Dark Web क्या है? इसे एक्सेस करना गैरकानूनी है? जानें डार्क वेब से कितना अलग है डीप वेब

आज के आधुनिक युग में तेजी से आगे बढ़ रही दुनिया के लिए इंटरनेट सबसे बड़ी जरुरत बनकर उभरा है. उद्योग जगत के साथ ही आम लोगों के जीवन का भी यह महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया हैं. अनगिनत लोग अपनी जरूरतों के हिसाब से हर रोज इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन इसमें कुछ ऐसे भी पहलु है जिससे आज भी अधिकांश लोग अनजान है. यहां हम बात कर रहे है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Unsplash)

नई दिल्ली: आज के आधुनिक युग में तेजी से आगे बढ़ रही दुनिया के लिए इंटरनेट सबसे बड़ी जरुरत बनकर उभरा है. उद्योग जगत के साथ ही आम लोगों के जीवन का भी यह महत्वपूर्ण  हिस्सा बन गया हैं. अनगिनत लोग अपनी जरूरतों के हिसाब से हर रोज इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन इसमें कुछ ऐसे भी पहलु है जिससे आज भी अधिकांश लोग अनजान है. यहां हम बात कर रहे है. डार्क वेब (Dark Web) या डार्क नेट की. इस शब्द को आप ने अक्सर साइबर जालसाजी की घटनाओं से जुड़ी खबरों में देखा होगा.

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच इसी साल मई महीने में साइबर जालसाजी करने वाले कुछ लोग कोविड-19 से ठीक हुए रोगियों के रक्त प्लाजमा को अवैध ढंग से डार्क नेट पर बेचते हुए पाए गए. जिसका वे कोरोना वायरस संक्रमण के चमत्कारिक इलाज के तौर पर प्रचार कर रहे थे. भारत और अन्य देशों में कोविड-19 के गंभीर मामलों के उपचार के लिए प्लाजमा थेरेपी का उपयोग किया जा रहा है. ऐसे अनगिनत मामले डार्क वेब से जुड़े हुए है. इंटरनेट की अनुपलब्धता के कारण 40 करोड़ बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई करने में असमर्थ: रिपोर्ट

डार्क नेट के नाम से भी जानी जाने वाली डार्क वेब इंटरनेट का इंक्रिप्टेड भाग है, जिसे सर्च इंजनों में शामिल नहीं किया गया है. डार्क वेब एक ऐसा नेटवर्क है, जो उन वेबसाइटों का संग्रह होता है जिनके आईपी एड्रेस (IP Address) छिपे हुए होते हैं. डार्क नेट तक पहुंच के लिए सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाता है.

डार्क वेब तक पहुँचने के लिए एक Anonymising ब्राउज़र पर जाना पड़ता है जिसे Tor कहा जाता है. TOR ब्राउज़र VPN की मदद से अपने यूजर्स की जानकारियों को छुपा कर रखता हैं. हालांकि, डार्क वेब का उपयोग गैरकानूनी नहीं है, लेकिन इसका उपयोग कई अवैध गतिविधियों के लिए खुलेआम किया जाता है. ऐसे में यूजर्स को यहां सावधान रहना बहुत अधिक जरुरी होता है.

डार्क वेब में पहुंचने के लिए टॉर (TOR) नामक ब्राउज़र की आवश्यकता होती है. यह इंटरनेट के छिपे हुए हिस्से में पहुंचने के लिए सबसे लोकप्रिय नेटवर्क में से एक है. डार्क वेब का उपयोग कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है, इसमें मुख्य तौर पर स्रोत को गुमनाम रखना होता है. लेकिन हैकर्स डार्क वेब पर भी बहुत सक्रीय होते है.

पहचान के मामले में कुछ ऐसा ही हाल डीप वेब (Deep Web) का भी है, जिसे लोग डार्क वेब का ही एक पार्ट समझते है. हालांकि दोनों एक दूसरे से बहुत अलग है. यहां पर अधिकतर जानकारी खुफिया होती है. इस वजह से डीप वेब का ज्यादातर हिस्सा अलग-अलग देशों की सरकारें और सुरक्षा एजेंसियां द्वारा संचालित किया जाता है, जबकि बचा हुआ अन्य हिस्सा हैकर्स अपने लिए यूस करते है.

डीप वेब इंटरनेट का वह हिस्सा है जो एन्क्रिप्शन द्वारा पारंपरिक सर्च इंजनों से छिपा होता है. इसका मतलब है कि यह हर इंटरनेट यूजर के लिए एक्सेसिबल नहीं है. ये वे वेबसाइटें हैं जो गैर-अनुक्रमित हैं जो किसी भी सर्च इंजन के साथ रजिस्टर्ड नहीं हैं, इसलिए आप संभवतः इन्हें ढूंढ ही नहीं सकते हैं.

डार्क वेब साइबर अपराधियों का अड्डा कहा जाता है. क्योकि उन्हें ट्रेस करना बहुत ही कठीन काम होता है. ऑनलाइन इंटेलीजेंस कंपनी साइबल ने हाल ही में खुलासा किया तह कि साइबर अपराधियों ने 2.9 करोड़ भारतीयों के व्यक्तिगत डेटा मुफ्त में डार्क वेब पर डाल दिये हैं. डार्क वेब जासूसी करने के लिए काफी फेमस है. यहां लोगों की निजी जानकारी चंद रुपयो में बेची व खरीदी जाती है.

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