतर गहराते विभाजन को दिखा सकती है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में नटालेगावा ने कहा, "दक्षिण चीन सागर का मुद्दा और म्यांमार, दोनों ही आसियान की प्रासंगिकता के लिए परख की कसौटी हैं. मेरी मुख्य चिंता यह है कि आसियान की एकजुटता और एक ही मकसद के लिए काम की भावना पिछले कुछ वर्षों में कुछ हद तक कमजोर हो गई है."

कमजोर होता संगठन

"फाइव पॉइंट कंसेंसस" (पांच बिंदु सहमति) के नाम से जाने जाने वाले आसियन के नेतृत्व में अप्रैल 2021 में म्यांमार में शांति स्थापना के लिए पहल शुरू की गई थी लेकिन तीन से ज्यादा साल बीतने के बावजूद यह पहल कोई खास प्रगति नहीं कर पाई है. यह पहल म्यांमार की सेना द्वारा एक तख्तापलट के कुछ महीने बाद शुरू की गई थी, जब सेना ने चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंका था.

इसके उलट, म्यांमार में हिंसा बढ़ गई है, क्योंकि सैन्य प्रशासन के खिलाफ एक सशस्त्र प्रतिरोध आंदोलन उभरा है, जिसने म्यांमार के कई जातीय अल्पसंख्यक विद्रोही समूहों के साथ मिलकर सेना पर कई मोर्चों पर हमला किया है.

थाईलैंड की थामासाट यूनिवर्सिटी के दक्षिण पूर्व एशियाई अध्ययन के विद्वान डुल्यापक प्रीचारुश कहते हैं कि आसियान की अध्यक्षता लाओस के पास आने के बाद से समूह का नजरिया थोड़ा बदल गया है. उन्होंने कहा, "पिछले अध्यक्ष इंडोनेशिया के असफल प्रयास से अलग, लाओस म्यांमार के पड़ोसी देशों जैसे चीन और भारत को शांति प्रक्रिया में शामिल करने पर जोर देता है. इससे म्यांमार की सेना पर दबाव थोड़ा कम होता है और उसके लिए बातचीत का दायरा बढ़ता है." सैन्य जुंटा के साथ भारत सरकार के संबंधों को अच्छा माना जाता है.

फिर भी, म्यांमार की सेना अपने विरोधियों के साथ बातचीत करने से इनकार करती रही है. उन्हें आतंकवादी बताते हुए सेना ने कहा कि वे देश को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं. इस रवैये के कारण आसियान ने म्यांमार के जनरलों को अपने शिखर सम्मेलनों से बाहर रखा है, क्योंकि उन्होंने सहमति जताने के बावजूद शांति योजना का पालन नहीं किया.

हालांकि अब सेना ने अपना रुख कुछ नरम किया है. दो हफ्ते पहले ही सैन्य जुंटा ने विवाद सुलझाने की मंशा से विद्रोही समूहों को बातचीत के लिए न्योता दिया. इसके बाद तीन दिन के आसियान सम्मेलन में शामिल होने के लिए विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी को भेजा गया है.

सोमवार को थाईलैंड की प्रधानमंत्री पाएटोन्गटार्न शिनावात्रा ने कहा कि वह मलेशिया के साथ मिलकर कूटनीतिक तरीकों से संघर्ष को सुलझाने के लिए काम करेंगी, जो इस बात का संकेत है कि समूह के भीतर शांति प्रयासों में फिर से जान डालने की कोशिश हो सकती है.

आचार संहिता का इंतजार

लाओस में बुधवार को होने वाली बैठक के बाद दो दिनों तक शिखर सम्मेलनों का आयोजन होगा, जिसमें अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, चीन और रूस समेत अन्य देशों के नेता और प्रमुख अधिकारी शामिल होंगे.

इनमें से कई देशों के लिए चिंता का विषय दक्षिण चीन सागर में चीन और फिलीपींस के बीच, और हाल ही में वियतनाम के साथ, बढ़ते तनाव हैं. 2017 से आसियान और चीन के बीच दक्षिण चीन सागर के लिए एक आचार संहिता तैयार करने के मुद्दे पर बातचीत चल रही है.

चीन लगभग पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है और उसने आसियान सदस्य देशों फिलीपींस, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया और ब्रुनेई के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों में अपने तटरक्षक बलों की बड़ी संख्या में तैनाती की है.

हालांकि कुछ आसियान देशों को उम्मीद है कि संहिता अगले कुछ वर्षों में तैयार हो जाएगी, लेकिन कई विश्लेषकों और राजनयिकों का मानना है कि कानूनी रूप से बाध्यकारी मसौदे की संभावनाएं अभी भी दूर हैं.

पूर्व थाई विदेश मंत्री कांताथी सुपामोंगखोन कहते हैं, "संहिता पर बातचीत धीमी गति से चल रही है. बातचीत के कुछ प्रतिभागी अब संकेत दे रहे हैं कि संहिता कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होनी चाहिए. यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा."

अमेरिका के सैन्य सहयोगी फिलीपींस और चीन के बीच विवादित क्षेत्रों के आसपास जहाजों के बीच टकराव से दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए हैं, जिससे क्षेत्रीय चिंताएं बढ़ गई हैं कि यह संघर्ष कहीं बढ़ न जाए. पिछले हफ्ते वियतनाम ने भी अपने मछुआरों पर चीन के हमले का विरोध किया है. यह हमला उस विवादित इलाके में हुआ, जिस पर चीन का कब्जा है और वियतनाम भी दावा करता है.

वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)

Share Now

\