चिकनगुनिया की नयी वैक्सीनः जलवायु परिवर्तन से बढ़ेगी मांग

तीसरे चरण के मानव प्रशिक्षणों में चिकनगुनिया टीके को काफी सुरक्षात्मक पाया गया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

तीसरे चरण के मानव प्रशिक्षणों में चिकनगुनिया टीके को काफी सुरक्षात्मक पाया गया है. मच्छरों से होने वाली ये बीमारी जलवायु परिवर्तन की वजह से पूरी दुनिया में फैली हुई है,इसलिए ये टीका व्यापक आबादी को लेना जरूरी हो सकता है.नये क्लिनिकल अध्ययन के फेज तीन में इंसानों पर चिकनगुनिया वैक्सीन ट्रायल के उत्साहजनक नतीजे दिखाए गए हैं. ऐसा पहली बार हुआ है.

अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि अगर इस टीके को मंजूरी मिली तो ये मच्छरों से होने वाली बीमारी से पीड़ित लाखों लोगों को बचाने में समर्थ हो पाएगी. द लांसेट पत्रिका में ये अध्ययन 12 जून को प्रकाशित हुआ.

1950 के दशक में सबसे पहली बार तंजानिया में चिकनगुनिया बीमारी का पता चला था. तबसे ये अफ्रीका, एशिया, कैरिबियाई क्षेत्र और दक्षिण अमेरिका में फैल चुकी है.

जोड़ों और मांसपेशियों में तीव्र दर्द के अलावा तेज बुखार और चमड़ी पर चकत्ते जैसे लक्षण इस बीमारी में दिखते हैं. अभी फिलहाल किसी भी तरह का वायरसनिरोधी उपचार उपलब्ध नहीं है. लक्षण सप्ताह भर में सुधर जाते हैं, लेकिन जोड़ों का दर्द (अर्थरालजिया) महीनों बना रह सकता है. कुछ मामलों में इससे क्रोनिक रियुमेटिक अर्थराइटिस बीमारी भी हो सकती है.

जर्मनी की ट्युबिन्गन यूनिवर्सिटी में संक्रामक और ट्रॉपिकल बीमारियों के विशेषज्ञ पीटर क्रेम्सनर कहते हैं, "चिकनगुनिया चुनिंदा मामलों में ही जानलेवा होता है. लेकिन ये बीमारी अच्छी नहीं है. दो सप्ताह तक आपको बीमार पड़े रह सकते हैं. उसके अलावा, गंभीर मामलों में आपको हफ्तों तक बना रहने वाला दर्दनाक अर्थराइटिस भी हो सकता है."

इक्वेटर से करीबी देशों में चिकनगुनिया वायरस

ट्रॉपिकल यानी गरम शुष्क इलाकों में इस वायरस की सबसे ज्यादा दर देखी जा रही है. पैराग्वे, ब्राजील, बोलिविया और थाईलैंड सबसे ज्यादा प्रभावित देश हैं. ग्लोबल मामले अपेक्षाकृत कम हैं, पैराग्वे में जनवरी से मार्च 2023 के दौरान सबसे ज्यादा 82,240 मामले सामने आए और 43 लोगों की मौत हुई. थाईलैंड में 259 मामले आए लेकिन मौतें नहीं हुईं.

अफ्रीकी देशों में चिकनगुनिया वायरस के मामलों की रिपोर्टें मिली हैं. लेकिन अपटूडेट संक्रमण डाटा की पुष्टि होना पाना कठिन है. कांगो, सूडान और केन्या में 2018 से बीमारी उभरती रही है, लेकिंन मामले अपेक्षाकृत कम ही रहे हैं. अफ्रीकी देशों में सबसे ज्यादा प्रभावित सूडान रहा है जहां 2018 से कुल मिलाकर करीब 14 हजार मामले ही देखे गए हैं.

लेकिन दक्षिण अमेरिका में 2013 के दौरान चिकनगुनिया बीमारी फैल गई थी जिससे कुछ ही महीनों में दस लाख से ज्यादा मामले सामने आ गए. मृत्यु-दर बेशक कम थी लेकिन 25 फीसदी संक्रमित लोग महीनों तक जोड़ों में तीव्र दर्द महसूस करते रहे.

अध्ययन बताते हैं कि अकेले 2014 में डिसेबिलिटी एडजस्टज लाइफ इयर्स (डीएएलवाई) यानी बीमारी या खराब स्वास्थ्य की वजह से जीवन पर पड़ने वाले बोझ के तहत 150,000 जीवन-वर्षों का नुकसान हुआ. ये मापन, संपूर्ण स्वास्थ्य के एक वर्ष के बराबर होने वाले नुकसान का प्रतिनिधित्व करता है.

पहली चिकनगुनिया वैक्सीन

लांसेट का नया अध्ययन पहले फेज तीन ट्रायल के नतीजों का प्रतिनिधित्व करता है जो बीमारी के खिलाफ टीके की जांच के लिए किया गया था.

