आइंस्टीन गलत थे! MIT के वैज्ञानिकों ने 98 साल बाद साबित किया, एक सदी पुरानी बहस का अंत

MIT के वैज्ञानिकों ने अब तक के सबसे सटीक डबल-स्लिट प्रयोग से यह सिद्ध कर दिया है कि प्रकाश के कण (फोटॉन) गुजरते समय कोई निशान नहीं छोड़ते. इस खोज ने 98 साल पुरानी बहस में अल्बर्ट आइंस्टीन के विचार को गलत और नील्स बोहर के क्वांटम अनिश्चितता के सिद्धांत को सही ठहराया है. यह प्रयोग क्वांटम भौतिकी की हमारी समझ को और गहरा करता है.

Double-Slit Experiment: क्या आपने कभी सोचा कि रोशनी आखिर है क्या? कभी यह कणों की तरह व्यवहार करती है, तो कभी तरंगों की तरह. इस सवाल ने वैज्ञानिकों को सालों तक उलझाए रखा. 1927 में दो दिग्गज वैज्ञानिक, अल्बर्ट आइंस्टीन और नील्स बोहर, इस पर बहस कर रहे थे. आइंस्टीन का मानना था कि रोशनी के कण (फोटॉन) जब दो छेदों (डबल स्लिट) वाले प्रयोग से गुजरते हैं, तो वे कोई निशान छोड़ते हैं. लेकिन अब, 98 साल बाद, MIT के वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग के जरिए आइंस्टीन को गलत साबित कर दिया!

क्या है यह डबल स्लिट प्रयोग?

डबल स्लिट प्रयोग भौतिकी की दुनिया का एक मशहूर प्रयोग है, जो यह समझने में मदद करता है कि रोशनी और पदार्थ कण (पार्टिकल) और तरंग (वेव) दोनों की तरह व्यवहार करते हैं. इसमें एक स्क्रीन पर दो बारीक छेद होते हैं, जिनसे रोशनी या कण गुजरते हैं, और दूसरी तरफ एक पैटर्न बनता है. अगर रोशनी सिर्फ कण होती, तो दो सीधी लाइनें बनतीं. लेकिन इसमें तरंगों जैसा पैटर्न बनता है, जो बताता है कि रोशनी का व्यवहार कितना अनोखा है.

MIT ने क्या किया?

MIT की टीम ने इस प्रयोग को और सटीक करने के लिए अल्ट्राकोल्ड परमाणुओं (जो बेहद ठंडे किए गए थे) और सिंगल फोटॉन (रोशनी के एक-एक कण) का इस्तेमाल किया. यह अब तक का सबसे सटीक डबल स्लिट प्रयोग माना जा रहा है. इस प्रयोग ने साफ दिखाया कि जब फोटॉन स्लिट से गुजरते हैं, तो वे कोई निशान नहीं छोड़ते, जैसा आइंस्टीन ने सोचा था. यानी, क्वांटम दुनिया के नियम आइंस्टीन के विचारों से अलग हैं.

आइंस्टीन और बोहर की बहस

1927 में आइंस्टीन और बोहर के बीच इस बात पर गहरी बहस हुई थी कि क्वांटम मैकेनिक्स की दुनिया में चीजें कैसे काम करती हैं. आइंस्टीन को लगता था कि क्वांटम सिद्धांत पूरी तरह सही नहीं है और कुछ छिपी हुई जानकारी जरूर है. वहीं, बोहर का कहना था कि क्वांटम दुनिया में चीजें अनिश्चित होती हैं और हम पूरी तरह से उनके व्यवहार को नहीं समझ सकते. MIT का यह नया प्रयोग बोहर के विचारों को और मजबूत करता है.

इसका क्या मतलब है?

यह खोज क्वांटम भौतिकी को और गहराई से समझने में मदद करेगी. यह हमें बताती है कि प्रकृति के नियम हमारी सोच से कहीं ज्यादा जटिल और रहस्यमयी हैं. इस प्रयोग से क्वांटम कंप्यूटिंग, क्रिप्टोग्राफी और दूसरी तकनीकों में भी नई संभावनाएं खुल सकती हैं.

MIT के इस प्रयोग ने न सिर्फ आइंस्टीन की एक पुरानी सोच को गलत साबित किया, बल्कि क्वांटम दुनिया के रहस्यों को और करीब से देखने का मौका दिया. यह वैज्ञानिक इतिहास में एक बड़ा कदम है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि प्रकृति के नियम कितने अनोखे और रोमांचक हैं. क्या आप भी इस क्वांटम दुनिया के बारे में और जानना चाहेंगे?

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