अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA भी पढ़ सकती है आपके मैसेज, WhatsApp पर मार्क जुकरबर्ग का चौंकाने वाला खुलासा
मार्क जुकरबर्ग ने खुलासा किया कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियां व्हाट्सएप मैसेजेस तक पहुंच सकती हैं, जबकि मेटा इन संदेशों को नहीं पढ़ सकती. जुकरबर्ग ने कंटेंट मॉडरेशन और राजनीतिक सेंसरशिप पर भी चर्चा की, खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान गलत सूचना को नियंत्रित करने के दबाव के बारे में.
हाल ही में मार्क जुकरबर्ग, जो Meta (फेसबुक) के CEO हैं, ने Joe Rogan के पॉडकास्ट में एक चौंकाने वाला खुलासा किया. उन्होंने कहा कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियां, जैसे CIA, आपके WhatsApp संदेशों तक पहुंच सकती हैं, अगर वे चाहें. यह जानकर आपको हैरानी हो सकती है, क्योंकि WhatsApp खुद दावा करता है कि वह आपके संदेश नहीं पढ़ सकता.
कैसे ये हुआ संभव?
WhatsApp के संदेश एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड होते हैं, यानी केवल भेजने वाला और प्राप्त करने वाला ही इन्हें पढ़ सकता है. लेकिन जुकरबर्ग ने यह बताया कि अगर अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को इसकी जरूरत महसूस होती है, तो वे इन संदेशों तक पहुंच सकते हैं.
क्या इसका मतलब है कि आपकी गोपनीयता खतरे में है?
यह सवाल अब उठ रहा है कि अगर सरकारें और खुफिया एजेंसियां आपके व्यक्तिगत संदेशों तक पहुंच सकती हैं, तो आपकी गोपनीयता कितनी सुरक्षित है? क्या सरकारों के पास इतनी ताकत होनी चाहिए कि वे हमारी निजी बातचीत पर नजर रखें?
कंटेंट मॉडरेशन और राजनीतिक सेंसरशिप
जुकरबर्ग ने इस पॉडकास्ट में और भी महत्वपूर्ण बातें साझा कीं. उन्होंने बताया कि जब महामारी के दौरान गलत जानकारी फैल रही थी, तो अमेरिकी सरकार ने मेटा पर दबाव डाला था कि वह ऐसी जानकारी को रोके. साथ ही, राजनीतिक कंटेंट को लेकर भी मेटा को दबाव का सामना करना पड़ा था. जुकरबर्ग ने बताया कि मेटा को सही और गलत जानकारी के बीच संतुलन बनाना मुश्किल होता है.
क्या इस सबका मतलब यह है कि हमारी स्वतंत्रता पर अंकुश लग सकता है?
पॉडकास्ट में जुकरबर्ग ने यह भी बताया कि उन्हें कभी-कभी चुनावी भाषण देने का दबाव भी महसूस होता है. इसका मतलब है कि यह कंपनियां और सरकारें एक-दूसरे के बीच झूझती रहती हैं, जिससे कई बार हमारी स्वतंत्रता पर असर पड़ता है.
इन खुलासों ने यह सवाल उठाया है कि क्या हमें अपनी डिजिटल गोपनीयता के अधिकारों को लेकर और अधिक सतर्क रहने की जरूरत है. इस चर्चा से यह भी जाहिर होता है कि सरकारें और तकनीकी कंपनियां हमारी ऑनलाइन बातचीत पर कितना नियंत्रण रख सकती हैं. अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपनी व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा को लेकर कितने जागरूक हैं और क्या कदम उठाते हैं.