अध्ययन के मुताबिक "वीएलए1553" एकल टीके के 28 दिन बाद शरीर में वायरस को न्यूट्रेलाइज करने वाले स्तरों को वैक्सीन बढ़ा देती है, उसका असर 180 दिनों तक कायम रहता है. अध्ययन के 98.9 फीसदी प्रतिभागियों में यही नतीजा आया.

जर्मनी के यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल ड्यूसलडॉर्फ में संक्रामक रोग विशेषज्ञ टोर्स्टन फेल्ड्ट कहते हैं, "चिकनगुनिया के टीके ने सभी अध्ययनो में काफी अच्छा प्रभाव दिखाया. टीका लगने के चार हफ्ते बाद सभी व्यक्तियों में सुरक्षात्मक प्रतिरोध प्रतिक्रिया पाई गई."

वैक्सीन में चिकनगुनिया वायरस के संवर्धित, लाइव संस्करण मौजूद है जो गंभीर बीमारी पैदा किए बिना शरीर में रेप्लीकेट हो सकता है.

लाइव वैक्सीनें, स्वाभाविक संक्रमणों की हूबहू नकल होती हैं, और वे दूरगामी और व्यापक बचाव मुहैया कराने वाली एक मजबूत प्रतिरोध प्रणाली तैयार कर देती हैं. मीसल्स, मम्प्स और रुबैला जैसे खसरों (एमएमआर टीका), चेचक और पीला बुखार (यलो फीवर) के खिलाफ टीकाकरण- ये सब काफी आम हैं.

लेकिन इन किस्मों वाले टीकों के साथ कुछ खतरे भी जुड़े हैं. एक दुर्लभ आशंका ये है कि कमजोर पड़ता वायरस फिर से ज्यादा घातक रूप अख्यिताल कर सकता है. वैसे क्लिनिकल प्रशिक्षणों ने दिखाया है कि वीएलए1553 का टीका असरदार रहा है, उम्रदराज मरीजों पर भी उसने काम किया है.

फेल्ड्ट कहते हैं, "सिर्फ थोड़े से गौरतलब साइड इफेक्ट देखने को मिले. सहनीयत दूसरी लाइव वैक्सीनों जैसी ही है. हालांकि कई हजार लोगों को टीका लगा, फिर भी संभावित मंजूरी के बाद सुरक्षा की निगरानी महत्वपूर्ण है जिससे और दुर्लभ साइड अफेक्टों के बारे में भी ज्यादा सटीक जानकारी हासिल की जा सके."

लाइव वैक्सीनें उन कई सारी वैक्सीनों में से ही एक हैं जो आपकी प्रतिरोध प्रणाली को ये बताने के लिए तैयार की गई हैं कि बीमारियों से कैसे मुकाबला करना है. दूसरे किस्म की वैक्सीनों में, निष्क्रिय वायरस से बने टीके शामिल हैं जिनका इस्तेमाल फ्लू या रेबीज के मामलों में होता है, मैसेंजर आरएनए (एमआरएनए) से तैयार कोविड-19 के कुछ टीके, और डिप्थीरिया और टिटनस में काम आने वाली टॉक्साइड वैक्सीनें.

2018 में चिकनगुनिया वायरस को विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैक्सीन निर्माण की प्राथमिकता सूची में रखा गया है.

कीट-जनित रोग फैलाता जलवायु परिवर्तन

चिकनगुनिया वायपरस अभी सिर्फ उन्हीं देशों में आम है जिनकी जलवायु गर्म और शुष्क है. लेकिन जलवायु परिवर्तन बीमारी फैलाने वाले मच्छरों को ध्रुवों के नजदीक ला रहा है, यानी दुनिया भर में व्यापक आबादी के लिए नयी वैक्सीन काम आ सकती है.

क्रेम्सनर कहते हैं, "चिकनगुनिया वायरस फैलाने वाला एशियन टाइगर मच्छर और ज्यादा फैल रहा है. ये मच्छर प्रजाति दक्षिण यूरोप में जम चुकी है और जर्मनी में तो तेजी से आम होती जा रही है."

मलेरिया इस बात का प्रमुख उदाहरण है कि कैसे वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी से बीमारी फैलाने वाले मच्छरों को अपना दायरा फैलाने में मदद मिल रही है. 1898 से 2016 के बीच, मलेरिया के वाहक एनोफिलीज मच्छर ने इक्वेटर के दक्षिण में हर साल अपनी रेंज 4.7 किलोमीटर की दर से बढ़ाई है. उस अवधि में ये दायरा करीब 550 किलोमीटर का बैठता है.

मॉडलिंग डाटा का भी ये अनुमान है कि वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी से मच्छर प्रजातियों का ध्रुवीय विस्तार और भी ज्यादा बढ़ेगा, जिससे दुनिया में मच्छर जनित बीमारियों का जोखिम भी और बढ़ता जाएगा.

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